सच्चे दिल से नमाज़ पढ़ना ईमान की निशानी
सच्चे दिल से नमाज़ पढ़ना ईमान की निशानी
खुशुअ के साथ नमाज़ पढ़ना ईमान की पहली शर्त
सूरए मोमेनून की पहली और दूसरी आयत मे इरशाद होता है
قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ{۱}الَّذینَ همْ فی صَلاتِهمْ خاشِعُونَ{2}
कि बेशक मोमेनीन कामयाब हैँ (और मोमेनीन वह लोग हैं) जो अपनी नमाज़ों को खुशुअ के साथ पढ़ते हैं।
याद रहे कि अंबिया अलैहिमस्सलाम मानना यह हैं कि हक़ीक़ी कामयाबी मानवियत से हासिल होती है। और ज़ालिम और सरकश इंसान मानते हैं कि कामयाबी ताक़त मे है।
फिरौन ने कहा था कि “ आज जिसको जीत हासिल हो गयी वही कामयाब होगा।” बहर हाल चाहे कोई किसी भी तरह लोगों की खिदमत अंजाम दे अगर वह नमाज़ मे ढील करता है तो कामयाब नही हो सकता
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