पापों का प्रश्चित

पापों का प्रश्चित

अहम बात यह है कि इन्सान अपनी ग़लतियों के सुधार बारे में भी सोंचे ग़लतियों व गुनाहों को बारबार न करे, कटहुज्जती और ज़िद को छोड़े, ख़ुद अपने पापों को अनदेखा करने और अपने बारे में केवल अच्छा ना सोंचे।

शैतान जिसने सबसे बड़ा पाप किया, जिसने ईश्वर पर आपत्ती, हज़रत आदम (अ) को सजदे करने के आदेश को सही नहीं माना, जो अवहेलना की सीमा को लांघ गया, अगर वह भी अपनी अक़्ल के सामने से कटहुज्जती व ज़िद के पर्दों को हटा कर अहंकार एवं घमंड को छोड़ देता तो उसके लिए भी तौबा का दरवाज़ा खुला हुआ था। लेकिन उसकी ज़िद्द व घमंड तौबा के रास्ते में रुकावट बन गए नतीजा यह हुआ कि आज तमाम पापियों के पाप में सिमिलित रहता है और सब के पापों के बोझ को अपने कांधे पर उठाये फिरता है, उस बोझ को जिसको उठाने की किसी में भी ताक़त नही है।

इसी वजह से हमारे मौला अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) ने ख़ुत्ब-ए-क़ासिया में उसको “फ़अदुवु अल्लाहि इमामुल मुतास्सेबीन व सलाफ़ुल मुस्तकबरीन” अल्लाह का दुश्मन, मुतास्सिब लोगों का इमाम, घमंड करने वालों का लीडर कहा है।

और आपने नसीहत भी फ़रमाई है कि उसके हालात से सब को सबक़ लेना चाहिए कि उसने थोड़ी देर की ज़िद्द और अहंकार से अपनी हज़ारों साल की इबादत को इस तरह ख़ाक में मिला दिया, कि उसको फ़रिश्तों की पंक्ति से निकाल कर असफ़ालु अस्साफ़ेलीन में में डाल दिया गया।

अगर तुम से कोई ग़लती या पाप हो जाये, तो अल्लाह की बारगाह में उसको स्वीकार करो और साफ़ साफ़ कहो कि ऐ अल्लाह मुझसे पाप हुआ है इसको माफ़ दे, मेरे उज्र को क़बूल कर ले और मुझे इन्सानी इच्छाओं और शैतान के जाल से रिहाई दे, माबूद तू तो सबसे अधिक रहम करने वाला और पापों को क्षमा करने वाला है।

इस प्रकार पापों को स्वीकार करने और क्षमां मागने से जहाँ तुम को सुकून हासिल होगा वहीँ तुम्हारे लिए सुधार और कुर्बे ख़ुदा का रास्ता भी समतल हो जायेगा। इस के बाद पापों के प्राश्चित और अपने सुधार के लिए कोशिश करो, और यह भी जान लो कि इस काम से इन्सान का स्थान नीचे नहीं आता है बल्कि इसके उलट इन्सान का स्थान और ऊँटा हो जाता है।

अल्लाह से क़ुर्ब का रास्ता वह रास्ता है जिसमें घमंज और ज़िद्द के लिए कोई स्थान नही है, ऐसे बहुत से लोग लोग हैं जो इस राह पर चलने में दूसरों से आगे निकल सकते थे लेकिन इन्हीं अख़लाक़ी बुराईयों (ज़िद्द व घमंड) के कारण इस राह पर नही चल सके और पथभ्रष्ट हो गए। यही नही कि अहंकार और ज़िद इन्सान के स्वंयसुधार के रास्ते की अस्ली रुकावट हैं बल्कि यह इन्सान को समाजिक, राजनीतिक और ज्ञानिक कामयाबी के मैदान में भी आगे नही बढ़ने देते। ऐसे लोग हमेशा ख़यालात की दुनिया में रहते हैं यहाँ तक की उनको इसी हालत में मौत आ जाती है। अजीब बात यह है कि इस तरह के लोग अपनी नाकामी और हार के कारणों को सदैव बाहर तलाश करते हैं जबकि इनकी नाकामी और बदनसीबी का असली कारण ख़ुद उन्ही के अंदर में छिपा होता है, और यह उनके दुर्भाग्य को और बढ़ा देता है।

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