पाँच रूपये

पाँच रूपये

सकीना बानों अलवी

ख़ेसाले शेख़ सदूक़ में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से रिवायत है। कि एक बार एक भिखारी आया। उस्मान ग़नी मस्जिद में बैठे थे। उस से सवाल किया। उस ने पाँच दरहम दिये।

भिखारी ने कहा: आप की उदारता की तो इन्तेहा ही नहीं है! किसी और उदार व्यक्ति का पता बता दे।

उस्मान ने कहा: वह देख रहे हो। तीन नवजवान एक साश बैठे किसी मसअले पर बहस कर रहे है। उन के पास जा शायद तुम्हें कुछ मिल जाए।

वह गया उस ने सलाम किया। सलाम के जवाब के बाद कुछ मांगा।

इमाम हसन (अ) ने फ़रमाया: किसी के सवाल के जवाब के तीन धार्मिक रूप हैं। तू किस जाएज़ सूरत में मांग रहा है?

उस ने कहा। वह कौन सी हैं।

या क़त्ल की दियत (धार्मिक जुर्माना) देना हो और पैसा आदि ना हो।

या बहुत ग़रीब हो और उसके पास कुछ ना हो

या इतना अधिक कर्ज़ा हो कि अदा करने का कोई माध्यम ना हो।

उस ने कहा इन तीनों में से एक परेशानी है।

आप ने उसे पचास दीनार दिए। इमाम हुसैन (अ) उसे उन्चास दीनार दिए। और जनाब अब्दुल्लाह ने अड़तालिस दीनार दिए।

वह वापस आया। उसमान ने पूछा: क्यों क्या हुआ कुछ मिला क्या?

उसने कहा आप को तो मालूम है जो बर्ताव आप ने किया है। उन में से जो थोड़ा बड़ा है। उसने मुझे मांगने के तीन जाएज़ कारण बताए और पूछा कि इन तीन जाएज़ कारणों में से तू किस कारण से मांग रहा है।

मैं ने कहाः इन तीनों में से एक है। बड़े ने पचास छोटे ने उन्चास और तीसरे ने अड़तालिस दीनार दिए हैं।

उसमान ने कहा तुम्हें क्या मालूम, कि शिक्षा उन लोगों की घुट्टी में मिला हुआ है।

दमअतुस साकेबा पेज न 538 किताब

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