इस्लामी सभ्यता, दुनिया की सबसे सम्पन्न सभ्यता

इस्लामी सभ्यता, दुनिया की सबसे सम्पन्न सभ्यता

इस्लामी कल्चर व सभ्यता, इंसानी इतिहास की सबसे महान सभ्यताओं में से एक है। हालांकि इस कल्चर में, जो इस्लाम के उदय के साथ वुजूद में आई, बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव आए हैं लेकिन इसका अतीत बहुत ज़्यादा रौशन है। इस्लामी सभ्यता के इतिहास की समीक्षा से पता चलता है कि यह कल्चर व सभ्यता, एक लॉजिकल आधार पर वुजूद में आई है।

इंसानियत के लिए इस्लाम का उपहार वह महान एवं व्यापक कल्चर व सभ्यता है जिसने सभी इंसानों ख़ास कर मुसलमानों को हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया है। आज इस्लामी कल्चर व सभ्यता का परिचय, विभिन्न समाजों ख़ास कर बुद्धिजीवी तबक़े के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। मुसलमानों की अगली पीढ़ियों के लिए यह जानना ज़रूरी है कि उनके पुरखे कल्चर की निगाह से किस स्तर पर थे। यह इल्म उनके कैरेक्टर के कॉंस्ट्रक्शन या रि-कॉंस्ट्रक्शन में बहुत ज़्यादा प्रभावी है। साम्राज्य ने पिछली दो शताब्दियों के दौरान विभिन्न राष्ट्रों ख़ास कर मुसलमानों की सभ्यता व कल्चर की मौलिकता व उपयोगिता का इंकार करने की कोशिश की है ताकि इसके माध्यम से अपने कल्चर को मुल्कों पर थोप सके। पश्चिम का वास्तविक लक्ष्य यह है कि दुनिया तथा विभिन्न कल्चरों के भीतर इस विचार को मज़बूत बना दे कि उनके पास पश्चिम के रंग में रंगने के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

इस्लामी सभ्यता के इंकार और पूर्वी मुल्कों पर पश्चिमी कल्चर व मूल्यों को थोपने का एक मक़सद यह है कि पश्चिम वाले, एक ओर तो दुनिया के दूसरे राष्ट्रों व सभ्यताओं की तरक़्क़ी को ख़ुद से सम्बंधित कर सकें और दूसरी ओर मुसलमानों की तरक़्क़ी व विकास को रोक सकें। ईरान के एक बुद्धिजीवी और युनीवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डाक्टर शफ़ीई सेरविस्तानी का मानना है कि पश्चिम अपनी श्रेष्ठ तकनीक एवं आर्थिक ताक़त की मदद से, कि जो ख़ुद ही मुल्कों के शोषण से हासिल हुई है, बरसों से पूरी दुनिया में अपने कल्चर को फैलाने और कल्चरल ग्लोबलाईज़ेशन की कोशिश में है। पश्चिम ने इस बात की बहुत ज़्यादा कोशिश की है कि जिस तरह से भी संभव हो, अपने प्रतीकों और मूल्यों को पूर्वी समाजों पर थोप दे।

चूंकि पश्चिम ने ख़ुद को इंसानी कल्चर का मेन सेंटर दर्शाने और अपनी मान्यताएं दूसरे इलाक़ों पर थोपने के लिए व्यापक कोशिश की हैं इसलिये इस्लामी कल्चर व सभ्यता की महानता व उसके मूल आधारों का वर्णन बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। अमरीका के एक विचारक और सभ्यताओं के बीच टकराव के नज़रिये के जनक सेमुइल हेन्टिंग्टन इस संबंध में कहते हैं। “नवीनीकरण के विषय में पश्चिम ने न केवल दुनिया को एक नए समाज की ओर बढ़ाया है बल्कि दूसरी सभ्यताओं के लोग भी तरक़्क़ी करते करते पश्चिमवादी हो गए हैं। वह अपनी पारंपरिक मान्यताओं व संस्कारों को छोड़ कर उनकी जगह पर वैसी ही पश्चिमी प्रतीकों को अपना रहे हैं।

इस समय पश्चिमी दुनिया इस्लामी सभ्यता की तरक़्क़ी व विकास को रोकने के लिए, कल्चरल बोलबाला के माध्यम से दूसरे मुल्कों पर अपना पॉलीटिकल बोलबाला जमाने की कोशिश में है। ग़ौरतलब है कि पश्चिम ने दूसरी वर्ल्ड वार के बाद से दुनिया की लीडरशिप अपने हाथ में लेने के कोशिश शुरू कर दी थी लेकिन चूंकि कुछ राष्ट्र अपनी मान्यताओं व नेशनल व दीनी कल्चर की सुरक्षा पर बल देते हैं और आसानी से बाहरी दुश्मन के सामने घुटने नहीं टेकते इसलिये वह कल्चरल हमले के माध्यम से पॉलीटिकल बोलबाला स्थापित करना चाहता है। पश्चिम की कोशिश है कि ग़ैर अरब ख़ास कर इस्लामी मुल्कों में अपने कल्चर को फैला कर धीरे-धीरे उनके कल्चर में बेसिक तब्दीली कर दे ताकि उन पर उसके पॉलीटिकल वर्चस्व का रास्ता तय्यार हो जाए।

अमरीका के एक सकॉलर व राइटर एडवर्ड बर्मन लिखते हैं कि पश्चिमी मीडिया व मैगज़ीनों और रॉक फ़ैलर, कारनेगी तथा फ़ोर्ड जैसी तथाकथित कल्चरल संस्थाओं जैसे हथकंडों के माध्यम से विकासशील समाजों में खास नज़रियों और विचारों को फैलाने की कोशिश कर रहा है। विचारों व कल्चरों को फैला के उन्हें प्रचलित करना जिनके कंट्रोल में है वह कोशिश कर रहे हैं कि दुनिया और ज़िंदगी के प्रतिदिन के मामलों के सम्बंध में लोगों के सोचने की शैली को प्रभावित कर दें।

 इस्लामी कल्चर व सभ्यता पर बातचीत के लिए उचित होगा कि इस सभ्यता को वुजूद में लाने वाले कारकों तथा पश्चिमी कल्चर व सभ्यता से उसकी तुलना के बारे में कुछ बात की जाए। इस्लामी सभ्यता को वुजूद देने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक, उसमें पाई जाने वाली विभिन्न कल्चर हैं। इतिहास हमें बताता है कि गतिशील व ऐक्टिव कल्चर किसी भी हालत में ख़त्म नहीं होतीं बल्कि हमेशा अपने आपको सुरक्षित रखती हैं। मिसाल के तौर पर हालांकि इस्लामी कल्चर व सभ्यता को अपने पूरे जीवनकाल में उतार-चढ़ाव और बाहरी लोगों के हमलों का सामना करना पड़ा है लेकिन वह कभी भी उनसे पराजित व प्रभावित नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त इस्लामी कल्चर व सभ्यता, ईरानी, मिस्री व अरबी कल्चरों की तरह लोकल कल्चरों की रक्षा के कारण, खास कल्चरल तब्दीली से संपन्न है जबकि पश्चिमी कल्चर, दूसरा कल्चरों व नेशनलटियों को ख़त्म करने और सभी कल्चरों को एक जैसा बनाने के कोशिश में है। इस्लामी कल्चर व सभ्यता में सभी कल्चरों व नेशनलटियों को सुरक्षित रखा गया है और यह बात ख़ुद इस्लामी सभ्यता के फलने-फूलने का एक कारण है।

अमरीकी हिस्टोरियन वेल डोरेन्ट सभ्यता और सभ्य समाज के बारे में कहते हैं कि सभ्यता, सामाजिक डिसिपलिन, क़ानून की सरकार तथा अपेक्षाकृत उचित स्थिति के नतीजे में वुजूद में आने वाली कल्चरल रचनात्मकता को कहते हैं। सभ्यता, इल्म व कल्चर के उत्थान का फल है। जो समाज, सामाजिक डिसिपलिन को क़बूल करता है और इल्म से फ़ायदा उठा कर इंसानी गुणों के विकास व कमाल के बारे में सोचता है वही, सभ्य समाज कहलाता है।

निश्चित रूप से विभिन्न जातियों व समुदायों को अपनाना, इस्लामी कल्चर व सभ्यता की गतिशीलता के कारणों में से एक है। इस्लामी सभ्यता में जातियों के भेद का कोई महत्व नहीं है और यह सभ्यता किसी खास जाति या समुदाय से सम्बंधित नहीं है। इस्लाम तरक़्क़ी व विकास का धर्म है और उसने यह साबित किया है कि वह व्यवहारिक रूप से विकास व कल्याण की ओर समाज का मार्गदर्शन व रहनुमाई कर सकता है।

इस्लामी सभ्यता की एक दूसरा खासियत अंधविश्वास व सांप्रदायिकता से दूरी है। इस्लाम ने एक ऐसी दुनिया में अपनी दावत को शुरू किया जिसमें लोग अंधेरे का शिकार थे। इस्लाम ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, जो इल्म व बुद्धि पर आधारित हैं, जेहालत व अंधविश्वासों की ज़ंजीरों को तोड़ दिया, लोगों के बीच प्यार व भाईचारे का प्रचार किया तथा एक ल्यूसेंट सिविलाईज़ेशन के वुजूद में आने और उसके विकास का रास्ता तय्यार किया। वेल डोरेन्ट अपनी मशहूर किताब “इंसानी सभ्यता का इतिहास” में लिखते हैं कि इस्लामी सभ्यता से ज़्यादा आश्चर्यचकित करने वाली कोई दूसरा सभ्यता नहीं है। यदि इस्लाम बेहरकती, निश्चलता और जड़ता का हिमायती होता तो इस्लामी समाज को अरब समाज की उसी शुरूआती सीमा तक रोके रखता जबकि एक शताब्दी से भी कम समय में उसने अपने पड़ोस की सभ्यताओं को इकट्ठा कर लिया और उन सबसे मिला कर एक ज़्यादा व्यापक सभ्यता को वुजूद दिया।

इस्लामी सभ्यता में, जिसका स्रोत एक पाक विचारधारा है, दुनिया व आख़ेरत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस्लाम एक ऐसा दीन है जो इंसानी ज़िंदगी के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों आयामों पर ध्यान देता है। दीन, इंसान की तरक़्क़ी एवं कमाल का माध्यम है और बुद्धि एवं विवेक से उसका गहरा नाता है। मशहूर मुस्लिम सोशलिस्ट इब्ने ख़ल्लदून का मानना है कि इंसान के दीनी व बौद्धिक आयाम, उसके इंसानी आयामों से जुड़ जाते हैं और इस तरह एक बड़ी सभ्यता जन्म लेती है।

यहां यह बात भी ग़ौरतलब है कि महान इस्लामी सभ्यता ने अपने से पहले वाली सभ्यताओं के निगेटिव व अंधविश्वासपूर्ण तत्वों को नकार दिया और उनके पॉज़ेटिव प्वाइंट्स को अपना कर महान इस्लामी सभ्यता के उत्थान और उसके फलने फूलने का रास्ता तय्यार किया।

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