पर्दा, नारी की सुन्दरता

पर्दा, नारी की सुन्दरता

भारतीय नारी तो नारीत्व का, ममता का, करुणा का मूर्तिमान रूप है और पश्चिम कि सभ्यता औरत को एक नुमाइश कि चीज़ समझती है. आज इसी पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने वाला इंसान आज पढ़ा लिखा समझदार, प्रगतिवादी कहा जाता है. जनाब ए मरियम की तस्वीर आज तक  किसी ईसाई ने  खुले सर तक नहीं दिखाई , लेकिन अपने घर की औरतों को मिनी और मिडी में रखता है. मुसलमानों में जनाब ए मरियम, ख़दीजा, आसिया और फ़ातेमा, का नाम बड़े इज्ज़त और सम्मान से लिया जाता है और इनका पर्दा भी बहुत मशहूर है लेकिन आज ना जाने कितनी मुसलिम औरतों को भी आप बेनकाब घूमते पाएंगे।

शिया मुसलमान कर्बला मैं यजीद के ज़ुल्म के विरुद्ध आवाज़ उठाते है और यजीद को बुरा कहते हैं क्योंकि यजीद के आदेश से, रसूल ए खुदा हज़रत मुहम्मद (स) के घर की औरतों  कि चादर छीन ली गयी थी और बेपर्दा घुमाया गया था। यह घटना इस बात की गवाह है की उस समय भी जब किसी औरत को तकलीफ पहुंचानी होती थी तो उसको पर्दा नहीं करने दिया जाता था। आज आपको यह मुसलमान औरत खुद ही बेनकाब हो के घूमती मिल जाएगी।

सर पे घूंघट का रिवाज तो हिन्दू धर्म मैं बहुत सख्त हमेशा से रहा है और आज भी सर पे पल्लू डालना शरीफ घरानों में पाया जाता है। मर्द कि फितरत औरत को कम कपड़ों में देख के उसकी तरफ खिचे चले आना  और औरत का शौक कि खुद को बेहतर से बेहतर अंदाज़ मैं दूसरों को दिखाना , है। इस्लाम मैं औरतों के लिए हुक्म है  कि गैर मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित करने  के लिए अपनी खूबसूरती  का इस्तेमाल मत करो। या ऐसे कपड़े ना पहनो जिससे जाने या अनजाने मैं कोई मर्द उसकी तरफ आकर्षित हो जाए. शर्म औरत का  जेवर है और इस बात को हर हिजाब या पूरे कपड़ों में रहने वाली स्त्री जानती है।

डॉक्टर कमला सुरैया,या  ‘डॉक्टर कमला दास’ —सम्पादन कमेटी ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इण्डिया’ से संबद्ध—अध्यक्ष ‘चिल्ड्रन फ़िल्म सोसाइटी’—चेयरपर्सन ‘केरल फॉरेस्ट्री बो ने कहा की "इस्लामी शिक्षाओं में बुरके़ ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हक़ीक़त यह है कि बुरक़ा बड़ा ही ज़बरदस्त  लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ ‘‘आपको मेरी यह बात बड़ी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गयी हूं। मुझे औरतों के नंगे मुंह, आज़ाद चलत-फिरत तनिक भी पसन्द नहीं। मैं चाहती हूं कि कोई मर्द मेरी ओर घूर कर न देखे। इसीलिए यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि मैं पिछले चौबीस वर्षों से समय-समय पर बुरक़ा ओढ़़ रही हूं, शॉपिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहां तक कि विदेशों की यात्राओं में मैं अक्सर बुरक़ा पहन लिया करती थी और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता"
सवाल यह उठता है की क्या यह सभी धर्मो में औरत का पर्दा, पुरुष प्रधान समाज की देन है या इस कानून मैं कोई फ़ाएदा  सच में है? किसी को औरत के जिस्म की नुमाइश कर के साबुन का इश्तेहार शर्मनाक लगता है तो कोई औरत अपने जिस्म की तरफ लालची निगाहों को देख के गर्व महसूस करती है. कोई मर्द ऐसा भी होता है जिसकी बीवी या बेटी को कोई ध्यान से देख ले तो उसको गुस्सा आ जाता है और कोई अपनी बीवी को सजा के अपने बॉस की दावत पे जाता है कि उसका बॉस खुश हो जाए।
यहाँ एक बात सभी धर्म के लोगों में एक जैसी दिखी की प्रगतिवादी बनने के लिए घूंघट, पर्दा या हिजाब का त्याग उनको आवश्यक लगता है जबकि उनके बुजुर्गों के कानून और धर्म के उसूल ऐसा नहीं मानते।
मैं और किसी मज़हब के पर्दे के बारे मैं नहीं कहूँगा लेकिन इस्लाम में पर्दा कानून ना तो सख्त है, ना क़ैद और ना ही बेबुनिआद। क्योंकि इस्लाम में सही तरीके से शरीर को ढकने की सलाह दी गई है लेकिन कोई ड्रेस कोड नहीं दिया गया है। यह काले बुर्के, यह सफ़ेद  टोपी वाले बुर्के, सब लोगों ने खुद से बना लिए हैं.इस्लाम में बालों और जिस्म का पर्दा है, चेहरे का पर्दा ज़रूरी नहीं. इस पर्दे के साथ औरत इस समाज के हर काम कर सकती है, चाहे वह नौकरी हो  या व्यापार; अगर आप को कहीं फोटो भी लगानी  हो तो हिजाब के साथ लगी जा सकती है. कुछ लोगों का मानना है पर्दे से  स्त्री की स्वतंत्रता बाधित होती है. लेकिन हजारों दलील के बाद भी यह लोग अपनी  बात को साबित करने में नाकाम रहे हैं। 
मेरा तो मानना  यही  है प्रगति के नाम पे आज का पुरुषप्रधान समाज औरत के कपड़े  अपनी लज्ज़तो के लिए उतारता जा रहा है और उसको बेवकूफ बना रहा है उसके जिस्म की नुमाइश और तारीफ कर के। ना जाने क्यों हम आदिमानव युग मैं वापस लौटने को आज तरक्की  का नाम दे रहे हैं? इस्लाम मैं पर्दे के साथ औरत ऐसा कोई काम नहीं जिसे ना कर सकती हो, चाहे वो नौकरी हो घरलू काम हाँ यह अवश्य है की वो ग़ैर मर्द को आकर्षित नहीं कर सकती।

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