आशिक़ों की दुआ (मुनाजातुल मुहिब्बीन)

आशिक़ों की दुआ (मुनाजातुल मुहिब्बीन)

 

-- بِسْمِ اﷲِ الرَحْمنِ الرَحیمْ---

ईश्वर के नाम से आरम्भ करता हूँ सबसे बड़ा कृपालु है

إلھِی مَنْ ذَا الَّذِی ذاقَ حَلاوَۃَ مَحَبَّتِکَ فَرامَ مِنْکَ بَدَلاً وَمَنْ ذَا الَّذِی ٲَنِسَ بِقُرْبِکَ فَابْتَغَی عَنْکَ حِوَلاً؟

हे मेरे ईश्वर कौन है जो तुझ से बात करने की मिठास का स्वाद चखे और फ़िस उसमें बदलाव की ख़्वाहिश करे, और कौन है जो तेरी नज़दीकी से परिचित हो और फिर उससे दूरी चाहे

 

إلھِی فَاجْعَلْنا مِمَّنِ اصْطَفَیْتَہُ لِقُرْبِکَ وَوِلایَتِکَ،

हे मेरे ईश्वर मुझे उन लोगों में रख दे जिन को तूने नज़दीकी और दोस्ती के लिए पसंद किया

وَٲَخْلَصْتَہُ لِوُدِّکَ وَمَحَبَّتِکَ، وَشَوَّقْتَہُ إلَی لِقائِکَ، وَرَضَّیْتَہُ بِقَضَائِکَ، 

और जिनके लिए अपनी चाहत और मोहब्बत को शुद्ध किया है, और जिन्हें अपनी मुलाक़ात का शौक़ दिलाया है, और जिनको क़ज़ा (मर्ज़ी) पर राज़ी किया है

وَمَنَحْتَہُ بِالنَّظَرِ إلَی وَجْھِکَ، وَحَبَوْتَہُ بِرِضَاکَ، وَٲَعَذْتَہُ مِنْ ھَجْرِکَ وَقِلاَکَ، 

और अपनी ज़ात (व्यक्तित्व) का नज़ारा करने का सम्मान दिया है, और जिन्हें अपनी मर्ज़ी दी है, और स्वंय से दूरे एवं जुदाई से पनाह में रखा है

وَبَوَّٲْتَہُ مَقْعَدَ الصِّدْقِ فِی جِوارِکَ وَخَصَصْتَہُ بِمَعْرِفَتِکَ وَٲَہَّلْتَہُ لِعِبادَتِکَ وَھَیَّمْتَ قَلْبَہُ لاِِِرادَتِکَ

और अपनी प्रसन्नता के स्थान के क़रीब रखा है, और उन्हें अपने ज्ञान एवं मारेफ़त के लिए विशेष किया, और अपनी आराधना के लायक़ बनाया, और उनके दिलों में अपनी लौ जलाई

وَاجْتَبَیْتَہُ لِمُشَاھَدَتِکَ، وَٲَخْلَیْتَ وَجْھَہُ لَکَ، وَفَرَّغْتَ فُؤادَھُ لِحُبِّکَ، وَرَغَّبْتَہُ فِیما عِنْدَکَ،

और उनको अपने जलवों को देखने के लिए चुन लिया, और उनके चेहरों को अपने समक्ष झुकाया, और उनके दिलों को अपनी मोहब्बत के लिए ख़ाली किया और जो कुछ तेरे पास हैं उसकी चाहत दी

وَٲَ لْھَمْتَہُ ذِکْرَکَ، وَٲَوْزَعْتَہُ شُکْرَکَ، وَشَغَلْتَہُ بِطَاعَتِکَ، 

और उन्हें अपनी याद एवं ज़िक्र की शिक्षा दी, और उनको अपने धन्यवाद करने की तौफ़ीक़ दी, और उन्हें अपनी आज्ञाकारिता में व्यस्त किया

وَصَیَّرْتَہُ مِنْ صَالِحِی بَرِیَّتِکَ، وَاخْتَرْتَہُ لِمُنَاجَاتِکَ، وَقَطَعْتَ عَنْہُ کُلَّ شَیْئٍ یَقْطَعُہُ عَنْکَ ۔ 

और उन्हें अपनी नेक पैदा की हुए चीज़ों में रखा, और उन्हें अपनी मुनाजाए एवं प्रार्थना के लिए चुना, और तूने उनसे वह सारी चीज़े जुदा कर दीं जो उन्हों तुझ से अलग कर सकती थी.

اَللّٰھُمَّ اجْعَلْنا مِمَّنْ دَٲْبُھُمُ الارْتِیاحُ إلَیْکَ وَالْحَنِینُ، وَدَھْرُھُمُ الزَّفْرَۃُ وَالْاَنِینُ، 

हे मेरे ईश्वर हमें उन लोगों में समिलित कर जिनकी जीवन में शैली तेरी प्रसन्ता पर ख़ुशी और तोरी बाहगाह में फ़रयाद करना है, और जिनका जीवन आह और फ़रियाद है,

جِباھُھُمْ سَاجِدَۃٌ لِعَظَمَتِکَ، وَعُیُونُھُمْ سَاھِرَۃٌ فِی خِدْمَتِکَ، وَدُمُوعُھُمْ سَائِلَۃٌ مِنْ خَشْیَتِکَ

उनका सर तेरी बड़ाई के आगे झुका है, और उनकी आँखें तेरे सामने जागती रहती हैं, और तेरे डर में उनके आँसू जारी हैं

 وَقُلُوبُھُمْ مُتَعَلِّقَۃٌ بِمَحَبَّتِکَ وَٲَفْئِدَتُھُمْ مُنْخَلِعَۃٌ مِنْ مَھَابَتِکَ 

और उनके दिल तेरी मोहब्बत में बंधें हैं, और उनके बातिन एवं आत्मा तेरे दबदबे से पिघले हुए हैं

یَا مَنْ ٲَ نْوارُ قُدْسِہِ لاََِ بْصَارِ مُحِبِّیہِ رَائِقَۃٌ، وَسُبُحَاتُ وَجْھِہِ لِقُلُوبِ عَارِفِیہِ شَائِفَۃٌ،

हे वह जिसकी पवित्रता और प्रकाश मोहब्बत करने वालों को प्यारे लगते हैं, और उसकी ज़ात एवं हस्ती के जलवे से आरिफ़ों के दिलों को खोलने वाले हैं

یَا مُنَیٰ قُلُوبِ الْمُشْتَاقِینَ وَیَا غَایَۃَ آمَالِ الْمُحِبِّینَ ٲَسْٲَلُکَ حُبَّکَ، وَحُبَّ مَنْ یُحِبُّکَ، 

हे शौक़ रखने वालों के दिलों की आरज़ू, हे मोहब्बत करने वालों की आशाओं की सीमा, मैं तुझ से तेरी मोहब्बत और तुझ से मोहब्बत करने वालों की मोहब्बत मांगता हूँ

وَحُبَّ ُلِّعَمَلٍ یُوصِلُنِی إلَی قُرْبِکَ، وَٲَنْ تَجْعَلَکَ ٲَحَبَّ إلَیَّ مِمَّا سِوَاکَ،

और हर उस कार्य की मोहब्बत जो मुझे तेरे पास लाने वाली है, और मैं चाहता हूँ कि दूसरों से अधिक अपनी ज़ात को मेरा महबूब बना,

وَٲَنْ تَجْعَلَ حُبِّی إیَّاکَ قائِداً إلَی رِضْوَانِکَ، وَشَوْقِی إلَیْکَ ذَائِداً عَنْ عِصْیانِکَ، 

और यह कि मैं तुझ से जो मोहब्बत करता हूँ उसे मेरे लिए स्वर्ग में जाने का माध्यम बना, और तेरे लिए मेरा जो शौक़ है उसे अवहेलनाओं में रुकावट बना दे

وَامْنُنْ بِالنَّظَرِ إلَیْکَ عَلَیَّ، وَانْظُرْ بِعَیْنِ الْوُدِّ وَالْعَطْفِ إلَیَّ، وَلاَ تَصْرِفْ عَنِّی وَجْھَکَ،

और अपनी निगाह डालकर मुझपर एहसान कर, और मुझको नर्म और मोहब्बत भरी निगाहों से देख, और मुझ से अपने चेहरे को ना फिरा

وَاجْعَلْنِی مِنْ ٲَھْلِ الْاِسْعادِ وَالْحَظْوَۃِ عِنْدَکَ، یَا مُجِیبُ، یَا ٲَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ ۔

और मुझे अपने पास सौभाग्य वालों और लाभ उठाने वालों में क़रार दे, हे दुआ स्वीकार करने वाले, हे सबसे अधिक रहम करने वाले।

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