मोहम्मद (स) का जन्म और बचपन
मोहम्मद (स) का जन्म और बचपन
सैय्यदा सकीना बानों अलवी
मक्का शहर पर अंधेरे और सन्नाटे का राज था, किसी प्रकार की कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही थी, केवल चाँद था जो हमेशा की तरह काले पहाड़ों के पीछे से निकल कर अपनी फीकी सी चाँदनी को घरों की छतों और रेगिस्तान में पहुंचा रहाथा।
धीरे धीरे आधी रात बीत गई और ठंडी एवं धीमी हवा ने हिजाज़ की ज़मीन को अपनी बाहों में ले लिया, और थोड़ी देर के लिए उसको आराम करने के लिए तैयार कर दिया, सितारों ने भी इस माहौल को और अधिक रहस्यमी बना दिया।
मक्के के कोनों में सुबह की सफ़ेदी धीरे धीरे दिखने लगी थी, लेकिन अभी भी एक रहस्यमी शामोशी ने शहर को घेर रखा था और सभी नींद में थे, केवल आमेनी थी जो जिस दर्द की प्रतीक्षा में थी उसको अनुभव कर रही थी... धीरे धीरे दर्द बढ़ता जा रहा था... अचानक उन्होंने कुछ अजनबी और सुन्दर चेहरे वाली औरतों को अपने कमरे में देखा जिनसे सुगंध आ रही थी, वह आश्चर्य में पड़ गईं कि यह औरतें कौन हैं और कैसे बंद द्वार से अंदर आ गई ?!! (1)
कुछ देर ना बीती थी कि उनके प्यारे बेटे ने इस दुनिया में क़दम रखा, और इस प्रकार महीनों की प्रतीक्षा के बाद 9 रबीउल अव्वल की सुबह को आमेना की आँखें अपने बेटे को देख कर रौशन हो गईं। (2)
सभी लोग प्रसन्न थे, लेकिन जब मोहम्मद (स) आमेना के सूने और अंधेरे घर को रौशन कर रहे थे तब अब्दुल्लाह आमेना के जवान पति की कमी उनको खल रही थी, वह शाम से मदीने की तरफ़ की अपनी यात्रा में इस दुनिया से चले गए थे और उनको वही दफ़्न कर गिया गया था, और हमेशा के लिए आमेना को अकेला छोड़ दिया था। (3)
मोहम्मद दुनिया में आ गए थे और उनके जन्म के साथ ही आसमान और ज़मीन विशेषकर पूर्व में जो उस समय ज्ञान और संस्क्रति का केन्द्र था कुछ घटनाएं हुईं।
अनूशेरवान का महल जिसने लोगों के सामने शक्ति और शंहनशानी हो जिस्मानी सूरत में प्रस्तुत किया था और लोग उस महल और अनुशेरवान की तरफ़ आशा भरी नज़रों से देखते थे, उस रात्रि को कांप गया और उसके चौदह कंगूरे टूट कर गिर गए। (4) फ़ारस का अतिश कदा कि जिसकी अग्नि हज़ार साल से जल रही थी अचान बुझ गई। (5)
सावा नदी का सूख जाना भी एक महान घटना थी जो उस समय घटी। (6)
पैग़म्बर की दाई हलीमा
अरब लोग अपने बच्चों के जन्म के बाद शहर के पास रहने वाली दाइयों के हवाले कर दिया करते थे, ताकि वह साफ़ सुधरी हवा में पलें बढ़ें और अरबी का सही और फ़सीह लहजा भी सीखें, जिसका अस्ली लहजा उस ज़मानें में पहाड़ों और रेगिस्तानों में रहने वालों में पाया जाता था। (7)
और दूसरी तरफ़ चूँकि बच्चे के लिए आमेना के पास दूध नहीं बन रहा था, तो मोहम्मद (स) के दादा अब्दुल मुत्तलिब सोंचने लगे कि किसी नेक किरदार औरत को अपने बेटे की निशानी के देखभाल करने के लिए चुने, और बहुत तलाश करने के बाद बनी साद क़बीले (जो अपनी बहादुरी और अच्छे लहजे के लिए प्रसिद्ध थे) की हलीमा को इस कार्य के लिए चुना।
हलीमा मोहम्मद को लेकर अपने क़बीले में चली गईं, हलीमा के एक और भी बच्चा था जिसके भरण पोषण का दायित्व उनके ऊपर था और दूसरी तरफ़ कई साल हो गए थे कि बनी साद का क़बीला सूखे की चपेट में था जिसने उनपर ग़रीबी और भुखमरी को ला दिया था।
जिस दिन से मोहम्मद (स) ने हलीमा के घर में क़दम रखा था, बरकतें उनकी घर आने लगी थीं, और उनका जीवन जोकि फ़क़ीरी और ग़रीबी में बीत रहा था धीरे धीरे बेहतर होने लगा और उनका और उनके बेटे का रंग उड़ा चेहरा खिल गया। उनका सूख चुका स्तन दूध से भर गया और भेड़ों एवं ऊँटों की चरागाहें हरी भरी हो गईं।
मोहम्मद (स) भी दूसरे बच्चों से अधिक तेज़ी से बढ़ रहे थे और अपने हमसिन बच्चों से तेज़ थे।
आपके कारण बरकतें इतनी अधिक हो गईं थी कि आस पास रहने वाले उसको देख रहे थे और उसको स्वीकार करते थे, जैसा कि हलीमा के पति हारिस ने हलीमा से कहाः क्या तुमको पता है कि हमको कितना पवित्र और मुबारक बच्चा मिला है? (8)
मोहम्मद दुखों के तूफ़ान में
मोहम्मद अभी 6 साल (9) के ही हुए थे कि उनकी माता आमेना अपने परिवार वालों से मिलने और शायद अपने पति की क़ब्र पर जाने के लिए मक्के से निकली और मोहम्मद (स) के साथ मदीने की तरफ़ चल पड़ी और अपने परिवार वालों से मिलने और पति की क़ब्र पर जाने के बाद मक्का पहुंचने से पहले ही अबवा नामी स्थान पर इस दुनिया से चल बसीं। (10)
इस प्रकार मोहम्मद (स) ने उस आयु में जब हर बच्चे को अपने पिता की मोहब्बत और माँ की आगोश चाहिए होती हैं उन दोनों से जुदा हो गए।
पैग़म्बर का प्रकाशमयी चेहरा
जिस प्रकार मोहम्मद (स) का जन्न और उस समय होने वाली आजीबों ग़रीब घटनाएं सबसे अलग थी उसी प्रकार आपकी बातें और व्यवहार एवं आचरण भी आपको दूसरे बच्चों के अलग करती थीं। (11)
मोहम्मद (स) के चचा अबूतालिब कहते थेः हम ने कभी भी मोहम्मद (स) से झूठ या को ख़राब या जाहिलाना कार्य नहीं देखा, ना वह बेजा हंसते थे और ना बेकार बोलते थे और अधिकतर अकेले रहते थे। (12)
जब मोहम्मद (स) सात साल के थे तो यहूदियों ने कहा कि हमने अपनी पुस्तकों में पढ़ा है कि पैग़म्बरे इस्लाम हराम और शंकित खानों को खाने से बचता है, क्यों ना हम उनकी परीक्षा ले। इसलिए उन लोगों ने एक मुर्ग़ा चुराया और अबुतालिब के पास उसके भेजा, सबने उसको खाया क्योंकि उनको नहीं पता था, लेकिन मोहम्मद (स) ने उसको हाथ भी ना लगाया, जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो आपने फ़रमायाः यह हराम है और ईश्वर ने मुझे हराम से सुरक्षित रखा है... फिर उन लोगों ने पड़ोसी के मुर्ग़े को पकड़ा और इस ख़्याल के साथ कि बाद में उसका पैसा दे देंगे, भेजा आपने तब भी उसको नहीं खाया और फ़रमायाः यह खाना शंकित हैं और... तब यहूदियों ने कहा यह बच्चा बहुत महान और उच्च स्थान वाला है। (13)
क़ुरैश के प्रमुख़ अब्दुल मुत्तलिब मोहम्मद (स) के साथ बाक़ी बच्चों की तरह व्यवहार नहीं करते थे, बल्कि आप उनके लिए उच्च स्थान और महानता के क़ाएल थे।
जब काबे के पास अब्दुल मुत्तलिब के लिए स्थान बनाया जाता था और उनके बेटे उस स्थान के पास के स्थान को घेर लेते थे और आपका वैभव इतना था कि कोई भी उस स्थान तक जाने से कतराता था, लेकिन मोहम्मद (स) कभी भी उस वैभव और शान को देख कर डरते नहीं थे और उस स्थान तक पहुंच जाया करते थे। अब्दुल मुत्तलिब के बेटे जब उनको रोकने का प्रयत्न करते थे तो वह कहते थेः मेरे बेटे को छोड़ दों, ख़ुदा की क़सम उसकी शान महान और उसका मर्तबा श्रेष्ठ है।
और तब मोहम्मद (स) क़ुरैश के प्रमुख अब्दुल मुत्तलिब के साथ बैठते थे और आपसे बातचीत किया करते थे। (14)
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स्रोत
1. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 325
2. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 250
3. कामिलुत तावारीख़, दूसरा भाग, पेज 10, तबक़ात, जिल्द 1, पेज 61
4. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 257
5. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेद 258- 263
6. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेद 258- 263
7. सीराए हलबीया, जिल्द 1, पेज 99
8. बिहारुल अनवार से लिया गया, जिल्द 15, पेज 331- 395, और सीराए अबने हेशाम, जिल्द 1, पेज 156- 160, और सीराए लहबिया, जिल्द 1, पेज 99
9. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 402 और 406
10. सीराए इबने हेशाम, जिल्द 1, पेज 168
11. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 382 और 402 और 366
12. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 382 और 402 और 366
13. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 366
14. बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 142, सीराए इबने हेशाम, जिल्द 1, पेज 168.
** निगरिशी कोताह बे ज़िन्दगी पयाम्बरे इस्लाम से लिया गया।
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