रसूले इस्लाम (स) का जन्म और उस समय की घटनाएं
रसूले इस्लाम (स) का जन्म और उस समय की घटनाएं
सैय्यदा सकीना बानो अलवी
इस्लामी साल के तीसरे महीने, वह महीना जिसे बहारों का महीना भी कहा जाता है यानी रबीउल अव्वल की 17वीं तारीख़ वह तारीख़ है जब इस इन्सानी समाज और संसार की आँखों ने इस स्रष्टि की सबसे बड़ी बहार देखी यानी हमारे और इस संसार के अंतिम बनी पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा का जम्न इसी तिथि को हुआ (1)
आपका जन्म भी आपके महान व्यक्तित्व की भाति महान और आश्चर्यजनक चीज़ों से भरा हुआ था। जब आपका जन्म हुआ तो इस संसार में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिन से पूरी दुनिया को पता चल गया की कोई अतभुद बच्चा पैदा हुआ है सबको पता चल गया कि अब आज को बाद नास्तिकों के लिए इस संसार में कोई स्थान नहीं रह गया।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) रबी उल अव्वल की 17वीं तारीख़ को आमुल फ़ील के साल में पैदा हुए यह वही साल है कि जब अबरहा नामी बादशाह ने ईश्वर के घर यानी क़ाबे को गिराने के लिए हाथियों की सेना भेजी (2)
इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत है किः इबलीस सातवें आसमान तक जाता था और वहां से आसमानी सूचनाएं और ख़बरें सुना करता था, जब हज़रत ईसा (अ) पैदा हुए तो (उस पर बापंदी गला दी गई) और वह केवल तीसरे आसमान तक जा सकता था, और जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) पैदा हुए तो उस पर आसमान में जानी से रोक लगा दी गई और शैतानों को उल्का पिंडो की मार के साथ आसमान के द्वारों से भगा दिया गया, तो क़ुरैश ने कहाः निःसंदेह दुनिया समाप्त होने और महाप्रलय का समय जिसको अहले किताब (यहूदी और ईसाई) कहा करते थे आ गया है, अमर बिन उमय्या जो जाहेलियत के युग में सबसे विद्वानी था ने कहाः उन प्रसिद्ध सितारों को जिसे उस युग के लोग गर्मी और सर्दी के समय पता लगाते थे देखो अगर उनमें से कोई एक गिर जाए तो जान लो कि यही वह समय है कि जब सारे संसार के लोग और सारी स्रष्टि समाप्त हो जाए और अगर वह अपनी पहली वाली अवस्था में ही निकलें (यानी उनमें से कोई सितारा ना टूटे) तो जान लो कि कोई ईश्वरीय कार्य होगा (3)
जब पैग़म्बरे इस्लाम पैदा हुए तो राक्षसों को भगा दिया गया और एक ऐसा भूकम्प आया जो सारी दुनिया तक फैल गया यहां तक कि चर्च वीरान हो गए और जो भी चीज़ ईश्वर के अतिरिक्त किसी और चीज़ की पूजा करती थी अपने स्थान से उखड़ गई और वह सितारे दिखाई देने लगे जो उससे पहले दिखाई नहीं देते थे, और यहूदी पुजारी यह देखकर आश्चर्य चकित रह गए (4)
कसरा का महल कांपा और उसके चार कुंगरे टूट कर गिर गए, (कुसरा उस युग का बहुत ही शक्तिशाली बादशाह था और उसका महल शक्ति का प्रतीक था और इसके कुंगरे टूटकर गिरने ने यह बता दिया कि आज के बाद ईश्वर के अतिरिक्त किसी दूसरे की शक्ति की कोई बिसात ना रह जाएगी।
फ़ारस का आतिशकदा (वह स्थान जहां अग्नि जल रही थी और लोग उसकी पूजा किया करते थे) जो हज़ारों सालों से जल रहा था वह बुझ गया (और इस अग्नि के बुझने ने सारे संसार को बताया कि देखों वास्तव में अगर कोई पूजे जाने के योग्य है तो वह ईश्वर है, वह अग्नि जो कभी जले और कभी बुझ जाए वह ईश्वर नहीं हो सकती,) और मजूसी विद्वानों ने उस रात सपने में देखा कि अरब के ऊँट बिगड़ैल घोड़ों को खींच रहे हैं और वह दजला नदी को पार करते हुए उनके शहरों में प्रवेश कर रहे हैं (5)
और कसरा का ताक़ बीच से टूट गया और दो टुकड़े हो गया और दजला नदी का पानी टूटा और उसके महल से बहने लगा, और उस रात हिजाज़ की तरफ़ से एक प्रकाश उठा और पूरे संसार पर फैल गया और पूर्व तक पहुंच गया,
उस समय संसार में जहां कहीं भी कोई भी बुत था वह उलट गया (और इन बुतों ने अपने इस कार्य से बताया कि वास्तविक ईश्वर को पहचनवाने वाला इस संसार में क़दम रख चुका है)
और सावा का दरिया जिसको लोग सालों से पूजते थे और जिसमें कभी पानी की कमी नहीं होती थी वह सूख गया और समावा वादी जो सालों से सूखी थी और किसी ने वहां पानी की एक बूंद ना देखी थी वहां पानी बहने लगा। (6)
उस सुबह हर बादशाह का तख़्त उलट गया ( जिसने सारे संसार को बता दिया कि वास्तविक बादशाह केवल ईश्वर है) था और सारे बादशाह उस दिन गूंगे हो गए थे, ज्योतिषयों का ज्ञान फेल हो गया था और जादूगरों के जादू में कोई असर नहीं रह गया था, और जिस भी भविष्वाणी करने वाले ने जो भी बात कही उसका उलट हुआ और क़ुरैश अरबों के बीच में सम्मानित हो गए और उनको आलुल्लाह (ईश्वर के परिवार वाला) कहा गया, क्योंकि वह ईश्वर के घर (काबे) के पास रहते थे। (7)
और रसूले इस्लाम (स) की माता आमेना ने कहाः जब मेरा बेटा ज़मीन पर पहुंचा तो उसने अपने हाथों को ज़मीन पर रखा और सर को आसमान की तरफ़ उठाया और आस पास देखा फिस उससे ऐस प्रकाश निकला जिसने हर चीज़ को प्रकाशमयी कर दिया और मैंने उसके प्रकाश से शाम के हमलों का प्रकाश देख और मैने इस प्रकाश के बीच एक आवाज़ सुनी कि कोई कहने वाला कह रहा थाः तू ने इन्सानों में सबसे बेहतरीन पुत्र को जन्म दिया है, उसका नाम मोहम्मद रखो। (8)
हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से रिवायत है कि जब पैग़म्बर पैदा हुए तो वह बुत जो काबे पर रखे गए थे सब ज़मीन पर गिर गए और जब शाम हुई तो आसमान से यह आवाज़ आईः جاءَ الحق و زهق الباطل إنَّ الباطل كان زهوقا (9) हक़ आया और बातिल समाप्त हो गया और बातिल समाप्त होने वाला है। (10) और सारा संसार उस रात प्रकाशमयी हो गया और हर पत्थर और पेड़ मुस्कुराया और आसमान एवं ज़मीन के बीच जो चीज़ भी थी उसने ख़ुदा की तस्बीह पढ़ी और शैतान यह कहता हुआ भागाः उम्मतो में सबसे बेहतरीन, बेहतरीन इन्सान और सबसे सम्मानित बंदा और सबसे बड़ा विद्वान मोहम्मद (स) हैं। (11)
स्वर्गीय तबरसी अपनी पुस्तक एहतेजाज में इमाम मूसा काज़िम (अ) से रिवायत करते हैं कि जब पैग़म्बर (स) ने जन्म लिया, तो आपने अपने बाएं हाथ को धरती पर रखा और दाहिने हाथ को आसमान की तरफ़ उठाया और अपने होंटों को ख़ुदा की तौहीद के लिए हिलाया और उनके पवित्र मुंह से एक ऐसा प्रकाश निकला कि मक्के के लोगों ने बसरी और उसके आस पास के महलों को जो शाम में है देख लिया और यमन और उसके आस पास के लाल महलों और फ़ारस और उसके आस पास के सफ़ेद महलों को देखा। और आपके जन्म की रात दुनिया प्रकाशमयी हो गई यहां तक कि इन्सान जिन्नता और शैतान डर गए और कहने लगे कि इस दुनिया में ग़ैबी काम हुआ है।
फ़रिश्तों को देखा जो नीचे आ रहे था और ऊपर जा रहे थे और ईश्वर की प्रशंसा एवं तस्बीह कर रहे थे, सितारे चलने लगे और हवा में इधर उधर जा रहे थे। (12)
और उस समय शैतान अपनी औलादों के बीच चिल्लाया यहां तक कि सब उसके पास एकत्र हो गए और कहने लगेः हमारे सरदार किस चीज़ ने आपको इतना डरा दिया है? उसने कहाः लानत हो तुम पर मैं रात्रि के आरम्भ से ही ज़मीन और आसमान के वातावरण को बदला बदला देख रहा हूँ इस धरती पर अवश्य ही कोई बड़ी घटना हुई है, तो उसकी औलादें अलग अळग जाकर देखने लगीं और वापस आ कर कहाः हमको तो कुछ नहीं मिला, शैतानों के सरदार इबलीस ने कहा इस कार्य को समझना मेरा काम है, फिर उसने सारे संसार में देखना आरम्भ किया यहां तक कि हरम तक पहुँचा चो उसने देखा कि फ़रिश्तों ने हरम को घेर रखा है, जब उसने चाहा कि हरम में प्रवेश करे तो फ़रिश्तों ने उसे डांटा और वह वापस पलट आया, फिर वह चिड़या की भाति छोटा हो गया और हिरा पहाड़ की तरफ़ से उसने प्रवेश किया, जिब्रईल ने कहाः ऐ मलऊन वापस पलट जा,
उसने जिब्रईल से कहाः हे जिब्रईल मेरा तुमसे एक प्रश्न है, मुझे बताओं आज की रात इस दुनिया में क्या हुआ है?
जिब्रईल ने कहाः मोहम्मद (स) जो पैग़म्बरों में सबसे बेहतरीन हैं का आज जन्म हुआ है.
उसने कहा क्या इसमें मेरा कोई लाभ है?
जिब्रईल ने कहाः नहीं।
इबलीस ने कहाः क्या उनकी उम्मत में मेरा कोई हिस्सा है?
जिब्रईल ने कहाः हां।
इबलीस ने कहाः मैं राज़ी हो गया। (13)
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स्रोत
(1) शेख़ कुलैनी, अलकाफ़ी, तहक़ीक़ः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, दारुल कुतुबुल इस्लामिया, 1389, जिल्द 1 पेज 439, और मज्लिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, दूसरा प्रकाशन, अलवफ़ा, लेबनान, बैरूत, 1403हि, जिल्द 15, पेज 348
(2) याक़ूबी, अहमद बिन इस्हाक़, तारीख़े याक़ूबी, अनुवादः मोहम्मद इब्राहीम आयती, इन्तेशाराते इलमी व फ़रहंगी, नवां प्रकाशन, तेहरान 1382, जिल्द 1, पेज 358
(3) सरवरी माजंदरानी, इबने शबर आशोब, मनाक़िब, क़ुम, इन्तेशाराते अल्लामा, बी ता, जिल्द 1, पेज 31, और मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 257
(4) याक़ूबी, अहमद बिन इस्हाक़, तारीख़े याक़ूबी, अनुवादः मोहम्मद इब्राहीम आयती, इन्तेशाराते इलमी व फ़रहंगी, नवां प्रकाशन, तेहरान 1382, जिल्द 1 पेज 359
(5) इबने कसीर, अबुल फ़िदा, अलहाफ़िज़, अलबिदाया वल निहाया, बैरूत, मकतबतुल मआरिफ़, 1410हि, जिल्द 2, पेज 268, और मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 257, और याक़ूबी, अहमद बिन इस्हाक़, तारीख़े याक़ूबी, जिल्द 1, पेज 359
(6) इबने कसीर, अबुल फ़िदा, अलहाफ़िज़, जिल्द 2, पेज 268 और 269, और मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 257- 258
(7) सरवरी माजंदरानी, इबने शहर आशोब, मनाक़िब, जिल्द 1, पेज 30
(8) इबने हेशाम, सीराए नबविया, दारे एहया अलतुरास अल अरबी, बैरूत लेबनान, जिल्द 1, पेज 166
(9) सूरा असरा आयत 81
(10) सरवरी माजंदरानी, इबने शहर आशोब, मनाक़िब, जिल्द 1, पेज 31, और मजलिसी मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 274
(11) मजलिसी मोहम्मद बाक़िर, हयातुल क़ुलूब, तहक़ीक़ सैय्यद अली इमामियान, चौथा प्रकाशन, कुम, इन्तेशाराते सरवर, 1382, जिल्द 3, पेज 141 और मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 274
(12) मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 247- 275
(13) रावंदी, क़ुतुब अलदीन, अलख़राएज वल जराएद, अलतहक़ीकः मोअस्ससातुल मेहदी, क़ुम, जिल्द 1, पेज 69-71 और मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहारुल अनवार, जिल्द 15, पेज 257
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