ख़ूने हुसैन का बदला लेने वाले हज़रत मुख़्तार के बारे में जानें
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
हज़रत मुख़्तार का नाम “मुख़्तार बिन अभी ओबैद बिन मसऊद बिन उमर बिन उमैर बिन औफ़ बिन ओक़दा बिन ग़ैरा बिन औफ़ बिन सक़ीफ़” था (1) और उनका लक़ब “कैसान” है (2) आपका जन्म पहली हिजरी को हुआ (3)
हज़रत मुख़्तार “ताएफ़” के रहने वाले थे और आप इमाम हुसैन के ख़ून का इन्तेक़ाम लेने वाले के तौर पर प्रसिद्ध हैं, हज़रत मुख़्तार कूफ़े में इमाम हुसैन के प्रतिनिधि हज़रत “मुस्लिम बिन अक़ील” के मेज़बान थे और आपकी शहादत तक मुख़्तार ने आपका साथ दिया।
जब हज़रत मुख़्तार ने ख़ूने हुसैन के इन्तेक़ाम का नारा बुलंद किया तो आपके इस आन्दोलन में आशूर के दिन इमाम हुसैन की हत्या में शरीक रहने वाले अधिकतर मुजरिमें को मौत के घाट उतार दिया गया।
हज़रत मुख़्तार के बचपन के बारे में हमारे पास बहुत अधिक जानकारी नहीं है लेकिन “शमसुद्दीन ज़बही” अपनी किताब “सीरे आलामुन्नोबला” में लिखा है कि हज़रत मुख़्तार ने “मोआविया” के युग में इमाम हुसैन की समर्थन किया था, मुख़्तार मोआविया के ज़माने में बसरा गए और उन्होंने लोगों से इमाम हुसैन का साथ देने की मांग की जिसके बाद बसरा के गवर्नर “उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद” ने आपको गिरफ़्तार कर लिया और 100 कोड़े लगाए जाने की सज़ा सुनाई और उसके बाद आपको ताएफ़ की तरफ़ देशनिकाला दे दिया गया (4)
कर्बला की घटना और मुख़्तार
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मुख़्तार कर्बला की घटना के समय वहां मौजूद नहीं थे, हां यह और बात है कि कर्बला से पहले उन्होंने कूफे में इमाम हुसैन के प्रतिनिधि हज़रत मुस्लिम का साथ दिया और बनी उमय्या के विरुद्ध आपकी गतिविधियों की ख़बर मिलती हैं।
मुस्लिम हज़रत मुख़्तार के घर में: मुसलमान कूफे में उन लोगों में से थे जिन्होंने हज़रत मुसलिम का साथ दिया जब हज़रत मुस्लिम कूफे पहुँचे हैं तो आप हज़रत मुख़्तार के घर पर ही ठहरे थे (5) जब इब्ने ज़ियाद के जासूसों ने मुख़्तार के घर में मुस्लिम के होने की सूचना उसको दी तो आप “हानी बिन उवरा” के घर चले गए (6)
मुस्लिम की सहायता: इतिहास बताता है कि मुख़्तार हज़रत मुस्लिम की सहायता करना चाहते थे लेकिन जिस समय हज़रत मुस्लिम को शहीद किया गया तब आप कूफ़े में नहीं थे, बल्कि कूफ़े से बाहर आपके लिए ताक़त जमा कर रहे थे और जब आप कूफ़े वापस आते हैं तो मुस्लिम की शहादत की ख़बर आपको मिलती है। (7)
आशूर के दिन जेल में: ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मुस्लिम की शहादत के बाद इब्ने जियाद मुख़्तार को भी मार देना चाहता था लेकिन “उमर बिन हारिस” के बीच बचाव के बाद आप को अमान मिल गई, लेकिन इब्ने ज़ियाद ने आपको जेल में डाल दिया और इमाम हुसैन की शहादत तक आप जेल में ही रहे। (8)
इमाम हुसैन का सर और मुख़्तारः जब कर्बला के लुटे हुए काफ़िले को कूफ़े लाया गया तो इब्ने ज़ियाद ने जो इमाम हुसैन के चाहने वाले जेल में बंद थे उनको इमाम हुसैन का कटा सर दिखाने के लिए बुलाया, सर देखने के बाद हज़रत मुख़्तार ने क्रोध में आकर इब्ने ज़ियाद को बुरा भला कहा, हज़रत मुख़्तार इमाम हुसैन का सर देख कर बहुत रोए और अपना सर हुसैन के सर पर रख दिया। (9)
मुख़्तार का आन्दोलन
जेल से आज़ाद होने के बाद हज़रत मुख़्तार ने इमाम हुसैन के हत्यारों से बदला लेने की ठानी और आपने 14 रबीउल अव्वल को (10) “यासारातुल हुसैन” और “या मंसूर उम्मत” का नारा लगाया, और इन्हीं दो नारों के साथ आपने युद्ध के वस्त्र धारण कर लिए और इसी के साथ मुख़्तार का आन्दोलन शुरू हो गया। (11) आपके इस आन्दोलन में कूफ़े के शियों ने आपका साथ दिया, मुख़्तार कहा करते थे कि अगर मैं दो तिहाई क़ुरैश को भी मार दूँ तब भी हुसैन की एक उँगली का भी बदला पूरा न होगा। (12)
हज़रत मुख़्तार ने अपने इस आन्दोलन में “शिर्म बिन ज़िलजौशन”, “ख़ूली बिन यज़ीद”, “उमर बिन सअद” और “उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद” जैसे मलऊनों को क़त्ल किया। (13)
जब हज़रत मुख़्तार ने उबैदुलल्हा बिन ज़ियाद और उमरे आस के सर “मोहम्मद हनफ़िया” के पास भेजे ताकि मस्जिदुल हराम में उनके सर टाँग दिए जाए, तब मोहम्मद हनफ़िया ख़ाना खा रहे थे, जब इन दोनों के सर उनके पास लाए गए तो आपने ख़ुदा का शुक्र अदा किया और कहा जब हुसैन का सर इब्ने ज़ियाद के पास लाया गया था तब वह खाना खा रहा था और आज ज़माने ने पलटा खाया है जब उसका सर लाया गया है तो मैं खाना खा रहा हूँ। (14)
मुख़्तार और इमाम सज्जाद (अ) के संबंध
हज़रत मुख़्तार के “इमाम सज्जाद” के साथ किस प्रकार के संबंध थे इस बारे में ऐतिहासिक किताबों में बहुत ही भिन्न प्रकार की बातें मिलती हैं, कुछ स्थानों पर मिलता है कि इमाम सज्जाद हज़रत मुख़्तार से प्रसन्न नहीं थे और जो उपहार मुख़्तार ने इमाम सज्जाद के पास भेजते थे वह आप वापस लौटा देते थे (15) दूसरी तरफ़ कुछ किताबों से हमें पता चलता है कि हज़रत मुख़्तार को इमाम की तरफ़ से सहमति प्राप्त थी, लेकिन “मरवान” और “आले ज़ुबैर” की तरफ़ से जारी घुटन भरे माहौल और दमनकारी नीतियों के कारण इमाम सज्जाद खुल कर मुख़्तार के आन्दोलन में शरीक नहीं हो सकते थे और यही कारण था कि आपने मोहम्मद बिन हनफ़िया को इस आन्दोलन में अपना प्रतिनिधि बनाया था और मुख़्तार से कहा था कि जो भी ख़बर हो हनफ़िया तक पहुँचाई जाए। इन किताबों के अनुसार हज़रत मुख़्तार ने इमाम सज्जाद के पास 20000 दीनार भेजे जिसमें आपने स्वीकार किया और इस पैसे से अक़ील बिन अबीतालिब और दूसरे बनी हाशिम को ख़राब हो चुके ख़रों की मरम्मत करवाई। (16) इसी प्रकार मुख़्तार ने एक दासी जो 30000 दीनार में ख़रीदी थी को इमाम सज्जाद को उपहार में भेंट की जिससे बाद में हज़रत ज़ैद बिन अली पैदा हुए। (17)
एक दस्तावेज़ में आया है कि जब कूफ़े के कुछ सरदार इमाम सज्जाद के पास पहुँचे और उन्होंने हज़रत मुख़्तार के आन्दोलन के सिलसिले में आपकी राय मांगी तो आपने उन सभी को हनफ़िया के पास भेज दिया और फ़रमायाः हे चचा अगर ज़ंगी ग़ुलाम हम अहलेबैत के लिए तअस्सुब दिखाए तो लोगों पर वाजिब है कि उसकी सहायता करें और इस बारे में आप जो चाहें करें मैंने इस कार्य आपको अपना प्रतिनिधि बनाया है। (18)
मुख़्तार का अंत
18 महीने तक हुकूमत करने और मरवानियों, आले ज़ुबैर और कूफ़े के सरदारों से शाम, हेजाज़ और कूफ़ा में लड़ने के बाद आख़िरकार 14 रमज़ान सन 67 हिजरी को हज़रत मुख़्तार “मुसअब बिन ज़ुबैर” के हाथों क़त्ल कर दिए गए। (19) आपकी हत्या के बाद मुसअब के आदेश से आपका सर काट कर “मस्जिदे कूफ़ा” में टाँग दिया गया, और जब “हज्जाज बिन यूसुफ़ सक़फ़ी” ने कूफ़े पर अधिकार किया तो चूँकि वह भी सक़फ़ी कबीले से था इसलिए उसके आदेश से हज़रत मुख़्तार को दफ़्न किया गया। (20)
समाधि
हज़रत मुख़्तार की शहादत के बाद उनके शरीर को मस्जिदे कूफ़ा के पास सरकारी महल की दीवार में दफ़्न कर दिया गया, आपकी क़ब्र के बारे में बहुत समय तक किसी को कुछ पता नहीं था यहां तक कि “सैय्यद महदी बहरुल उलूम” ने अपने ज़माने में मस्जिद के मेहराब और दूसरी चीज़ों के अस्तित्व के बारे में छानबीन शुरू की तब आपने यह आदेश दिया की पूरी मस्जिदे कूफ़ा को मिट्टी से भर दिया जाए क्योंकि मस्जिदे कूफ़ा की ज़मीन गहराई में ती जिसके कारण गलियों का पानी और गंदगी मस्जिद में आती थी, आपके आदेश से पूरी मस्जिद को पवित्र मिट्टी से भर दिया गए और उसके बाद पूरी मस्जिद को उसके पूर्व नक़्शे के हिसाब से उसी प्रकार दोबारा बना दिया गया।
जिस समय मस्जिद के बारे में छानबीन की जा रही थी जब वहां पर एक छिपी हुई क़ब्र मिलती है वह क़ब्र दालान के अंत में तहख़ाने में मस्जिद के बार सरकारी महल के पास थी, उस क़ब्र पर एक पत्थर लगा था जिस पर मुख़्तार का नाम और लक़ब लिखा था। (21)
कब्र मिलने के बाद मोहसिन अलहाज अबूद शलाल ने उनके क़ब्र पर रौज़ा बनाया और उसके सहन को हज़रत मुसलिम के रौज़े से जोड़ दिया। (22)
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1. उसदुल ग़ाब्बा जिल्द 4, पेज 346
2. तारीख़े तबरी जिल्द 6, पेज 7
3. उसदुल गाब्बा जिल्द 4, पेज 347, अलकामिल फ़ीत्तारीख़ जिल्द 2, पेज 111)
4. सीरे आलामुन्नोबला जिल्द 3, पेज 544
5. अलअख़बारुत्तवाल इब्ने क़तीबा दैयनवरी पेज 231
6. अख़बारुत्तवाल पेज 233
7. तारीख़े तबरी जिल्द 5, पेज 569, अनसाबुल अशराफ़ जिल्द 6, पेज 367
8. अनसाबुल अशराफ़ जिल्द 6, पेज 377
9. बा कारवाने हुसैनी जिल्द 5, पेज 140
10. तारीख़े इब्ने ख़लदून जिल्द 2, पेज 44
11. अनसाबुल अशराफ़ जिल्द 6, पेज 390, तरीख़े तबरी जिल्द 6, पेज 20
12. अलफ़ख़री पेज 122
13. उसदुल ग़ाब्बा जिल्द 4, पेज 347
14. अफ़रीनिश व तारीख़/ अनुवाद जिल्द 2, पेज 913
15. बेहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 344, मोजमुर्रेजाल, खूई, जिल्द 18, पेज 96
16. मोजमुर्रेजाल, ख़ूई, जिल्द 18, पेज 96
17. मक़ातेलुत्तालेबीन पेज 124
18. बेहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 365
19. उसदुल ग़ाब्बा जिल्द 4, पेज 347
20. अलकामिल फ़ीत्तारीख़ जिल्द 6, पेज 445
21. मस्जिदे कूफ़ा की आधिकारिक वेबसाइट
22. तनज़ीहुल मुख़्तार पेज 14
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