नमाज़ और प्रेम
नमाज़ और प्रेम
जो मुहब्बत मस्जिद के नमाज़ीयो के दरमियान पायी जाती है ऐसी मुहब्बत किसी दूसरी जगह पर देखने को नही मिलती।
मस्जिद के नमाज़ियों का मिज़ाज यह बन जाता है कि अगर एक नमाज़ी दो तीन दिन न आये तो आपस मे एक दूसरे से उसके बारे मे पूछने लगते हैं। और अगर वह मरीज़ होता है तो उसकी अयादत के लिए जाते हैं। अगर वह किसी मुश्किल मे घिरा होता है तो उसकी मुश्किल को हल करते हैं। लिहाज़ा मस्जिद के नमाज़ियों को तन्हाई का ऐहसास नही होता। अगर किसी के कोई भाई या बेटा न हो और वह नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद मे जाता हो तो उसको ऐसा लगने लगता है कि सब उसके भाई बेटे हैं।
अकसर देखा गया है कि जब कोई नमाज़ी इस दुनिया से जाता है तो उसके जनाज़े मे एक बड़ी तादाद मे लोग शिरकत करते हैँ और इज़्ज़तो एहतिराम के साथ उसको दफ़्न करते है। उसके लिए जो मजलिसें की जाती हैं उनमे भी रोनक़ होती है। यह सब उस दिली मुहब्बत की निशानी है जो मस्जिद के नमाज़ियों मे आपस मे पैदा हो जाती है।
अगर कोई नमाज़ी हज करके आये या उसके यहाँ बेटे या बेटी की शादी हो तो वह इन मौक़ों पर अपने दिल मे मुहब्बत की एक खास गर्मी महसूस करता है। वह अपनी खुशी व ग़मी मे लोगों को अपना शरीक पाता है। नमाज़ियों के दरमियान पायी जाने वाली इस मुहब्बत का किसी दूसरी चीज़ से मुक़ाबला नही किया जा सकता।
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