ख़ालिद की गर्दन में लोहे का फंदा!

ख़ालिद की गर्दन में लोहे का फंदा!


ख़ालिद बिन वलीद जो कि अलवी ख़ानदान का एक चिर शत्रु और बहुत ही घमंडी और अहंकारी व्यक्ति था,  एक दिन अपनी सेना के साथ कहीं जा रहा था उसने अमीरुल मोमिनीन अली (अ) को देखा जोकि उसकी ज़मीन पर थे, उसने सोंचा कि आज अली को अपमानित किया जाए, हज़रत अली उसकी बुरी नियत के भांप गए, आप ख़ालिद के पास गए और उसको घोड़े से नीचे उतारा और पास में ही एक चक्की थी वहां घसीट कर ले गए, आपने उस चक्की के पत्थर के पाट के से लोहे की रॉड को निकाला और एक काग़ज़ की भाति उसको फाड़ कर एक फंदा बनाकर ख़ालिद की गर्दन में डाल दिया।

ख़ालिद और उसके साथी डर एवं भय से थर थर कांपने लगे, ख़ालिद जो कि अभी तक सोंच रहा था कि अली से इन्तेक़ाम लिया जाए अब वह रोने और गिड़गिड़ाने लगा और अली को क़सम देने लगा कि उसको छोड़ दें, अली ने भी उसको छोड़ दिया जब्कि वह पत्थर का फंदा उसके गले में था, जो ख़ालिद जैसे घमंडी और अहंकारी व्यक्ति के लिए एक अपमानजनक स्तिथि थी और वह विवश था कि इसी प्रकार लोगों से मिले जुले और उनके बीच जाए।

संक्षिप्त यह है कि उसने हर कार्य कर लिया ताकि किसी प्रकार इस रॉड को अपने गले से निकाल सके लेकिन कर न सका। वह अबू बक्र के पास गया और उनसे सहायता मांगी लेकिन उसके दिमाग़ में भी कोई युक्ति न आई, वह लोहार के पास गया, उसने भी कहाः हमारा सारा कार्य आग से होता है और इसके अतिरिक्त कोई और चारा मेरे पास नहीं है कि इसको आग मे तवाऊं ताकि गर्म हो कर यह नर्म हो जाए, जिसके नतीजे में ख़ालिद की मौत हो सकती थी, ख़ालिद इसी धुन में लगा हुआ था कि किस प्रकार इसको निकाला जाए, जो भी उसको देखता उसपर हंसता था, घमंडी ख़ालिद ने इसी अपमानजनक स्तिथि में कुछ दिन बिताए, वह स्वंय पर अफ़सोस कर रहा था कि क्यों अली के मुक़ाबले में आया और उनसे शत्रुता की।

समाज में अपमान, तिरस्कार और गिरने के बाद जब इमाम अली (अ) अपनी यात्रा से वापस आए तो वह आपके पास गया और आपसे क्षमा मांगते हुए आपसे उस लोहे को निकालने के लिए कहा आपने भी आपमान से झुकी हुई ख़ालिद की गर्दन से उस लोगे की राड को मिट्टी की भाति तोड़ कर अलग कर दिया।

(मुनतहल आमाल जिल्द 1 पेज 112 क़िस्साहाई मांदगार, नुक्तहाई नाब से लिया गया पेज 14)

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