दुआ या प्रार्थना करते समय आसमान की तरफ़ हाथ क्यों उठाते हैं?

दुआ या प्रार्थना करते समय आसमान की तरफ़ हाथ क्यों उठाते हैं?

लेखकः आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

   कभी कभी लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि जब ईश्वर के लिए कोइ विशेष स्थान नही है यानी वह हर स्थान पर है तो फिर दुआ करते समय आसमान की तरफ़ क्यों हाथ उठाते हैं? आसमान की तरफ़ देख कर क्यों प्रार्थना करते हैं? क्या ईश्वर आसमान में है?

प्रिय पाठकों यह प्रश्न हमारे इमामों के युग में भी होता था जैसा कि हमें इतिहास में मिलता है कि हेशाम बिन हकम कहते हैं: एक नास्तिक हज़रत इमाम सादिक़ (अ) के पास आया और उसने यह आयत पढ़ी

اَلرَّحْمٰنُ عَلَی الْعَرْشِ اسْتَویٰ

(सूरा ताहा आयत 5)

वह रहमान अर्श (आसमान) पर अख़्तियार और शक्ति रखने वाला है।

इमाम (अ) ने स्पष्ट करते हुए फ़रमायाः ईश्वर को किसी स्थान या किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सारी स्रष्टि उसकी मोहताज है।

प्रश्न करने वाले ने कहाः तो फिर कोई अंतर नहीं है कि (प्रार्थना करते समय) हाथ आसमान की तरफ़ किये जाएं या ज़मीन की तरफ़?

तब इमाम (अ) ने फ़रमायाः यह विषय ख़ुदा के लिए बराबर है (यानी इसमें कोई अतंर नहीं है कि हाथ किस तरफ़ हों) लेकिन ईश्वर ने अपने नबियों और नेक बंदों को आदेश दिया है कि अपने हाथों को आसमान की तरफ़ उठाएं, क्योंकि रोज़ी का स्थान वहीं है, जो कुछ पवित्र क़ुरआन और हदीसों से साबित है हम उसको मानते हैं जैसा कि इरशाद होता हैः अपने हाथों को ख़ुदा की बारगाह में उठाओं।

इस बात पर सारे इस्लामी सम्प्रदायों के मत एक है। (1)

इसी प्रकार शेख़ सदूक़ की पुस्तक ख़िसाल में हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से रिवायत हैः

''ذَا فَرغَ أحدکُم مِنَ الصَّلوٰةِ فَلیرفعُ یدیہِ لیٰ السَّمَائِ، ولینصَّب فِ الدعائِ''

जब तुम नमाज़ समाप्त कर लो तो अपने हाथों को आसमान की तरफ़ उठाओं और दुआ में लग जाओ।

उस समय एक व्यक्ति ने कहाः हे अमीरुल मोमिनीन (अ) क्या ख़ुदा हर स्थान पर नहीं है?

इमाम ने फ़रमायाः हां हर स्थान पर मौजूद है।

उस व्यक्ति ने कहाः तो फिर लोग आसमान की तरफ़ हाथ क्यों उठाते हैं?

तब इमाम अली (अ) ने यह आयत पढ़ी

وَفِی السَّمَائِ رِزْقُکُمْ وَمَا تُوْعَدُوْنَ

(सूरा ज़रेयात आयत 22)

और आसमान में तुम्हारी रोज़ी है और जिन बातों का तुमसे वादा किया गया है (सब कुछ मौजूद है) (2)

इन रिवायतों के अनुसार चूँकि इन्सान की अधिकतर रोज़ी आसमान से है (वर्षा जिससे बंजर धरती खेती के योग्य हो जाती है, वह आसमान से होती है, सूरज की किरने जो कि जीवन के लिए आवश्यक है आसमान से आती हैं, हवा भी आसमान में है जो कि जीवन के लिए तीसरा सबसे बड़ा कारण है) और आसमान रोज़ी एवं ईश्वरीय अनुकम्पाओं का केन्द्र है। इसलिए दुआ के समय आसमान की तरफ़ देखा जाता है और रोज़ी के मालिक एवं पैदा करने वाले से अपनी समस्याओं के निपटारे के लिए प्रार्थना की जाती है।

कुछ रिवायतों में इस कार्य (प्रार्थना के समय हाथ को आसमान की तरफ़ उठाना) के लिए दूसरा कारण बयान किया गया है, और वह है ईश्वर के सामने अपने को अपमानित दिखाना क्योंकि किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के सामने तवाज़ो ज़ाहिर करने के समय झुकते समय अपने हाथों को उठाते हैं।

(1) बिराहुल अनवार, जिल्द 3, पेज 330, तौहीदे सदूक़, पेज 248, हदीस 1 बाब 36 "बाबुल रद्द अलस सनविया वल ज़नादेक़ा
(2) बिहारुल अनवार जिल्द 90, पेज 308, हदीस 7, यह हदीस तफ़्सीरे नूरुल सक़लैन जिल्द 5, पेज 124 और 125 पर भी आई है।

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