मुंहतोड़ जवाब!!!
मुंहतोड़ जवाब!!!
ताज ज़ैदी
एक दिन ज्ञानी बहलोल एक मस्जिद के पास से जा रहे थे, आपने सुना कि अबू हनीफ़ा भाषण दे रहा है, आप मस्जिद के पास कुछ देर खड़े रहे और उसकी बातों को सुनते रहें, आपने देखा कि वह कह रहा थाः
इमाम सादिक़ (अ) तीन बातें ऐसी कहते हैं जो मेरी निगाह में सही नहीं हैं
1. वह कहते हैं कि ख़ुदा मौजूद है, लेकिन दिखाई नहीं देता,
और यह सही नहीं है इसका कोई अर्थ ही नहीं है, यह कैसे हो सकता है कि कोई चीज़ हो लेकिन दिखाई न दे? हो भी और न भी हो यह कैसे हो सकता है, जो कुछ भी इस संसार में है वह दिखाई देता है और जो दिखाई नहीं देता है उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।
दूसरे शब्दों में यू कहा जाए कि अगर ख़ुदा है तो उसको दिखाई देना चाहिए, और अगर वह दिखाई नहीं दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि उसका अस्तित्व ही नहीं हैः तो यह कैसे कहा जा सकता है कि ख़ुदा है तो लेकिन दिखाई नहीं देता है!! कम से कम उसके नेक बंदों को तो दिखाई देना चाहिए।
2. इमाम सादिक़ कहते हैं कि शैतान को क़यामत के दिन आग से जलाया जाएगा।
यह बात भी सही नहीं है क्योंकि शैतान स्वंय आग से बना है और आग आग को नहीं जला सकती, तो उसको आग से अज़ाब कैसे दिया जाएगा? यह तो ऐसा ही है कि हम कहें कि पानी को पानी से सज़ा देंगे।
3. इमाम सादिक़ कहते हैं कि इन्सान का कार्य और उसका व्यवहार स्वंय उससे सम्बंधित है और स्वंय उनके इरादे से अंजाम पाता है, और वह स्वंय उस कार्य या व्यवहार के जावबदेह हैं, जिसके नतीजे में उनको सवाब या अज़ाब दिया जाएगा।
जब्कि ऐसा नहीं है क्योंकि नेकी या बुराई ख़ुदा की तरफ़ से है, और इन्सानों को इसका कोई अख़्तियार नहीं है, और इस संसार में जो कुछ भी इन्सान करता है गोया वह ख़ुदा करता है, इन्सान उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है।
जब अबू हनीफ़ा की बातें समाप्त हो गईं तो बहलोल ने एक पत्थर उठाया और अबू हनीफ़ा के दे मारा उसके सर से ख़ून बहने लगा।
अबू हनीफ़ा ने क़ाज़ी से शिकायत की कि मैं पाठ पढ़ा रहा था और बहलोल ने मुझे पत्थार मार दिया।
क़ाज़ी ने बहलोल से पूछाः तुम ने पत्थर क्यों मारा?
बहलोल ने कहाः मैं मस्जिद के पास से जा रहा था कि मैंने देखा कि यह अपनी ग़लत बातों से लोगों को पथभर्ष्ठ कर रहा है उनको गुमराह कर रहा है और सच्चे इमाम के विरुद्ध लोगों के विश्वास को ख़राब कर रहा है।
और मैंने पत्थर उसके ख़राब तर्कों का उत्तर है वरना मैंने क्रोथ से यह कार्य नहीं किया है।
क़ाज़ी ने कहाः यह कैसे साबित करोगे?
बहलोल ने कहाः क़ाज़ी इससे पूछों कि इसको दर्द हो रहा है? अगर दर्द है तो हमको दिखाई क्यों नहीं दे रहा है? या स्वंय उसको क्यों नही दिखाई दे रहा है? यह कैसे संभव है कि एक जीज़ हो लेकिन दिखाई न दे?
जैसा कि वह स्वंय कहता है किः जो चीज़ दिखाई नहीं देती उसका कोई अस्तित्व नहीं है, हम भी यही कहते हैं क्योंकि इसका दर्द दिखाई नहीं देता इसका मतलब यह है कि वह है ही नहीं।
और हे क़ाज़ी आप इससे पूछिये कि किस प्रकार यह ढेला उसके हानि पहुँचा सकता है? जब्कि यह ढेला भी मिट्टी का है और यह ख़ुद भी मिट्टी से ही पैदा हुआ है।
क्योंकि यह स्वंय कहता है कि जो चीज़ ख़ुद उसी चीज़ से बनी हो उससे उसको अज़ाब कैसे दिया जा सकता है
अगर ऐसा नहीं है तो इसको मानना चाहिए कि इसकी बात ग़लत और इमाम सादिक़ (अ) की बात सही है
इसके अतिरिक्त मैं तो यह कहूँगा कि मुझसे क्यों सवाल कर रहे हो? मुझे इस कार्य का ज़िम्मेदार क्यों मान रहे हो? जब्कि यह स्वंय कहता है कि इन्सान जो भी कार्य करता है वह ख़दा करता है और ख़ुदा उसके हर कार्य का ज़िम्मेदार है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि इस पत्थर का भी ज़िम्मेदार ख़ुदा है न कि मैं।
बहलोल ने यह बातें कहीं और चल दिए कोई भी उनका रास्ता न रोक सका क्यों कि कहते हैं न कि सच्ची बात का जवाब नहीं हो सकता अहलेबैत के दामन में पले बहलोल ने अपने ज्ञान और बुद्धि से ख़ुदा के शत्रु को अपमानित कर दिया और ऐसा मुंह तोड़ उत्तर दिया कि रहती दुनिया तक के लिए यह सबक़ बन कर रह गया और अब कोई यह कहता हुआ नहीं मिलेगा कि जो कुछ दिखाई नहीं देता उसका अस्तित्व नहीं है।
नुक्ताहाई नाब क़िस्साहाई मांदगार पेज 13, 14, 15 का सारांश
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