पैग़म्बरे इस्लाम का सबसे बड़ा चमत्कार, क़ुरआन!

पैग़म्बरे इस्लाम का सबसे बड़ा चमत्कार, क़ुरआन!

हमारा विश्वास है कि पवित्र क़ुरआने पैग़म्बरे इस्लाम (स)का सब से बड़ा मोजज़ा है और यह केवल फ़साहत व बलाग़त, अपने बयान का बेहतरीन अंदाज़ और गहरे एवं चिंतनीय अर्थ होने के एतबार से ही नही बल्कि और विभिन्न कारणों से मोजज़ा है। और इन तमाम कारणों को अक़ाइद व कलाम की किताबों में विस्तार से बयान किया गया है।

इसी वजह से हमारा विश्वास है कि दुनिया में कोई भी इसका उत्तर नही ला सकता यहाँ (यानि उसके जैसी कोई दूसरी पुस्तक प्रस्तुत नहीं कर सकता है)तक कि लोग इसके एक सूरे के जैसा कोई दूसरा सूरा भी नही ला सकते। क़ुरआने करीम ने उन लोगों को जो इस के ईश्वरीय होने के बारे में शक एवं शंका में थे कई बार इस के मुक़ाबले का निमंत्रण दिया मगर वह इस के मुक़ाबले की हिम्मत पैदा न कर सके।

जैसा कि स्वंय क़ुरआन में आयत आई है कि अल्लाह फ़रमाता हैः

قُلْ لَئِنِ اجْتَمَعَتِ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَىٰ أَنْ يَأْتُوا بِمِثْلِ هَٰذَا الْقُرْآنِ لَا يَأْتُونَ بِمِثْلِهِ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِيرًا

“क़ुल लइन इजतमअत अलइँसु व अलजिन्नु अला यातू बिमिस्लि हाज़ा अलक़ुरआनि ला यातूना बिमिस्लिहि व लव काना बअज़ु हुम लिबअज़िन ज़हीरन। (सूरा असर आयत 88)

यानी कह दो कि अगर जिन्नात व इंसान मिल कर इस बात पर एकमत हो जाएं कि क़ुरआन के जैसी कोई किताब ले आयें तो भी इस के जैसी कोई दूसरी (पुस्तक) नही ला सकते चाहे वह आपस में इस काम में एक दूसरे की मदद ही क्योँ न करें।

और इसी प्रकार लोगों को इसका मुक़ाबला करने का निमंत्रण देते हुए अल्लाह इसी पवित्र क़ुरआन में दूसरे स्थान पर फ़रमाता हैः

 وَإِن كُنتُمْ فِي رَيْبٍ مِّمَّا نَزَّلْنَا عَلَى عَبْدِنَا فَأْتُواْ بِسُورَةٍ مِّن مِّثْلِهِ وَادْعُواْ شُهَدَاءكُم مِّن دُونِ اللّهِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

“व इन कुन्तुम फ़ी रैबिन मिन मा नज़्ज़लना अला अबदिना फ़ातू बिसूरतिन मिन मिस्लिहि व अदउ शुहदाअ कुम मिन दूनि अल्लाहि इन कुन्तुम सादिक़ीन ”[सूरा बक़रा आयत 23]

यानी जो हम ने अपने बन्दे (रसूल) पर नाज़िल (उतारा है) किया है अगर तुम इस में शक करते हो तो कम से कम इस के जैसा  एक सूरा ले आओ और इस काम पर अल्लाह के अलावा अपने गवाहों को बुला लो अगर तुम सच्चे हो।

हमारा विश्वास है कि जैसे जैसे ज़माना बीतता जा रहा है क़ुरआन के चमत्का और मोजिज़ा होने के नुकात पुराने होने के बजाये और अधिक रौशन होते जा रहे हैं और इस की महानता सारी दुनिया के लोगों पर ज़ाहिर व आशकार हो रही है।

इमाम सादिक़ (अ) ने एक हदीस में फ़रमाया है कि

ان اللہ تبارک و تعالی لم یجعلہ لزمان دوزمان و لناس دون ناس فھو فی کل زمان جدید و عند کل قوم غض الی یوم القیامة۔

“इन्ना अल्लाहा तबारका व तआला लम यजअलहु लिज़मानिन दूना ज़मानिन व लिनासिन दूना नासिन फ़हुवा फ़ी कुल्लि ज़मानिन जदीदिन व इन्दा कुल्लि क़ौमिन ग़ुज़्ज़ इला यौमिल क़ियामति। ” [66]

यानी अल्लाह ने पवित्र क़ुरआने को किसी विशेष ज़माने या किसी विशेष गिरोह से मख़सूस नहीं किया है इसी वजह से यह हर ज़माने में नया और क़ियामत तक हर क़ौम के लिए तरो ताज़ा रहेगा।

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