इमाम हुसैन (अ) के कथन भाग 3
इमाम हुसैन (अ) के कथन भाग 3
21- قال الحسین علیه السلام:
اَلبُکاءُ مِن خَشیةِ اللهِ نَجآةٌ مِنَ النّارِ؛
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः ख़ुदा के ख़ौफ़ से रोना नर्क की आग से बचाता है।
22- قال الحسین علیه السلام:
فلعمري ما الإمام إلاّ الحاكم بالكتاب، القائم بالقسط، الدّائن بدين الحق، الحابس نفسه علي ذات الله؛
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः मुझे मेरी जान की क़सम इमाम और लीडर नहीं है मगर वह जो ख़ुदा की किताब (क़ुरआन) के आधार पर लोगों के बीच फ़ैसला करे, और अदालत एवं न्याय के लिए उठ खड़ा हो, और दीने हक़ के आधार पर दीनदारी करे, और जो चीज़ ख़ुदा से संबंधित है उससे ख़ुद को रोके (ख़ुदा की ख़ुशी के लिए अपने नफ़्स के कंट्रोल करे।)
23- قال الحسین علیه السلام:
موتٌ فی عزِّ خیرٌ من حیاة فی ذُلٍّ؛
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः इज़्ज़त की मौत ज़िल्लत की ज़िन्दगी से बेहतर है।
4- مِن وصیّته علیه السلام لأخیه محمّد الحَنَفیّة:
«إِنّی لَمْ أَخْرُجْ أَشِرًا وَ لا بَطَرًا وَ لا مُفْسِدًا وَ لا ظالِمًا وَ إِنَّما خَرَجْتُ لِطَلَبِ الاِْصْلاحِ فی أُمَّةِ جَدّی (صلی الله عليه وآله وسلم) أُريدُ أَنْ آمُرَ بِالْمَعْروفِ وَ أَنْهی عَنِ المُنْكَرِ وَ أَسيرَ بِسيرَةِ جَدّی وَ أَبی عَلِی بْنِ أَبيطالب.»:
इमाम हुसैन (अ) ने अपने भाई मोहम्मद हनफ़िया से अपनी वसीयत के अंतरगत यह लिखाः
मैंने तफ़रीह और मनोरंजन के लिए नहीं निकला हूँ (यह हदीस आपने उस समय फ़रमाई जब आप यज़ीद की बैअत का इन्कार करके कर्बला की तरफ़ जा रहे थे और लोगों ने आपसे वहां जाने का कारण पूछा था) और न ही फ़साद और अत्याचार फैलाने के लिए निकला हूँ
बल्कि मैं निकने का मक़सद केवल अपने नाना मोहम्मद (अ) की उम्मत की इस्लाह और उसका सुधार करना है, मैं नेकियों का आदेश और बुराईयों से रोकना चाहता हूँ (अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर) और अपने नाना और पिता अली इबने अबी तालिब की सीरत और शैली पर चलना चाहता हूँ।
25- قال الحسین علیه السلام:
إیاک و ما تعتذر منه فإنّ المؤمن لا یُسيء و لا یعتذر و المنافق کل یوم یسيء و یعتذر.
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः उस कार्य को करने से बचों जिस में तुमको क्षमा मांगनी पड़े, निःसंदेह मोमिन वह है जो बुरा कार्य नहीं करता है (फलस्वरूप) क्षमा भी नहीं मांगता है, लेकिन मुनाफ़िक़ वह है जो हर दिन बुराई करता है और क्षमा मांगता है।
26- رُوِیَ أنَّه علیه السلام لمّا عَزَمَ على الخروج إلى العراق، قام خطيباً فقال:
الحمد لله ما شاء الله و لا قوة إلا بالله و صلى الله على رسوله خُطَّ الموتُ على ولد آدم مَخَطَّ القَلادَةِ على جيدِ الفتاة و ما أولَهنی إلى أسلافی اشتياق يعقوب إلى يوسف و خُيِّرَ لی مَصرَعٌ أنا لاقيهِ كأنّی بأوصالی تَتَقَطَّعُها عُسلان الفَلَواتِ بَينَ النَّواويس و كَربلاء فيَملأَنَّ مِنّی أكراشاً جوفاً و أجربةً سُغباً لا مَحيصَ عَن يَومٍ خُطَّ بِالقلمِ رضی الله رضانا أهلَ البيت نصبِرُ على بلائه و يُوَفّينا أجُورَ الصّابرين.
रिवायत बयान की गई है कि जब इमाम हुसैन (अ) ने (मक्के में) इराक़ की तरफ़ जाने इरादा किया तो आप खड़े हुए और फ़रमायाः तारीफ़ और प्रशंसा है ख़ुदा के लिए, जो वह चाहता है करता है, और कोई भी शक्ति ख़ुदा के अतिरिक्त नहीं है, और ख़ुदा की सलवात हो उसके रसूल पर।
आदम की औलादों के लिए मौत जवान लड़कियों के गले में पड़े गर्दनबंद (नेकलेस) की तरह बांध दी गई है (यानी जिस प्रकार यह नेकलेस हमेशा उनकी गर्दन में रहता है और उनकी सुन्दरता का कारण है उसकी प्रकार मौत भी इन्सान के लिए यक़ीनी और सुन्दर है) और मैं अपने ख़ानदान के पूर्वजों और चले जाने वालों से मिलने की आरज़ू का मैं कितना मुश्ताक़ हूँ जैसा याक़ूब (अ) को यूसुफ़ (अ) से मिलने का शौक़ था।
और मेरे लिए मक़तल (क़त्ल किए जाने का स्थान) निश्चित हो चुका है मुझे वहां पहुँचना होगा, गोया मैं देख रहा हूँ कि मेरे शरीरी के जोड़ जोड़ को जंगली भेड़िये नवावीस और कर्बला के बीच टुकड़े टुकड़े कर रहे हैं, ताकि मुझसे अपने ख़ाली पेटों को भर सकें और अपने शिकम को भर लें।
आदमी अपनी क़िस्मत का अपरिहार्य है और जिस दिन से क़िस्मत के क़लम से लिख दिया गया भागने का स्थान नहीं रह गया।
ख़ुदा की मर्ज़ी हम अहलेबैत (अ) की मर्ज़ी है (हम ख़ुदा की मर्ज़ी पर राज़ी हैं) उसकी मुसीबतों और परीक्षाओं पर धैर्य रखेंगे और वह धैर्य रखने वालों का सवाब पूर्ण रूप से हमको देगा।
27- قال الحسین علیه السلام:
لا أفلح قومٌ اشتروا مرضاة المخلوق بسخط الخالق.
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः जो व्यक्ति लोगों की मर्ज़ी को ख़ुदा के क्रोध से ख़रीद ले (यानी लोगों की ख़ुशी को ख़ुदा की ख़ुशी पर प्राथमिक्ता दे) उसकी आख़ेरत अच्छी न होगी।
28- فقام الحسین علیه السلام خطیباً فی أصحابه، فَحَمِدَ لله و أثنی علیه و ذکر جدَّهُ فصَلّی علیه ثم قال:
«أنّه قد نزل بنا من الأمر ما قد ترون و إنّ الدنيا قد تَغَيَّرَت و تَنَكَّرَت و أدبَرَ معروفُها و استمرَّت حَذّاءَ و لم يَبقَ مِنها إلاّ صُبابةٌ كصُبابَة الإناء و خَسيسُ عَيشٍ كالمَرعي الوَبيل، ألا ترونَ إلی (أنَّ) الحقَّ لايُعمَلُ به و إلَي الباطل لايتناهي عنه، لیَرغَبَ المؤمنُ فی لقاء ربّه محقّاً فإنّی لا اَری الموتَ إلاّ سعادةً و الحیؤة مع الظّالمین إلاّ برماً».
(जब इमाम हुसैन (अ) ने देखा कि हुर आपको आगे नहीं जाने देंगे और आपकी राह में रुकावट बन रहे हैं तो आप) खड़े हुए और ख़ुदा की प्रशंसा एवं तारीफ़ और अपने नाना पैग़म्बर (स) पर सलवात पढ़ने के बाद अपने साथियों से फ़रमायाः जान लो कि जो हम पर (मुसीबतों और कठिनाइयों में से) पड़ा है वह चीज़ है जिसको तुम देख रहे हो और निःसंदेह दुनिया के चेहरा बदल और कुरूप हो गया है, दुनिया की नेकियों से मुंह फिरा लिया गया है, और इसी राह पर तेज़ी से बढ़ी जा रही है और इसमें कुछ नहीं बचा है लेकिन केवल उस पानी की बूंद जितना जो बर्तन के पेंदे में रह जाता है, या अपमान भरा जीवन उस चरागाह की भाति जो ख़राब हो और उसको चरा जा चुका हो।
क्या तुम नहीं देखते हो कि हक़ एवं सच्चाई का पालन नहीं किया जा रहा है? और बातिल एवं बुराई से नहीं रोका जा रहा है? (ऐसी अवस्था में) मोमिन पर आवश्यक है कि वह ख़ुदा से मुलाक़ात को चाहे और दिल एवं जान से उसका मुश्ताक़ हो जाए।
मैं मौत को सौभाग्य और ख़ुशबख़्ती के अतिरिक्त नहीं देखता हूँ (मौत मेरी निगाह में सौभाग्य है) और अत्याचारियों के साथ जीने को अपमान और थकान के अतिरिक्त नहीं देखता हूँ।
29- قال الحسین علیه السلام:
اِنَّ النّاسَ عَبيدُ الدُّنْيا وَ الدِّينُ لَعْقٌ عَلى اَلْسِنَتِهِمْ يَحوطونَهُ ما دَرَّتْ مَعائِشُهُمْ فَاِذا مُحِّصوا بِالْبَلاءِ قَلَّ الدَّيّانونَ؛
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः बेशक लोग दुनिया के दास और ग़ुलाम है, और दीन उस थूक की भाति है जो उनकी जीभों पर है (यानी केवल ज़बान से दीन का नाम लेते है और बस) जब तक उनका संसारिक जीवन और रोज़ी रोटी चलती रहती है तब तक वह दीनदार रहते हैं, लेकिन जब बला और मुसीबतों में गिरफ़्तार होते हैं और मुश्किलों से उनका इम्तेहान लिया जाता है तो बहुत कम लोग दीनदार होंगें।
30- قال الحسین علیه السلام:
أيها الناس إنّ رسول الله صلّی الله علیه و آله و سلّم قال:
مَن رأي سلطاناً جائراً، مُستحِلاًّ لحُرُمِ الله، ناكثاً لعَهدِ الله، مُخالفاً لسُنَّةِ رسول الله، يَعمَل في عباد الله بالإثم و العُدوان، فلَم يُغَيّر عليه بفعلٍ و لا قولٍ، كان حقّاً علي الله أن يُدخِلَه مَدخَلَه، ألا و إنَّ هؤلاء قد لَزِمُوا طاعةَ الشيطان، و تركوا طاعة الرحمان و أظهروا الفساد و عَطَّلُوا الحدود، و استأثَروا بالفَیءٍ و أحَلّوا حَرامَ الله و حَرَّمُوا حَلالَه و أنا أحقُّ مِن غيرٍ.
इमाम हुसैन (अ) ने बैज़ा के स्थान पर अपने साथियों और हुर के सिपाहियों को संबोधित करके फ़रमायाः हे लोगों जान लो कि रसूल (स) ने फ़रमायाः (जो भी देखे ज़ालिम और अत्याचारी बादशाह को जो ख़ुदा की हराम की हुई चीज़ों को हलाल बनाता हो, और अपने वादों को तोड़ता हो, और अल्लाह के रसूल की सुन्नत एवं शैली के विरुद्ध व्यवहार करे, और ख़ुदा के बंदों के बीच ग़लत और अन्याय के साथ कार्य करे (और देखने वाला चुप रहे) और न अपने कार्य से और न ही आपनी ज़बान से उसका विरोध न करे, ख़ुदा पर वाजिब है कि उसकी भी (क़यामत में) उसी स्थान पर रखे जहां पर उस अत्याचारी बादशाह को रखे)
याद रखो यह अत्याचारी और ज़ालिम गुट बनी उमय्या ने सदैव शैतान का अनुसरण किया है और उसके आदेशों का पालन किया है और ख़ुदा के आदेशों की अवहेलना की है, और बुराई एवं तबाही को ज़ाहिर किया है और ख़ुदा की हदों को पामाल किया है, और माले ग़नीमत और मुसलमानों के बैतुल माल को केवल अपने से विशेष कर लिया है, और मैं दूसरे से अधिक अपने को लायक़ जानता हूँ (कि इस बुराई और अत्याचार को रोकूं)
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