मुनाजातुल ख़ाएफ़ीन
मुनाजातुल ख़ाएफ़ीन
मुनाजाते ख़ाएफ़ीन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की मुनाजाते ख़मसता अशर (15 दुआएँ) की तीसरी मुनाजात है जिसकी पहली दुआ मुनाजाते ताएबीन है और दूसरी मुनाजाते शाक्कीन जिसको हम इससे पहले अपनी साइट पर डाल चुके हैं और अब यह मुजाते ख़ाएफ़ीन आपके सामने प्रस्तुत है
भूमिका
दुआ एक ऐसी चीज़ है जिससे इस दुनिया का कोई भी इन्सान इन्कार नहीं कर सकता है और हर इन्सान अपने जीवन में किसी न किसी चीज़ के लिये दुआ करते हुए दिखाई देता है।
मासूमीन की सीरत और दुआ के दुनियावी और परलोकी लाभों को अगर देखा जाए तो दुआ का महत्व चमकते हुअ सूर्य की भाति रौशन हो जाता है।
स्वंय ख़ुदा ने भी अपने बंदो को संबोधित करते हुए कहा है कि तुम लोग मुझसे दुआ मांगों में तुम्हारी दुआ को स्वीकार करने वाला हूँ
اُدْعُوْنِیْ اَسْتَجِبْ لَکُمْ
दूसरे स्थान पर इर्शाद होता है
قُلْ ادْ عُوْا اَﷲ
हे मेरे रसूल मेरे बंदों से कहो कि मुझसे दुआ मांगे।
इसके अतिरिक्त भी बहुत सी आयतें हैं जिन में दुआ का आदेश दिया गया है लेकिन हम उनको यहां पर बयान नहीं करेंगे।
क़ुरआन के अतिरिक्त अगर हम अहलेबैत के कथनों में देखें तब भी हमको दुआ का बहुत अधिक महत्व दिखाई देगा।
जैसे कि एक हदीस में आया है कि दुआ मोमिन का हथियार है।
या एक हदीस में रसूले इस्लाम का कथन हैः जब पापी बंदा ज़माने का परेशान क़ुबूलियत की आशा के साथ अल्लाह की बारगाह में दुआ के लिए हाथ उठाता है तो अल्लाह उसकी तरफ़ देखता भी नही है, बंदा दोबारा दुआ करता है, अल्लाह फिर उसकी तरफ़ से नज़रें फिरा लेता है, बंदा फिर रोते और गिड़गिड़ाते हुए दुआ करता है तो अल्लाह उसकी सुनता है और अपने फ़रिश्तों से कहता है कि मेरे फ़रिश्तों मुझे अपने इस बंदे से लज्जा आती है कि इसका मेरे अतिरिक्त कोई और नहीं है, इसकी दुआ को मैंने स्वीकार किया और इसकी आशा को पूरा किया और रोने से मुझे लज्जा आती है।
तो दुआ का बहुत महत्व है और क़ुरआन के अतिरिक्त रिवायतों और हदीसों में भी इसकी तरफ़ बहुत अधिक ध्यान दिलाया गया है यहां पर हमने केवल एक हदीस को बयान किया है लेकिन अगर हदीस की किताबों में देखा जाए तो अनगिनत रिवायतें मिल जाएंगी।
अगर हम अपने मासूमीन की तरफ़ निगाह दौड़ाएं तो हमको एक इमाम ऐसा दिखाई देता है जिसको अगर दुआओं का ख़ुदा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा जिसको आज सारी दुनिया दुआओं का इमाम समझती है यानी इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ) जिनकी सहीफ़ए सज्जादिया दुआओं का एक ऐसा संग्रह है जिसके मुक़ाबले में कोई दूसरी पुस्तक नहीं आ सकती है।
और अगर दुआओं की प्रसिद्ध किताब मफ़ातीहुल जनान को देखें तो उसमें मुनाजाते ख़मसता अशर वह दुआएं हैं जिनमें इमाम सज्जाद (अ) ने ख़ुदा की श्रेष्ठता और बंदे को उससे दुआ करने का सलीक़ा बताया है।
मुनाजुल ख़ाएफ़ीन
بسم الله الرحمن الرحيم
إلهِي أَتَراكَ بَعْدَ الإِيْمانِ بِكَ تُعَذِّبُنِي، أَمْ بَعْدَ حُبِّي إيَّاكَ تُبَعِّدُنِي،
हे ईश्वर क्या तू ऐसा दिखाता है कि मेरे ईमान लाने के बाद तू मुझ पर अज़ाब करे या मेरी तुझसे दोस्ती के बाद ख़ुद से मुझे दूर कर दे
أَمْ مَعَ رَجآئِي برحمَتِكَ وَصَفْحِكَ تَحْرِمُنِي، أَمْ مَعَ اسْتِجارَتِي بِعَفْوِكَ تُسْلِمُنِي؟
या उस आशा के साथ हो मुझे तेरी रहमत और चश्मपोशी पर है मुझे वंचित कर दे, या तेरी क्षमा और माफ़ी में पनाह लेने के बाद मुझे नर्क के हवाले कर दे?
حاشا لِوَجْهِكَ الْكَرِيمِ أَنْ تُخَيِّبَنِي،
कदापि नहीं! तेरी महान हस्ति से यह बहुत दूर है कि तू मुझे वंचित कर दे,
لَيْتَ شِعْرِي، أَلِلشَّقآءِ وَلَدَتْنِي أُمِّي، أَمْ لِلْعَنآءِ رَبَّتْنِي؟ فَلَيْتَهَا لَمْ تَلِدْنِي وَلَمْ تُرَبِّنِي،
काश मुझे पता होता कि क्या मेरी माँ ने मुझे बदबख़्ती के लिए पैदा किया है या कष्ट और परेशानी के लिए? काश (उसने) मुझे पैदा न किया होता और बड़ा न किया होता।
وَلَيْتَنِي عَلِمْتُ أَمِنْ أَهْلِ السَّعادَةِ جَعَلْتَنِي؟ وَبِقُرْبِكَ وَجَوارِكَ خَصَصْتَنِي؟
और काश मुझे पता होता हे ईश्वर कि मुझे भाग्यवान लोगों में रखा है और मुझे अपने स्थान के क़रीब रखा है
فَتَقَرَّ بِذلِكَ عَيْنِي، وَتَطْمَئِنَّ لَهُ نَفْسِي.
ताकि इससे मेरी आँखें रौशन हो जाएं और मेरा दिल मुतमइन हो जाए,
إلهِي هَلْ تُسَوِّدُ وُجُوهً خَرَّتْ ساجِدَةً لِعَظَمَتِكَ؟
हे ईश्वर क्या वास्तव में तू सियाह कर देगा उन चेहरों को जो तेरी महानता के सामने सजदे में चले गए हैं
أَوْ تُخْرِسُ أَلْسِنَةً نَطَقَتْ بِالثَّنآءِ عَلَى مَجْدِكَ وَجَلالَتِكَ؟
या गूंगा कर देगा उन ज़बानों को जो तेरी हम्द और प्रशंसा में बोली हैं
أَوْ تَطْبَعُ عَلَى قُلُوب انْطَوَتْ عَلى مَحَبَّتِكَ؟
या मोहर (ताला) लगा देगा उन दिलों पर जो तेरी दोस्ती को रखते हैं
أَوْ تُصِمُّ أَسْماعَاً تَلَذَّذَتْ بِسَماعِ ذِكْرِكَ فِي إرادَتِكَ؟
या बहरा कर देगा उन कानों को जो तेरे ज़िक्र और इरादत को सुन कर मज़ा प्राप्त करते हैं
أَوْ تَغُلُّ أَكُفَّاً رَفَعَتْهَا الآمالُ إلَيْكَ رَجآءَ رَأْفَتِكَ؟
या सज़ा की ज़ंजीरों में बांध देगा उन हाथों को जो तेरे करम की आशा और आरज़ू में तेरी तरफ़ उठे हैं
أَوْ تُعاقِبُ أَبْداناً عَمِلَتْ بِطاعَتِكَ حَتَّى نَحِلَتْ فِي مُجاهَدَتِكَ،
या सज़ा देगा उन शरीरों को जिन्होंने तेरी इबादत में काम किया है यहां तक कि तेरे लिए प्रयत्न करने में कमज़ोर हो गए हैं
أَوْ تُعَذِّبُ أَرْجُلاً سَعَتْ فِي عِبادَتِكَ.
या सज़ा देगा उन पैरों को जो तेरी इबादत में चले हैं।
إلهِي لا تُغْلِقْ عَلى مُوَحِّدِيكَ أَبْوابَ رَحْمَتِكَ، وَلا تَحْجُبْ مُشْتاقِيكَ عَنِ النَّظَرِ إلَى جَمِيلِ رُؤْيَتِكَ.
हे ईश्वर अपनी कृपा के द्वारों को तेरे एक मानने वालों पर बंद न कर और तेरे जमाल के दीदार के उत्साहियों वंचित न कर।
إلهِي نَفْسٌ أَعْزَزْتَها بِتَوْحِيدِكَ، كَيْفَ تُذِلُّها بِمَهانَةِ هِجْرانِكَ؟
हे ईश्वर उस नफ़्स को जिसे तूने तौहीद और एकेश्वरवाद के माध्यम से सम्मान दिया है किस प्रकार अपने से दूरी के अपमान से अपमानित करेगा,
وَضَمِيرٌ انْعَقَدَ عَلى مَوَدَّتِكَ كَيْفَ تُحْرِقُهُ بِحَرَارَةِ نِيرانِكَ؟
और वह ज़मीर (आत्मा) जो तेरी दोस्ती से गिरह लगी हुई है को किस प्रकार अपनी आग की तपिश में लजा देगा,
إلهِي أَجِرْنِي مِنْ أَلِيمِ غَضَبِكَ وَعَظِيمِ سَخَطِكَ،
हे ईश्वर मुझे पनाह दे दे दर्दनाक क्रोध से और अपने महान क्रोध से हे मेहरबान हे अता करने वाले,
يا حَنَّانُ يا مَنَّانُ، يا رَحِيمُ يا رَحْمنُ، يا جَبَّارُ يا قَهَّارُ، يا غَفَّارُ يا سَتَّارُ،
हे रहीम हे रहमान, हे महानता और अज़मत वाले, हे क्रोध करने वाले, हे क्षमा करने वाले हे पर्दापोशी करने वाले,
نَجِّنِي بِرَحْمَتِكَ مِنْ عَذابِ النَّارِ، وَفَضِيحَةِ الْعارِ،
मुझे नजात दे अपनी रहमत से नर्क के अज़ाब और नग्ता के अपमान से
إذَا امْتازَ الأَخْيارُ مِنَ الأَشْرارِ، وَحالَتِ الأَحْوالُ، وَهالَتِ الأَهْوالُ وَقَرُبَ الْمُحْسِنُونَ، وَبَعُدَ الْمُسِيؤُنَ،
उस समय जब नेक लोग बुरों से अलग किये जाएंगे और हालात उलट पलट जाएंगे और डर व भय लोगों के घेर लेगा और नेक कार्य करने वाले नज़दीक हो जाएंगे और पापी दूर हो जाएगा
وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْس ما كَسَبَتْ وَهُمْ لا يُظْلَمُونَ.
और हर व्यक्ति को जो उसने किया है दिया जाएगा और उन पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।
नई टिप्पणी जोड़ें