ज्ञान अच्चा या इबादत?

ज्ञान अच्चा या इबादत?

रसूले - मक़बूल ( स ) मदीना मुनव्वरा की मस्जिद  में प्रविष्ट हुए , तो उन की निगाह मुसलमानों के उन दो दलों पर पड़ी , जो गोला बनाए हुए किसी कार्य में व्यस्त थे । उन में से एक दल इबादत व ज़िक्रे - इलाही में व्यस्त था , और दूसरा दल शिक्षा के आदान - प्रदान व सीखने - सिखाने में व्यस्त था ।

पैग़म्बरे - इस्लाम ( स ) उन दोनों दलों को देख कर बहुत  प्रसन्न हुए , और अपने निकट खड़े हुए अपने साथियों को सम्बोधित करते हुए फ़रमाने लगे , "ये दोनों ही दल नेक कार्य में व्यस्त हैं , और इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं , कि इन दोनों दलों में सम्मिलित व्यक्ति नेकी और सआदत के पथ पर अग्रसर हैं ।"

इस के बाद आं - हज़रत (स) ने अपनी बातचीत का क्रम आगे बढ़ाते हुए इरशाद फ़रमाया, "परन्तु मैं लोगों की शिक्षा और उन को बुद्धिमान बनाने के लिये भेजा गया हूं ।" यह इरशाद फ़रमाते हुए रसूले - मक़बूल ( स) उस दल की ओर बढ़ गए, जो शिक्षा के आदान - प्रदान व सीखने - सिखाने में व्यस्त था । वहां पहुंच कर आप (स) भी उन लोगों के साथ पूरी तरह व्यस्त हो गए। (1)

इस्लाम के आरम्भिक दौर में मदीना मुनव्वरा की मस्जिद का प्रयोग केवल नमाज़ के फ़र्ज़ की अदायगी के लिये ही नहीं किया जाता था, बल्कि उस दौर के मुसलमानों की विभिन्न सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र भी यही मस्जिद थी। जब भी आवश्यकता महसूस होती, कि किसी प्रकार का सम्मेलन किया जाय, तो लोगों को इसी मस्जिद में एकत्र होने का बुलावा दे दिया जाता था, और लोग वहां एकत्र हो कर हर प्रकार की महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त कर लिया करते थे। हर प्रकार के नए निर्णय इसी मस्जिद में किये जाते थे, और उस के बाद उन की घोषणा भी कर दी जाया करती थी, ताकि लोग उन निर्णयों के बारे में जान जाएं।

मुसलमान जब तक मक्का में रहे, हर प्रकार की सामाजिक गतिविधियों व स्वतंत्रता से पूरी तरह से वंचित थे। न ही वे धार्मिक क्रिया-कलापों व कर्तव्यों को स्वतंत्रता के साथ सम्पन्न कर सकते थे, और न ही उन को धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। इस प्रकार की स्थिति एक लम्बे समय तक बनी रही, यहां तक कि इस्लाम ने अरबिस्तान के एक दूसरे क्षेत्र पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया, जिस का नाम यसरब था, और जो बाद में मदीनतुन नबी, अर्थात ’नबी का नगर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। रसूले - मक़बूल (स) ने मदीना मुनव्वरा नगर के निवासियों की तजवीज़ पर, और उन के अहदो  पैमान का ध्यान  रखते हुए मक्का से हिजरत इख़्तियार कर ली। धीरे-धीरे सभी मुसलमान मक्का छोड़ कर मदीना आ गए, और उसी समय से मुसलमानों को इस बात की स्वतंत्रता प्राप्त हो गई, कि वे अपनी धार्मिक गतिविधियों में खुल कर भाग लें। मदीना मुनव्वरा नगर में पहुंचने के पश्चात रसूले - मक़बूल ( स) ने सब से पहला कार्य यह किया, कि एक उचित स्थान का चुनाव कर के अपने साथियों की सहायता से उस मस्जिद के निर्माण का कार्य पूरा किया।

( 1 ) मुनयतुल मुरीद , प्रकाशन बम्बई , पृष्ठ संख्या १० .

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