इमाम अली (अ) के कथन भाग 3
इमाम अली (अ) के कथन भाग 3
21- قالَ الاْمامُ علي عليه السلام:
أيُّهَا النّاسُ، إِيّاكُمْ وُحُبَّ الدُّنْيا، فَإِنَّها رَأْسُ كُلِّ خَطيئَة، وَبابُ كُلِّ بَليَّة، وَ داعي كُلِّ رَزِيَّة.
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः हे लोगों, दुनिया की दोस्ती और उसकी मोहब्बत से बचो क्योंकि वह हर ग़ल्ती और भूल की जड़ है र हर बला एवं मुसीबत का द्वार है और हर फ़ितने की साथी है और हर मुसीबत और सख़्ती को बुलाने वाली है।
22- قال علی علیه السلام:
لا یجد عبد طعم الایمان حتی یترک الکذب، هزله و جِدَّهُ.
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः कोई भी बंदा उस समय तक ईमान का मज़ा नहीं चख सकता है जब तक कि वह झूठ को चाहे वह मज़ाक़ में हो या हक़ीक़त में न छोड़ दे।
23- قال علیّ علیه السّلام:
لا یکون الصدیق صدیقاً حتى یحفظ أخاه فى ثلاث: فى نکبته و غیبته و وفاته.
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः दोस्त उस समय तक (सच्चा) दोस्त नहीं हो सकता जब तक कि यहां तक कि वह अपने दोस्त की तीन स्थानों पर रक्षा करे
1. उसकी मुसीबत और परेशानी में।
2. उसकी अनुपस्तिथि में (उसके माल इज़्ज़त और आबरू की रक्षा करे)
3. उसके मरने पर (उसके लिए इस्तिग़फ़ार करे)
24- قال علیّ علیه السّلام:
إِنَّ اللّهَ يُعَذِّبُ سِتَّةً بِسِتَّة:
أَلْعَرَبَ بِالْعَصَبيَّةِ وَ الدَّهاقينَ بِالْكِبْرِ وَ الاْمَراءَ بِالْجَوْرِ وَ الْفُقَهاءَ بِالْحَسَدِ وَ التُّجّارَ بِالْخِيانَةِ وَ أَهْلَ الرُّسْتاقِ بِالْجَهْلِ.
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः ख़ुदा छः गुटों पर छः कारणों से अज़ाब नाज़िल करता है
1. अरबों को उनके तअस्सुब (नस्लेभेद) के कारण।
2. ज़मींदारों को उनके घमंड के कारण।
3. हाकिमों और सत्ताधारियों को उनको ज़ुल्म और लोगों पर अत्याचार के कारण।
4. फ़क़ीहों (विद्वानों) को उनके हसद (ईर्ष्या) के कारण।
5. व्यापारियों को ख़यानत के कारण।
6. और गाँव वालों को उनकी अज्ञानता के कारण।
25- «سئل امیرالمومنین(علیه السلام): کم بین الحق و الباطل؟
فقال: أربع أصابعَ و وضع أمیرالمؤمنین علیه السلام یده علی أذُنِه و عینیه فقال: ما رَأَتهُ عیناک فهو الحق و ما سمعته أذُناک فأکثره باطلٌ»؛
अमीरुल मोमिनीन (अ) से प्रश्न किया गया कि हक़ (सच्चाई) और बातिल (झूठ) के बीच कितना फ़ासेला है?
आपने फ़रमायाः चार उगलियों भर और आपने अपने हाथ को अपने कान और आँखों के बीच रखा और फ़रमायाः जो तुम्हारी आखेँ दोखें वह हक़ है और जो कान सुनें उनमें से अधिकतर बातिल है।
26- عن الأصبغ بن نباتة قال: قال أمیرالمؤمنین علیّ بن أبی طالب علیه السلام للحسن إبنه:
يا بُنَيَّ، ألا اُعَلِّمُكَ أربَعَ خِصالٍ تَستَغنِي بها عنِ الطِّبِّ ؟
فقالَ: بلى يا أميرَ المؤمنينَ،
فقالَ: لا تَجلِسْ على الطَّعامِ إلاّ وأنتَ جائعٌ ، ولا تَقُمْ عنِ الطَّعامِ إلاّ وأنتَ تَشتَهِيهِ ، و جَوِّدِ المَضغَ ، وإذا نُمتَ فَاعرِضْ نَفسَكَ على الخَلاءِ، فإذا استَعمَلتَ هذا استَغنَيتَ عنِ الطِّبِّ .
असबग़ बिन नबाता कहते हैं:अमीरुल मोमिनीन (अ) ने अपने बेटे इमाम हसन (अ) से फ़रमायाः हे मेरे प्यारे बेटे क्या मैं तुम को चार ऐसे गुण न बताओं जिनसे तुम को डॉक्टर की आवश्यकता न रह जाए?
उन्होंने कहाः हां, अमीरुल मोमिनीन (अ) फिर आपने फ़रमायाः जब तक भूख न लगे दस्तरख़ान पर न बैठो, और भूख पूरी तरह शान्त होने से पहले दस्तरख़ान से उठ जाओ (पूरा पेट भर के खाना न खाओ पेट में थोड़ी जगह ख़ाली रखो) और (खाना) अच्छी तरह से चबाओ, और जब सोने चलों तो उससे पहले पाख़ाने जाओ, अगर इन कार्यों को किया तो तुम डॉक्टर से बेनियाज़ हो जाओगे।
27- قال علیّ علیه السّلام:
أَیُّهَا النّاسُ، إِنَّ لی عَلَیکُم حَقَّاً، وَ لَکُم عَلَیَّ حَقٌّ فَأَمَّا حَقُّکُم عَلَیَّ فَالنَّصیحَهُ لَکُم وَ تَوفیرُ فَیئِکُم عَلَیکُم وَ تَعلیمُکُم کَیلا تَجهَلُوا و تأدیبُکُم کَیما تَعلَمُواوَ أَمّا حَقِّی عَلَیکُم فَالوَفاءُ بِالبَیعَة وَ النَّصیحَهُ فِی المَشهَدِ وَ المَغیبِ وَالإِجابَة حینَ أَدعُوکُم وَ الطّاعَة حینَ آمُرُکُم. .:
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः हे लोगों, मैं तुम पर हक़ रखता हूँ और तुम्हारा भी मुझ पर हक़ है: तुम्हारा मुझ पर यह हक़ है कि: मैं तुम को नसीहत करने वाला और शुभचिंतक रहूँ, ग़नीमत और तुम्हारे अधिकारों तो तुम तक पहुँचाऊँ (बिना किसी अफ़सोस के) और तुम को (क़ुरआन, हदीस और जो तुम नहीं जानते हो उसकी) शिक्षा दूँ ताकि अज्ञानी न रहो, और (शरीअत के अनुसार) तुम को प्रशिक्षण दूँ ताकि तुम सीख सको (और उसका पालन कर सको)
लेकिन मेरा तुम पर मेरा हक़ यह है कि मेरी बैअत के वफ़ादार और उस पर बाक़ी रहो, उपस्तिथि और अनुपस्तिथि में मेरे शुभचिंतक रहो (यानी सामने और पीठ पीछे एक जैसे रहो) और जब मैं तुम को बुलाऊँ तब मेरी पुकार को सुनो और जब आदेश दूँ तो उसका पालन करो।
28- قال علیّ علیه السّلام:
«خَیرُ ما وَرَّثَ الاَباءُ الاَبناءَ الاَدبُ؛
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः बेहतरीन मीरास जो पिता अपनी औलाद को दे सकता है वह अदब और सही तरबियत है।
29- قال علیّ علیه السّلام:
أشجع النّاس من غلب هواه.
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः सबसे वीर व्यक्ति वह है जो अपने नफ़्स की ख़्वाहिशात पर क़ाबू कर ले।
30- قال علیّ علیه السّلام:
مَن لَم يَتَعَلَّمْ في الصِّغَرِ لَم يَتَقَدَّمْ في الكِبَرِ .
इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः जो बचपन में ज्ञान न प्राप्त करे वह बड़ा हो कर रहबर और लीडर नहीं हो सकता है।
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