अल्लाह से किया हुआ वादा
अल्लाह से किया हुआ वादा
स्वर्गवासी वाएज़ काशेफ़ी अख़लाके मोहसेनी नामक पुस्तक मे लिखते हैं: किसी बादशाह को एक अभियान करना था बादशान ने अल्लाह से मन्नत मानी कि अगर इस अभियान में उसे सफलता मिली तो हुकूमत के ख़ज़ाने में जितनी दौलत यह वह सब अल्लाह के नाम पर ग़रीबों और फ़क़ीरों में बांट देगा।
अल्लाह ने उसकी सहायता की और वह अपने अभियान में सफ़ल हो कर लौटा। उसने ख़ज़ानची को बुलाया और ख़ज़ाने की दौलत के बारे में पूछा। जब हिसाब लगाया गया तो पता चला कि ख़ज़ानें में बहुत अधिक दौलत थी।
बादशाह ने कहा कि यह सारी दौलत ग़रीबों और फ़क़ीरों में बांट दी जाए।
लेकिन वज़ीरों ने बादशाह की राय का विरोध करते हुए कहा कि बादशाह को ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा और फ़ौज को तंख़्वाह देने के लिए पैसा नहीं बचेगा और वैसे भी ख़ज़ाना फ़ौज ने एकत्र किया है। और क़ुरआन की आयत والعالمین علیھا के अंतर्गत वह भी ग़रीबों और फ़क़ीरों में शामिल हैं और ख़ज़ाने से उनकी तंख़्वाह का दिया जाना भी मन्नत में शामिल है।
बादशाह बड़ा परेशान हुआ। एक दिन वह इसी परेशानी में बैठा सोंच रहा था कि एक बुरी हालत और बाल बिखराए व्यक्ति का वहां से ग़ुज़र हुआ। बादशाह ने उसे बुलाकर कहा कि तुम मेरी इस समस्या के संबंध में क्या कहते हो?
उस व्यक्ति ने कहाः जब बादशाह मन्नत मान रहा था और उस समय उसके दिमाग़ में ग़रीबों और फ़क़ीरों को साथ साथ फ़ौज का भी ध्यान था तो इस मन्न्त में फ़ौज को भी समिलित करे।
बादशाह ने कहाः नहीं उस समय मेरे दिमाग़ में फ़ौज का कोई ख़्याल नहीं था।
तब उस व्यक्ति ने कहाः कि तब बादशाह को अपनी मन्नत में केवल ग़रीबों और फ़क़ीरों को ही समिलित करना चाहिए और इससे आगे नहीं बढ़ना चाहिए।
एक दरबारी ने कहाः बेवक़ूफ़ फ़ौजी भी ग़रीब और फ़क़ीर होते हैं तो उन्हें इस मन्नत में क्यों न समिलित किया जाए?
उस व्यक्ति ने दरबारी को देखते हुए बादशाह को संबोधित करके कहाः बादशाह ने जिसके सामने मन्नत मानी है अगर आइन्दा बादशाह को उसकी आवश्यकता है तो उसे अपनी मन्नत उसी प्रकार पूरी करनी चाहिए जिस प्रकार मानी थी और अगर उसे भविष्य में ख़ुदा की आवश्यकता नहीं है तो मन्नत पूरी नहीं करनी चाहिए।
फ़क़ीर की इस बात का बादशाह के दिल पर बहुत अधिक प्रभाव हुआ और उसनी उसी समय सारा ख़ज़ाना ग़रीबों में बांट दिया।
(पंदे तारीख़ पेज 36-37)
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