इमाम अली नक़ी (अ) का जन्म दिवस

इमाम अली नक़ी (अ) का जन्म दिवस

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ) का जन्म 212 हिजरी क़मरी में पवित्र नगर मदीने में हुआ। उनके जन्म से मानवीय इतिहास में नैतिकता व शिष्टाचार के स्वर्णिम अध्याय जुड़ गये। उनका विभूतिपूर्ण जीवन लोगों के मार्गदर्शन का उज्जवल दीपक था। वह इमाम हादी के नाम से भी प्रसिद्ध थे जिसका अर्थ होता है मार्गदर्शक।  उन्होंने अपने पिता हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) की शहादात के बाद 33 वर्षों तक मुसलमानों के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी संभाली। उन्होंने इस दौरान इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रसार व प्रचार के साथ मुसलमानों की सामाजिक व राजनैतिक स्थिति पर भी विशेष ध्यान दिया।

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ) के काल में बनी अब्बास के कई शासक सत्ता में पहुंचे । बनी अब्बास के शासकों के व्यापक अत्याचार के कारण लोगों में भारी आक्रोश पाया जाता था और इसी कारण उनके शासन के आधार कमज़ोर पड़ते गये। हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) के काल से ही बनी अब्बास के शासकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर राजनैतिक दबाव बढ़ाना आरंभ कर दिया। इसी परिधि में अब्बासी शासकों ने इमाम मुहम्मद अली नक़ी (अ) को ज़बरदस्ती मदीने से सामर्रा बुलाया। इमाम अली नक़ी (अ) ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष सामर्रा में बिताए। इमाम अली नक़ी (अ) की इमामत के काल में घुटनभरा राजनैतिक वातावरण और वैचारिक भ्रांतियां चरम पर थीं। अत्याचारी अब्बासी शासक मुतवक्किल के काल में राजनैतिक घुटन के कारण इमाम तक लोगों की पहुंच में समस्याएं उत्पन्न होने लगी। दूसरी ओर आस्था और वैचारिक विषयों के संबधं में समाज के बिखराव के कारण विभिन्न धार्मिक समुदाय अस्तित्व में आ गये। वास्तव में इतिहास में इस समस्या के जन्म लेने से धार्मिक आधारों की रक्षा के लिए इमामत की आवश्यकता का अधिक आभास किया जाने लगा।

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ) के महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक जागरूक व सुदृढ़ समाज का आधार रखने का प्रयास था। उन्होंने सांस्कृतिक, शैक्षिक व प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रमों का आरंभ करके अत्याचारी अब्बासी शासक के शासन से अप्रत्यक्ष संघर्ष आरंभ किया। उन्होंने अवसर से लाभ उठाते हुए अब्बासी शासन को ग़ैर क़ानूनी बताते हुए मुसलमानों को इस सरकार की हर प्रकार की सहायता से रोका। इमाम अली नक़ी (अ) ने लोगों को आशान्वित किया कि शीघ्र ही अत्याचारी शासन का बोरिया बिस्तरा बंधने वाला है। जनता से इमाम का संपर्क बहुत ही मैत्रीपूर्ण व प्रेमपूर्ण था। लोगों ने भी जब यह देखा कि इमाम अली नक़ी उनके हितों के लिए कितना प्रयास कर रहे हैं तो वे भी बिना डर और भय के इमाम (अ) के पास एकत्रित होते और उनके अस्तित्व के अथाह सागर से ज्ञान के मोती चुनते थे।

इमाम अली नक़ी (अ) सदैव लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयास में रहते थे ताकि उनका सही ढंग से प्रशिक्षण कर सकें और ज्ञान के ख़ज़ानों से उन्हें परिचित कराएं। यद्यपि सरकार की ओर से भारी दबाव के कारण ज्ञान के जारी इस सोते तक जनता की पहुंच में विभिन्न प्रकार की बाधाएं थीं किन्तु जहां तक लोगों को संभव होता वह ज्ञान के अथाह सागर से मोतियां चुन लेते थे। इमाम अली नक़ी (अ) के शिष्यों की संख्या 185 थी जो सभी अपने काल के प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों और विचारकों में गिने जाते थे। एक दिन इमाम (अ) की सभा में एक युवा विद्वान के बारे में चर्चा हुई जिसने सुदृढ़ व मज़बूत तर्कों से एक चर्चा के दौरान एक धर्म विरोधी पर विजय प्राप्त की। हज़रत इमाम अली नक़ी (अ) ने इस युवा से भेंट की इच्छा प्रकट की। एक दिन इमाम अली नक़ी (अ) के निकट कुछ प्रतिष्ठित व बुद्धिजीवी बैठे हुए थे कि उस युवा के आने की सूचना दी गयी। वह युवा बुद्धिजीवी इमाम (अ) के पास पहुंचा तो इमाम (अ) ने खड़े होकर उसका सम्मान किया और उसे अपने पास बिठाया। बैठक में उपस्थित प्रतिष्ठित लोग इमाम (अ) के इस व्यवहार से नाराज़ हो गये। इमाम अली नक़ी (अ) ने उनके उत्तर में कहा कि क्या आप लोग तैयार हैं कि हमारे मध्य क़ुरआन फ़ैसला करे। सभी लोग चुप हो गये। इमाम (अ) ने कहा कि पवित्र क़ुरआन में आया है कि ईश्वर ने ईमान वालों की श्रेणियों को ऊंचा किया है और जो लोग ज्ञानी होते हैं, वह  ऊच्च श्रेणी के स्वामी होंगे। जान लीजिए कि विरोधियों के समक्ष इस युवा का स्पष्ट तर्क, उसके गुण व ज्ञान के सूचक हैं कि जो हर राष्ट्रीय सज्जनता से बेहतर है।

उस वास्तविकता ने जिसने इमाम को सभी लोगों के मध्य लोकप्रिय बना दिया था, ईश्वर पर उनकी गहरी आस्था और उनका अनुदाहरणीय शिष्टाचार था। वह पवित्र क़ुरआन की इतने सुन्दर ढंग से तिलावत करते थे कि जो भी उनकी आवाज़ में क़ुरआन की तिलावत सुनता था, बहुत अधिक प्रभावित होता था। हज़रत इमाम अली नक़ी (अ) की दृष्टि में सबसे बेहतरी काम जनता की सेवा है और यही कारण था कि उन्होंने अत्याचार शासकों के विपरीत जनता से सदैव मैत्रीपूर्ण व निकट संबंध बनाए रखे। लोगों ने भी जब यह देखा कि इमाम अली नक़ी (अ) उनके हितों के लिए प्रयासरत हैं तो वह और अधिक इमाम की ओर खिंचे चले आये और उन्होंने अपने अस्तित्व में इमाम (अ) के अधिक प्रेम का आभास किया।

एक दिन अब्बासी शासक मुतवक्किल को यह रिपोर्ट मिली कि इस्लामी जगत के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों की सहायता सामग्री इमाम अली नक़ी (अ) के घर पहुंचाई जा रही है और इनमें भारी संख्या में शस्त्र भी हैं। मुतवक्किल ने सईद हाजिब नामक व्यक्ति को अपने सैनिकों के साथ रात के समय इमाम के घर पर आक्रमण करने का आदेश दिया और कहा कि इस आक्रमण में जो भी माल व शस्त्र मिले उसे ज़ब्त कर लें।

सईद हाजिब उस रात की कहानी इस प्रकार बयान करते हैः रात के समय जब सभी लोग सो रहे थे, मैं कुछ सैनिकों के साथ इमाम अली नक़ी (अ) के घर की ओर चल दिया। जब हम घर पहुंचे तो मैं एक सीढ़ी की सहायता से छत पर चढ़ गया और चुपके से घर में प्रविष्ट हो गया। हमने घर के चप्पे चप्पे की तलाशी शुरू कर दी, हमारे इस तलाशी अभियान की सूचना इमाम को हो गयी किन्तु उन्होंने कुछ भी नहीं कहा, वह उसी प्रकार उपासना में व्यस्त रहे। अंततः तलाश करने के बाद हमें दीनारों की दो पोटलियां मिली जिनमें से एक सील थी। वह दीनारों की पोटली लेकर मुतवक्किल के पास पहुंचा, मुतवक्किल दोनों पोटलियों को देखकर आश्चर्य चकित रह गया। उसने उस थैली को जिसपर सील लगी हुई थी आश्चर्य से देखा, उस पर उसकी माता की मोहर लगी हुई थी, उसने अपने मन में कहा कि यह तो मेरी मां की मोहर है, अर्थात वह भी इमाम अली नक़ी की सहायता करती थी, थोड़ी देर के बाद उसने अपनी माता को बुलाया और घटना के बारे में उससे पूछा। उसकी मां ने उत्तर दिया कि हां यह दीनार की थैली मैं ही अली इब्ने मुहम्मद के पास ले गयी थी, मैंने एक मनौती मानी थी जिसके पूरा होने के बाद हज़ार दीनार की यह थैली इमाम अली नक़ी को दी।

सईद हाजिब आगे कहता है कि मुतवक्किल ने कि जो अपने निकटवर्तियों तक पर इमाम अली नक़ी (अ) के अध्यात्मिक प्रभाव से आश्चर्यचकित था, आदेश दिया कि दोनों थैलियों को इमाम को लौटा दिया जाए। मैंने आदेश का पालन किया और वह दोनों थैलियां इमाम के घर लौटा दीं और इमाम से व्यक्तिगत रूप से मैंने क्षमा मांगी। मैंने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप मुझे क्षमा कर दें किन्तु इमाम अली नक़ी (अ) ने मेरे उत्तर में पवित्र क़ुरआन के सूरए शोरा की आयत संख्या 227 के कुछ भाग की तिलावत की कि जिसमें आया है कि शीघ्र अत्याचारियों को ज्ञात हो जाएगा कि वह किस जगह पलटा दिए जाएंगे।

इमाम अली नक़ी (अ) बुराईयों के कुपरिणामों के बारे में अपनी वसीयत में कहते हैं कि ईर्ष्या, भलाई को समाप्त कर देती है, झूठ, शत्रुता लाता है, आत्म मुग्धता, ज्ञान प्राप्ति में रुकावट उत्पन्न करती है, कंजूसी, सबसे बुरी चीज़ है और लालच सबसे बुरी विशेषता है।

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