पांचवें इमाम की शहादत के अवसर पर विशेष
पांचवें इमाम की शहादत के अवसर पर विशेष
इस्लामी इतिहास का ऐसी हस्तियों ने सुशोभित किया है जो न केवल अपने काल में बल्कि समस्त कालों और पीढ़ियों के लिए अनउदाहरणीय आदर्श हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का पावन अस्तित्व मानवता के मार्ग दर्शकों में सर्वोपरि है और उसके पश्चात आपके पवित्र परिजन हैं जो सत्य व वास्तविकता की खोज करने वालों को दीपक की भांति मार्ग दिखाते हैं।
इन ईश्वरीय महापुरूषों की पावन जीवनी एवं कथन ऐसे हैं जो पवित्र प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आज अरबी के ज़िलहिज्जा महीने की १७ तारीख इन्हीं महापुरूषों में से एक की शहादत का दिन है। आज ही के दिन ११४ हिजरी क़मरी में इस्लामी जगत पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की शहादत के शोक में डूब गया।
इस दुःखद अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं और आज के कार्यक्रम का शुभारंभ हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के एक छोटे से कथन से कर रहे है तथा कार्यक्रम में उनकी पावन जीवनी के कुछ आयामों पर प्रकाश डालेंगे। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) अपने बेटों से कहते थे" ईश्वर की प्रसन्नता उसके आदेशों के पालन में है। तो उसके किसी भी आदेश को छोटा मत समझो शायद ईश्वर की प्रसन्नता उसी में हो। जान लो कि ईश्वर ने अपने मित्रों व चाहने वालों को अपने बंदों के मध्य छिपा रखा है तो उसके किसी भी बंदे को छोटा व तुच्छ न समझो शायद वही बंदा ईश्वर का मित्र हो"
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की पावन जीवनी इस्लामी राष्ट्र व मानवता के लिए मूल्यवान उपलब्धियां लिए हुए है।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने एक ओर लोगों की धार्मिक आस्थाओं को मज़बूत करने का प्रयास किया तो दूसरी ओर तार्किक व ठोस प्रमाणों के माध्यम से लोगों के ग़लत व अनुचित विचारों को सही करने का प्रयास किया। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) इस्लामी जगत के एक बहुत बड़े विचार परवर्तक थे। आपने विस्तृत शैक्षिक व सांस्कृतिक आंदोलन की बुनियाद रखी और एक बड़े इस्लामी विश्वविद्यालय की स्थापना की भूमि प्रशस्त की। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने वास्तविकता के प्यासे लोगों को विशुद्ध इस्लामी शिक्षा व संस्कृति उस तरह से सिखाने का प्रयास किया जिस तरह से पैग़म्बरे इस्लाम ने सिखाया था। उनके इस महान शैक्षिक व सांस्कृतिक आंदोलन के सुपरिणाम बाद के कालों व वर्षों में स्पष्ट हुए।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के काल में राजनीतिक संकटों के कारण उमवी शासकों को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से कड़ाई से पेश आने के लिए बहुत कम समय मिलता था। उस समय उमवी शासक कुछ राजनीतिक एवं सत्ता विवादों के खींचातान में फंसे हुए थे और उनकी सरकारों के आधार कमज़ोर हो गये थे। परिणाम स्वरूप हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के लिए इस्लामी शिक्षा व संस्कृति के प्रचार- प्रसार हेतु परिस्थिति किसी सीमा तक अनुकूल हो गई थी। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के काल में बाहर में आईं कुछ और ग़लत विचार इस्लामी समाज में फैल गये थे।
आप लोगों के मस्तिष्क से ग़लत विचारों को जड़ से निकालना चाहते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) एवं उनके पवित्र परिजनों की जीवन शैली परम्परा को इस्लामी राष्ट्र की वैचारिक एवं आस्था संबंधी समस्याओं के समाधान का सर्वोत्म आधार बताया ताकि आम लोग एवं विचारक इन समृद्ध स्रोतों से लाभ उठाकर सही रास्ते को ग़लत रास्ते से अलग करें। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के पवित्र अस्तित्व में ज्ञान-परिज्ञान एवं तत्वदर्शिता के साथ नैतिक सदगुणों की सुन्दरता, मानवीय परिपूर्णता का विशेष रुप से प्रतिबिंबित करती थी।
अरबी भाषा में बाक़िर का अर्थ चीरने वाला है। चूंकि आप हर ज्ञान में निपुण थे और आपने विभिन्न ज्ञानों को एक दूसरे से अलग किया है इसलिए आपको बाक़िर कहा जाता है। हनफ़ी मत के एक मुसलमान विद्वान मोहम्मद बिन अब्दुल फ़त्ताह कहते हैं" आपको बाक़िर इस कारण कहा गया कि आप शिक्षा व तत्वदर्शिता के गुप्त स्रोतों को स्पष्ट करते थे"हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के काल में दूसरे सम्प्रदायों के कुछ प्रसिद्ध विद्वान आपसे अत्यधिक लाभान्वित हुए। ज़ोहरी, अबु हनीफ़ा, मालिक बिन अनस और शाफ़ेई उन लोगों में से हैं जिन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के ज्ञान के अथाह सागर से अपने आपको तृप्त किया। इसी प्रकार तबरी, बेलाज़री, ख़तीबे बग़दादी और ज़मख़्शरी जैसे सुन्नी मुसलमान विद्वानों एवं इतिहासकारों की रचनाओं के आधार इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के कुछ कथन हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजन अपनी समस्त शैक्षिकव आध्यात्मिक महानताओं के साथ , सदैव जनता के मध्य और उनके साथ रहते थे। इन महान हस्तियों की पावन जीवनी इस बात का सूचक है कि वे साधारण जीवन व्यतीत करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन कार्य व प्रयास को बहुत महत्व देते थे। इसके बावजूद कि वे ज्ञान- परिज्ञान और आध्यात्मिकता की प्रतिमूर्ति थे, वे अपनी आजीविका कमाने के लिए स्वयं प्रयास करते थे। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) गर्म हवा एवं धूप में अपने खेतों में स्वयं कार्य करते थे और हलाल व वैध आजीविका कमाने के लिए किये जाने वाले प्रयास को ईश्वरीय आदेश का पालन मानते थे। आप आलस्य और बेकार बैठने की निंदा करते थे। क्योंकि बेकारी व बेरोज़गारी दिग्भ्रमिता की ओर ले जाने के साथ मनुष्य की प्रतिष्ठा और मान- सम्मान को भी आघात पहुंचाती है।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) कहते थे" मैं उस व्यक्ति से विरक्त हूं जो बहाना ढ़ूढे और काम न करे तथा यह कहे कि ईश्वर मुझे आजीविका प्रदान कर"हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) वैध आजीविका कमाने के लिए किये जाने वाले प्रयास को ईश्वर से प्रेम करने वालों की विशेषता मानते थे और कहते हैं" जान लो कि ईश्वर से प्रेम करने वाले हराम आजीविका से दूरी करते हैं और हलाल व वैध आजीविका को कार्य, प्रयास और व्यापार के माध्यम से प्राप्त करते हैं। ईश्वर से प्रेम करने वाले अनिवार्य अधिकारों को, जो उन पर हैं, पूरा करने का प्रयास करते हैं और ईश्वर उनके कार्य व व्यापार में बढोत्तरी व वृद्धि करता है"हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) सदैव सत्य बात पर डटे रहते थे और अन्याय व अत्याचार के मुक़ाबले में मौन धारण नहीं करते थे। आप विभिन्न अवसरों पर बनी उमय्या के भ्रष्ठ शासकों के ग़लत क्रिया- कलापों का रहस्योदघाटन करते थे। आपका मानना था कि राष्ट्रों की मुक्ति व सफ़लता या दुर्भाग्य व विपदा में शासकों की आधारभूत भूमिका है।
यदि शासक अच्छे होंगे तो समाज का मार्गदर्शन कल्याण व भलाई की ओर करेंगे। हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने कहा है कि ईश्वर पर आस्था रखने वालों की भलाई, प्रतिष्ठा और धर्म की सुरक्षा इसमें है कि जनकोष को ऐसे व्यक्ति के हवाले किया जाये जो दूसरों के अधिकारों का ध्यान रखे और उसका ख़र्च अच्छे व योग्य कार्यों में करे तथा धर्म पर आस्था रखने वाले व्यक्तियों के लिए बुराई इसमें है कि वे वित्तीय व आर्थिक स्रोतों को ऐसे व्यक्ति के हवाले कर दें जो न्याय के साथ व्यवहार न करे"बनी उमय्या के शासकों में हेशाम बिन अब्दुल मलिक हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के साथ बहुत कड़ाई से पेश आता था और उसने इमाम के कुछ साथियों एवं शिष्यों की हत्या करने का आदेश दिया।
उनमें से एक जाबिर बिन यज़ीद अलजाफ़ी थे। इमाम ने जाबिर को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से उनसे कहा कि वे अपने आपको पागल दिखायें। यह जाबिर की मुक्ति का एकमात्र मार्ग था। इसके बावजूद कि जाबिर विद्वानों में से थे, कुछ समय तक उन्होंने अपने आपको पागल दिखाया ताकि मृत्यु से मुक्ति पायें। इसीप्रकार हेशाम बिन अब्दुल मलिक ने हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) को अपनी सरकार के केन्द्र शाम अर्थात वर्तमान सीरिया में आने के लिए बाध्य किया। इमाम (अ) जब हेशाम के दरबार में उपस्थित हुए तो कहा" यदि तुम्हारे हाथ में शीघ्र चली जाने वाली सत्ता है तो जान लो कि सदैव रहने वाली सत्ता हमारी है और अच्छा परिणाम भले व सदाचारी लोगों का है" हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की शाम में उपस्थिति ने आपकी आध्यात्मिक एवं शैक्षिक महानता को वास्तविकता के खोजी व्यक्तियों के लिए स्पष्ट कर दिया। इमाम वहां पर भी सच्चाई व वास्तविकता को बयान करते थे। आपने शाम के रहने वाले एक ईसाई विद्वान से शास्त्रार्थ किया। इस शास्त्रार्थ में इमाम का शैक्षिक व वैचारिक प्रभुत्व इस प्रकार स्पष्ट हो गया कि परिस्थिति पूरी तरह इमाम के हित में परिवर्तित हो गई।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने १९ वर्षों तक लोगों व इस्लामी समाज के मार्गदर्शन का दायित्व संभाला। इमाम का पावन अस्तित्व अज्ञानता के अंधकार में रहने वाले मनुष्यों के लिए प्रज्वलित दीपक की भांति था। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) से शत्तुता करने वाले बहुत से दिग्भ्रमित व भटके हुए लोग उनके शिष्टाचार से सच्चाई के मार्ग पर आ जाते थे।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की जीवन शैली एवं सदाचरण हेशाम बिन अब्दुल मलिक के लिए असहनीय था। उसमें इमाम की वास्तविक्ता का रहस्योदघाटन करने वाली बातों को दबाने की क्षमता न थी। क्योंकि इमाम के तार्किक व स्पष्ट बयानों से दिन- प्रतिदिन लोगों की जानकारी व जागरुकता में वृद्धि हो रही थी और समाज में अत्याचारी शासकों की पकड़ कमज़ोर पड़ती जा रही थी। अतः हेशाम ने षड़यंत्र रचकर हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) को अपने रास्ते से हटाने का निर्णय किया। उसने अपने इस शैतानी षडयंत्र को ११४ हिजरी क़मरी में व्यवहारिक बनाकर इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) को शहीद कर दिया। आपका एक कथन है" प्रलय के दिन सबसे अधिक खेद वह व्यक्ति करेगा जो न्याय की प्रशंसा तो करे परंतु दूसरों के साथ में वह स्वयं न्यायपूर्ण व्यवहार न करे"
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