इमाम जवाद (अ) के कथन भाग 3

इमाम जवाद (अ) के कथन भाग 3

 

۲۱۔ قال الامام محمّد التقی الجواد علیه السلام:

مَن استَفادَ اَخاً فِي اللهِ، فَقَد اسْتَفادَ بَيْتاً فِي الْجَنّةِ؛

21. जो भी दीनी भाई से ख़ुदा की राह में लाभ उठाए उसने वास्तव में जन्नत में एक घर से लाभ उठाया है।

۲۲۔ قيل له عليه السلام: ما بال هؤلاء المسلمين يكرهون الموت؟

قال علیه السلام: لأنّهم جهلوه فكرهوه، و لو عرفوه و كانوا من اولياء الله عزوجل لأحبوه، و لعلموا أنّ الاخرة خير لهم من الدنيا۔
 ثم قال علیه السلام: یا أبا عبدالله ما بال الصَّبیُّ و المجنون یمتنع من الدواء المنقی لبدنه و النافی للألم عنه؟

قال: لجهلهم بنفع الدواء۔

قال علیه السلام: و الذی بعث محمّداً صلّی الله علیه و آله و سلّم بالحقّ نبیّاً، إنّ من استعدَّ للموت حقَّ الاستعداد فهو أنفع له من هذا الدواء لهذا المتعالج، اما انهم لو عرفوا ما يؤدّي إليه الموت من النعيم لاستدعوه و أحبوه أشد ما يستدعي العاقل الحازم الدواء لدفع الافات و اجتلاب السلامات۔

22. इमाम जवाद (अ) से कहा गयाः क्यों यह मुसलमान मौत दूर भागते हैं?

आपने फ़रमायाः क्योंकि उनको मौत का वास्तविक्ता का ज्ञान नहीं है, अगर वह इसको जान लें और ख़ुदा के दोस्त (वली) हों तो निसंदेह मौत को पसंद करेंगे, वह जानते थे कि आख़ेरत उनके लिए दुनिया के जीवन से अच्छी है।

फिर आपने फ़रमायाः हे अल्लाह के बंदे, क्यों बच्चे और पागल दवा खाने से बचते हैं? जब्कि दवा उनके शरीर को सही और दर्द को दूर करती है।

उसने कहाः क्योंकि वह दवा के लाभ और फ़ायदे को नहीं जानते हैं।

इमाम ने फ़रमायाः उस ईश्वर की क़सम जिसने मोहम्मद (स) को सच्चा नबी बनाया, जान लो कि हर एक को मौत के लिए तैयार रहना चाहिए, मौत उसके लिए बीमार की दवा से अधिक अच्छी है, जान लो कि अगर वह जानते कि मौत के साथ क्या क्या नेमतें मिलेंगी तो उसको मांगते और उससे मोहब्बत करते, उस अक़लमंद आदमी से भी अधिक जो दवा को मांगता है बीमारी और बला को दूर करने के लिए और स्वास्थ प्राप्त करने के लिए।

۲۳۔ قال علیه السلام:

إنَّ مَن تَکَفَّلَ بأیتام آل محمد(صلّی الله علیه و آله و سلّم) المنقطعین عن امامهم، المتحیرین فی جهلهم، الاسراء فی أیدی شیاطینهم و فی أیدی النواصب من أعدائنا، فاستنقذهم منهم و أخرجهم من حیرتهم و قهر الشیاطین بِرَدِّ وساوسهم و قَهَرَ الناصبین بحجج ربهم و دلائل ائمتهم، لیفضلوا عند الله علی العابد بأفضل المواقع باکثر من فضل السماء علی الارض و العرش علی الکرسی والحجب علی السماء۔

 و فضلهم علی هذا العابد کفضل القمر لیلة البدر علی أخفی کوکبٍ فی السماء

23. निसंदेह जो भी आले मोहम्मद (स) के यतीमों की किफ़ालत और सरपरस्ती करे, वह यतीम जो अपने इमाम और रहबर से दूर हो गए हैं, और अज्ञानता और नादानी की घाटी में भटक रहे हैं, और क़ैदियों की तरह अपने शैतानों के हाथों में हैं, और हमारे शत्रु के हाथों और उनके अत्याचारों को झेल रहे हैं,  (जिसके नतीजे में परेशानियों और समस्याओं में घिरे हैं) अगर यह व्यक्ति उनको शत्रुओं से आज़ाद करा दे, और शैतानों को ज़लील कर दे उनके वसवसों को पलटा कर, और नासेबियो एवं अहलेबैत को बुराभला कहने वालों को अपमानित कर दे ईश्वरीय और हमारे तर्कों से, ऐसा व्यक्ति ख़ुदा के नज़दीक विद्वान है जिसका मर्तबा बहुत ऊँचा है इबादत करने वाले से, उतना ही ऊँचा है जितना आसमान ज़मीन से और अर्श कुर्सी से और ख़ुदा का पर्दा आसमान से।

और आलिम और इबादत करने वाले के मर्तबों में उतना ही अंतर है जितना चौदहवीं के चाँद और आसमान के सबसे अंधेरे सितारे में।

۲۴۔ قال علیه السلام:

 «نِعْمَةٌ لا تُشْکَرُ کَسَیِّئَة لا تُغْفَرُ۔»

24. वह नेमत जिसका शुक्र अदा न किया गया हो, उस पाप की भाति है जिसको क्षमा नहीं किया गया है।

(जिस प्रकार हम यह आशा रखते हैं कि हमारे पापों को क्षमा कर दिया जाए उसी प्रकार हमको नेमत मिलने पर शुक्र भी अदा करना चाहिए, और किसी भी नेमत का कम से कम शुक्र यह है कि अलहम्दो लिल्लाह कहा जाए)

۲۵۔ قال علیه السلام:

 كفي بالمرء خيانة ان يكون امينا للخونة۔

25. इन्सान के बेईमान होने के लिए इतना ही काफ़ी है कि उसपर बेईमान लोग विश्वास करते हों।

۲۶۔ قال علیه السلام:

قيل لمحمَّد بن علي (علیه السلام): ما الموت؟

قال: هو النوم الذي يأتيكم كلّ ليلة الاّ انه طويل لاينتبه منه الاّيوم القيمة

26. इमाम जवाद (अ) से पूछा गया: मौत क्या है?

आपने फ़रमाया: मौत वही नींद है जो हर रात तुमको आती है, मगर अंतर यह है कि मौत की अवधि लंबी होती है, और इन्सान उस नींद से जागता नहीं है मगर क़यामत के दिन।

۲۷۔ قال علیه السلام:

«أَلْقَصْدُ إِلَی اللّهِ تَعالی بِالْقُلُوبِ أَبْلَغُ مِنْ إِتْعابِ الْجَوارِحِ بِالاْعْمالِ»

27. इन्सान की नियत उसके शारीरिक कार्य जिसमें कठिनाइयाँ होती है से अधिक ख़ुदा के नज़दीक़ स्वीकार होती है।

(क्योंकि हर कार्य का आधार नियत है, और संभव है कि कोई इन्सान अच्छा कार्य करे लेकिन किसी दूसरे को दिखाने के लिए हो ना कि ख़ुदा के लिए लेकिन नियत एक ऐसी चीज़ है जो किसी को दिखाने के लिए नहीं की जा सकती है, यानी नियात में रियाकारी नहीं हो सकती है क्योंकि वह दिल से होती है लेकिन अमल में संभव है कि रियाकारी हो जाए।)

۲۸۔ قال علیه السلام:

لا تعادي احدا حتي تعرف الذي بينه و بين الله تعالي، فان كان محسنا فانه لا يسلمه اليك و ان كان مسيئاً فانَّ علمك به يكفيه فلا تعاده۔

28. कभी भी किसी से उस समय दुश्मनी न करो जब तक कि उसके और ख़ुदा के बीच जो कुछ भी है सबको जान न लो, तो अगर वह नेक बंदा है तो ख़ुदा उसको तुम्हारे हवाले नहीं करेगा (ख़ुदा अपने बंदे को तुम्हें नहीं देगा और फिर तुम्हारी दुश्मनी का कोई लाभ नहीं रह जाएगा) लेकिन अगर वह पापी है तो तुम्हारा उसके बारे में जान लेना ही काफ़ी है (यानी तुम जान गए हो कि ख़ुदा उसको उसके किए की सज़ा देगा) तो (दोनों स्थितियों में) उससे दुश्मनी न करो।

۲۹۔ قال علیه السلام:

 «قَدْ عاداکَ مَنْ سَتَرَ عَنْکَ الرُّشْدَ إِتِّباعًا لِما یهْواهُ۔»

29. जो भी तरक़्क़ी के रास्ते को तुमसे छिपाए अपने नफ़्स की ख़्वाहिश का अनुसरण करते हुए, वास्तव में उसने तुम पर अत्याचार किया है।

۳۰۔ قال علیه السلام:

«من لم یرض من اخیه بحسن النیۀ لم یرضَ منه بالعطیة»

30. जो भी अपने दीनी भाई से उसकी अच्छी नियत के कारण राज़ी न हो (यानी अपने भाई की अच्छी नियत को स्वीकार न करे) उसके उपहारों से भी वह राज़ी नहीं होगा।

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