नमाज़ पढ़ने वालों के मर्तबे
नमाज़ पढ़ने वालों के मर्तबे
(अ) कुछ लोग नमाज़ को खुशुअ (तवज्जुह और ख़ुलूस) के साथ पढ़ते हैं।
जैसे कि क़ुरआने करीम ने सूरा ए मोमेनून की दूसरी आयत मे कहा है “कि वह खुशुअ के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।” खुशुअ एक आत्मिक और शारीरिक अदब है।
तफ़्सीरे साफ़ी मे है कि एक बार रसूले अकरम (स.) ने एक इंसान को देखा कि नमाज़ पढ़ते हुए अपनी दाढ़ी से खेल रहा है। आपने फ़रमाया कि अगर इसके पास खुशुअ होता तो कभी भी इस काम को अंजाम न देता।
तफ़्सीरे नमूना मे है कि रसूले अकरम (स.) नमाज़ के वक़्त आसमान की तरफ़ निगाह करते थे और इस आयत
الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ
(मोमेनून की दूसरी आयत) के नाज़िल होने के बाद ज़मीन की तरफ़ देखने लगे।
(ब) कुछ लोग नमाज़ की सुरक्षा करते हैं।
जैसे कि सूरा ए अनआम की आयत न.92 और सूरा ए मआरिज की 34वी आयत मे इरशाद हुआ है। सूरए अनआम मे नमाज़ की हिफ़ाज़त को क़ियामत पर ईमान की निशानी बताया गया है।
(स) कुछ लोग नमाज़ के लिए सब कामों को छोड़ देते हैं।
जैसे कि सूरा ए नूर की 37वी आयत मे इरशाद हुआ है। अल्लाह के ज़िक्र मे ना तो तिजारत रुकावट है और ना ही वक़्ती खरीदो फ़रोख्त, वह लोग माल को ग़ुलाम समझते हैं अपना आक़ा नहीं।
(द) कुछ लोग नमाज़ के लिए खुशी खुशी जाते हैं।
(य) कुछ लोग नमाज़ के लिए अच्छा कपड़ा पहनते हैं ।
जैसे कि सूरा ए आराफ़ की 31वीं आयत मे अल्लाह ने हुक्म दिया है “कि नमाज़ के वक़्त श्रंगार किया करो।”
नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना मस्जिद को पुररौनक़ बनाना है।
नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना नमाज़ का ऐहतिराम करना है।
नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना लोगों का ऐहतिराम करना है।
नमाज़ के वक़्त ज़ीनत करना वक़्फ़ और वाक़िफ़ दोनों का ऐहतिराम है। लेकिन इस आयत के आखिर मे यह भी कहा गया है कि इसराफ़ से भी मना किया गया है।
(र) कुछ लोग नमाज़ से सच्चा प्यार करते हैं।
जैसे कि सूरा ए मआरिज की 23वी आयत मे इरशाद हुआ है कि “अल्लज़ीना हुम अला सलातिहिम दाइमून।”“वह लोग अपनी नमाज़ को पाबन्दी से पढ़ते हैं।” हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि यहाँ पर मुस्तहब नमाज़ों की पाबंदी मुराद है। लेकिन इसी सूरेह मे यह जो कहा गया है कि वह लोग अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं। यहाँ पर वाजिब नमाज़ों की हिफ़ाज़त मुराद है जो तमाम शर्तों के साथ अदा की जाती हैं।
(ल) कुछ लोग नमाज़ के लिए सुबह के समय जाग जाते हैं।
जैसे कि सूरा ए इस्रा की 79वी आयत मे इरशाद होता है कि “फ़तहज्जद बिहि नाफ़िलतन लका” लफ़्ज़े जहूद के मअना सोने के है। लेकिन लफ़्ज़े तहज्जद के मअना नींद से बेदार होने के हैँ।
इस आयत मे पैग़म्बरे अकरम (स.) से ख़िताब है कि रात के एक हिस्से मे बेदार होकर क़ुरआन पढ़ा करो यह आपकी एक इज़ाफ़ी ज़िम्मेदारी है। मुफ़स्सेरीन ने लिखा है कि यह नमाज़े शब की तरफ़ इशारा है।
(व) कुछ लोग नमाज़ पढ़ते पढ़ते सुबह कर देते हैं।
जैसे कि क़ुरआने करीम मे आया है कि वह अपने रब के लिए सजदों और क़ियाम मे रात तमाम कर देते हैं।
(श) कुछ लोग सजदे की हालत मे रोते हैं।
जैसे कि क़ुरआने करीम मे इरशाद हुआ है कि सुज्जदन व बुकिय्यन।
अल्लाह मैं शर्मिंदा हूँ कि 15 शाबान सन् 1370 हिजरी शम्सी मे इन तमाम मराहिल को लिख रहा हूँ मगर अभी तक मैं ख़ुद इनमे से किसी एक पर भी सही तरह से अमल नही कर सका हूँ। इस किताब के पढ़ने वालों से दरखवास्त है कि वह मेरे ज़ाती अमल को नज़र अन्दाज़ करें।
नई टिप्पणी जोड़ें