इमाम जवाद (अ) के कथन भाग 2
इमाम जवाद (अ) के कथन भाग 2
۱۱۔ قال الامام الجواد علیه السلام:
«مَنْ عَمِلَ عَلی غَیْرِ عِلْم ما یُفْسِدُ أَکْثَرُ مِمّا یُصْلِحُ»
11. जो बिना किसी ज्ञान और जानकारी के कोई कार्य करे उसकी ख़राबी और बरबादी उसके सुधार और विकास से अधिक है।
۱۲۔ قال علیه السلام:
«مَنْ أَطاعَ هَواهُ أَعْطی عَدُوَّهُ مُناهُ»
12. जो भी अपनी हवस (इच्छाओं का) अनुसरण करे उसने वास्तव में अपने शत्रु की इच्छा को पूरा किया है।
۱۳۔ قال علیه السلام:
مَن هَجَرَ المداراة قارنه المکروه، و من لم یعرف الموارد أعیَته المصادر، و مَنِ انْقادَ إلَی الطُّمَأنینَهِ قَبْلَ الْخِیَرَهِ فَقَدْ عَرَضَ نَفْسَهُ لِلْهَلَكَة
13. जो भी लोगों के साथ सहनशीलता को छोड़ दे परेशानी उसकी साथी बन जाती है, और जो भी किसी कार्य में प्रवेश के रास्ते को न जानता हो उस पर निकलने के रास्ते बंद हो जाते हैं, और जो भी किसी (चीज़ या इन्सान) पर बिना आज़माए और परीक्षा लिए भरोसा कर ले वास्तव में उसने स्वंय को बरबादी के रास्ते पर खड़ा कर दिया है।
۱۴۔ قال علیه السلام:
«أَلثِّقَةُ بِاللّهِ ثَمَنٌ لِکُلِّ غال وَ سُلَّمٌ إِلی کُلِّ عال»
14. ख़ुदा पर भरोसा हर अनमोल चीज़ की क़ीमत, और हर इज़्ज़त और ऊँचाई की सीढ़ी है।
۱۵۔ قال علیه السلام:
«لا تَکُنْ وَلِیًّا لِلّهِ فِی الْعَلانِیَةِ، عَدُوًّا لَهُ فِی السِّـرِّ»
15. ज़ाहिर में ख़ुदा के दोस्त और अंदर से ख़ुदा के दुश्मन न रहो (इस प्रकार न रहो कि तुम्हारा ज़ाहिर तो मोमिन जैसा हो लेकिन अंदर से तुम ख़ुदा के दुश्मन और मुनाफ़िक़ हो)
۱۶۔ قال علیه السلام:
عِزُّ المُؤمِنِ فی غِناهُ عَنِ النَّاسِ
16. मोमिन की इज़्ज़त लोगों से बेनियाज़ (किसी की तरफ़ हाथ न फैलाना) होने में है।
۱۷۔ قال علیه السلام:
مازارَ اَبی (علیه السلام) اَحَد فَاَصابَهُ اَذًی مِنُ مَطَرٍ اَو برد أو حَرٍ اِلّا حَرَّمَ اللهُ جَسَدَهُ عَلیَ النّارِ
17.( हज़रत अब्दुल अज़ीम हसनी कहते हैं: मैंने सुना कि इमाम जवाद (अ) ने फ़रमायाः) कोई भी ऐसा नहीं है जो मेरे पिता (आठवें इमाम) की ज़ियारत के लिए जाए और बारिश या सर्दी या गर्मी से उसको तकलीफ़ हो, मगर यह कि ख़ुदा ने उसके शरीर को नर्क की आग पर हराम कर दिया है।
(हां यह ध्यान रखना चाहिए कि वह ज़ियारत के लिए जाए ना कि तफ़रीह और घूमने के लिए, और ख़ुद आपने (इमाम जवाद (अ) फ़रमाया है कि यह ज़ियारत मारेफ़त के साथ हो यानी यह मानता हो कि इमाम के आदेशों का पालन हम पर वाजिब किया गया है और वह पैग़म्बरे इस्लाम के जानशीन हैं)
۱۸۔ قال علیه السلام:
«راکِبُ الشَّهَواتِ لا تُقالُ لَهُ عَثْرَتُهُ»
18. जो भी अपनी ख़्वाहिशों और दिली इच्छाओं की सवारी पर सवार है वह कभी भी फिसलने और गिरने से अमान में नहीं है।
۱۹۔ قال علیه السلام:
«أَلاْیّامُ تَهْتِکُ لَکَ الاْمْرَ عَنِ الاْسْرارِ الْکامِنَةِ»
19. दिनों का बीतना पर्दों को उठा देता है और तुम्हारे लिए छिपे हुए रहस्यों को खोल देता है।
۲۰۔ قال علیه السلام:
مَنْ زارَ قَبْرَ عَمَّتی بِقُمْ، فَلَهُ الْجَنَّتهُ
20. जो भी मेरी फूफी (हज़रत मासूमा) की क़ुम (ईरान का एक पवित्र और धार्मिक शहर) में ज़ियारत करे उसके लिए जन्नत है।
नई टिप्पणी जोड़ें