इमाम रज़ा (अ) के कथन भाग 4
इमाम रज़ा (अ) के कथन भाग 4
۳۱۔ قال الرضا علیه السلام:
«اَفضَلُ المالِ ما وَقی بِهِ العِرضُ وَاَفضَلُ العَقلِ مَعرِفةُ الاِنسان ِ نَفسَهُ»
31. बेहतरीन माल वह माल है जो इन्सान के सम्मान की रक्षा करे और बेहतरीन अक़्ल अपने आप को पहचानना है।
۳۲۔ قال علیه السلام:
فِي الدِّيكِ الْأَبْيَضِ خَمْسُ خِصَالٍ مِنْ خِصَالِ الْأَنْبِيَاءِ؛ مَعْرِفَتُهُ بِأَوْقَاتِ الصَّلَاةِ وَ الْغَيْرَةُ وَ السَّخَاءُ وَ الشَّجَاعَةُ وَ كَثْرَةُ الطَّرُوقَةِ۔
32. सफ़ेद मुर्ग़े में नबियों के गुणों में से पाँच गुण पाए जाते हैं:
1. नमाज़ के समय की पहचान (ख़ुदा की इबादत के समय को जानते हैं और उसकी इबादत करते हैं)
2. ग़ैरत।
3. सख़ावत (उदारता)।
4. बहादुरी।
5. नामूस (अपनी औरतो) की रक्षा।
۳۳۔ قال علیه السلام:
شِيعَتُنا الْمُسَلِّمُونَ لِأمْرِنا الْآخِذُونَ بِقَولِنا، الْمُخالِفُونَ لِأعْدائِنا فَمَنْ لَمْ يَکنْ کذالِک فَلَيْسَ مِنّا۔
33. हमारे शिया हमारे सामने सर झुकाए हैं, और हमारे आदेशों का पालन करते हैं, और हमारे शत्रुओं के विरोधी हैं, तो जो भी ऐसा न हो वह हमसे नहीं है।
۳۴۔ قال فی سفره إلی المأمون، فی النیشابور:
سمعت أبی موسی بن جعفر یقول سمعت أبی جعفربن محمد یقول سمعت ابی محمدبن علی یقول سمعت ابی علی بن الحسین یقول سمعت ابی الحسین بن علی بن ابی طالب یقول سمعت ابی امیرالمؤمنین علی بن ابی طالب یقول سمعت رسول الله صلی الله علیه وآله وسلم یقول سمعت جبرئیل یقول سمعت الله جل جلاله یقول:
لااله الاالله حصنی فمن دخل حصنی امن من عذابی
قال فلمّا مرّت الراحلة نادانا
"بشروطها وانا من شروطها"
34. इमाम रज़ा (अ) अपनी ख़ुरासान यात्रा में (जो कि मामून की इच्छा बल्कि ज़बरदस्ती से हुआ था,) जब नैशापूर पहुँचे तो वहां के विद्वान एकत्र हो गए और आपसे कहा कि उनके लिए कोई हदीस बयान करें।
इमाम ने महमिल से अपना सर बाहर निकाला और फ़रमायाः मैंने अपने पिता मूसा बिन जाफ़र (अ) से सुना और उन्होंने अपने पिता इमाम सादिक़ (अ) से सुना और उन्होंने अपने पिता मोहम्म्द इब्ने अली (इमाम बाक़िर) (अ) से सुना और उन्होंने अपने पिता अली बिनुल हुसैन (इमाम सज्जाद) (अ) से सुना और उन्होंने हुसैन बिन अली (अ) से सुना और उन्होंने अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) से सुना और उन्होंने रसूले ख़ुदा (स) से सुना कि आपने फ़रमायाः मैंने जिब्रईल से सुना कि ख़ुदा फ़रमाता है "ला इलाहा इल्लललाह मेरा मज़बूत क़िला है और जो भी मेरे किले में प्रवेश कर जाए वह मेरे अज़ाब से सुरक्षित है"।
रावी कहता हैः जब इमाम का क़ाफ़िला चल पड़ा तो आपने हमको संबोधित कर के फ़रमायाः
इसके लिए शर्तें है और मैं (यानी मासूम इमाम की इमामत का विश्वास रखना) उसकी एक शर्त हूँ।
۳۵۔ قال علیه السلام:
مَن تَذَكَّرَ مُصابَنا و بَكی لما ارتُكِبَ منّا، كان معنا فی درجتنا یوم القیامة،
و من ذكر بمصابنا فبكی و أبكی لم تبك عینه یوم تبكی العیون،
ومن جلس مجلساً یحیی فیه أمرنا لم یمت قلبه یوم تموت القلوب؛
35.जो भी हमारी मुसीबतों को याद करे और हम पर होने वाले अत्याचारों के लिए रोए वह क़यामत के दिन हमारे साथ और हमारे मर्तबे में होगा।
और जो भी हमारी मुसीबतों को याद करके ख़ुद रोए और दूसरों को रुलाए, तो उसकी आँखे उस दिन नही रोएंगी जब सबकी आँखें रो रही होंगी।
और जो भी उस बैठक में जहां हमारा अम्र (अहलेबैत के अहकाम और अक़ीदे) ज़िन्दा किया जाता है बैठे तो उसका दिल उस दिन नहीं मरेगा जब सबके दिल मुर्दा होंगें।
۳۶۔ سُئِلَ {عليه السلام} عَنْ حَدِّ التَّوَكُّلِّ؟ فَقالَ {عليه السلام}:
أَنْ لا تَخافَ أحَدًا إِلاَّاللّهَ
36. तवक्कुल और भरोसे के बारे में आपसे प्रश्न किया गया। आपने फ़रमायाः
यह है कि ख़ुदा के अतिरिक्त किसी से ना डरो।
۳۷۔ قال علیه السلام:
التَوَدُّدُ اِلَی الناسِ نِصفُ العَقل؛
37. लोगों से दोस्ती को प्रकट करना आधी अक़्ल है।
۳۸۔ قال علیه السلام:
رَحِمَ اللَّهُ عَبْداً أَحْيَا أَمْرَنَا،
فَقُلْتُ لَهُ وَ كَيْفَ يُحْيِيأَمْرَكُمْ؟
قَالَ: يَتَعَلَّمُ عُلُومَنَا وَ يُعَلِّمُهَا النَّاسَ، فَإِنَّ النَّاسَ لَوْ عَلِمُوا مَحَاسِنَ كَلَامِنَا لَاتَّبَعُونا۔
38. ख़ुदा रहम करे उस बंदे पर जो हमारे अम्र को जीवित करे।
(हदीस का रावी हेरवी कहता हैः) मैंने पूछा आपका अम्र किस प्रकार जीवित होता है?
आपने फ़रमाया हमारे इल्म और शिक्षा को ग्रहण करे और लोगों को बताए, निंसंदेह अगर लोग हमारे कथनों की अच्छाई और ख़ूबी को जान लें तो वह हमारा अनुसरण करेंगे।
۳۹۔ قال علیه السلام:
معني قول القائل: بسم الله، أي أسِمَ علي نفسي بِسِمَةٍ مِن سِمات الله عزوجل، و هي العبودية
قال: فقلت: ما السِّمَة؟
قال: العلامة
39. जो यह कहता है कि बिस्मिल्लाह उसका अर्थ यह है कि मैं अपने अस्तित्व में ख़ुदा की निशानियों में से एक निशानी लगाता हूँ, और वह निशानी बंदगी और ख़दा की इबादत है।
मैने पूछा सेमत का क्या मतलब है?
आपने फ़रमायाः निशानी और चिन्ह।
۴۰۔ قال علیه السلام:
عليكم بصلاه الليل فما من عبد مومن يقوم آخر الليل فيصلي ثمان ركعات و ركعتي الشفع و ركعة الوتر و استغفر الله في قنوته سبعين مرة الاّ أجيرَ من عذاب القبر و من عذاب النار و مُدَّ لَهُ في عُمرِهِ و وُسِّعَ عليه في معيشته۔
ثم قال عليه السلام: ان البيوت التي يصلي فيها بالليل يزهر نورها لاهل السماء كما يزهر نور الكواكب لاهل الارض
40. तुम पर ज़रूरी है कि नमाज़े शब पढ़ो, कोई ऐसा बंदा नहीं है कि जो रात के अंतिम पहर में उठे और आठ रकअत (चार दो रकअती ) नमाज़ पढ़े और दो रकअत नमाज़े शफ़अ पढ़े और एक रकअत नमाज़ वित्र पढ़े और नमाज़ वित्र के क़ुनूत में 70 बार इस्तिग़फ़ार (खु़दा से अपने पापों के लिए क्षमा याचना) करे, मगर यह कि वह क़ब्र के अज़ाब और नर्क की आग से सुरक्षित होगा। उसकी आयु लम्बी होगी और उसके जीवन और रोज़ी में बरकत होती है।
फिर आपने फ़रमायाः जान लो कि जिन घरों में रात में नमाज़ पढ़ी जाती है, उनका प्रकाश आसमान वालों के लिए प्रकाशमयी होगा जिस प्रकार सितारों का प्रकाश ज़मीन पर रहने वालों के लिए प्रकाश देता है।
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