इमाम हुसैन (अ) महात्मा गाँधी की नजर में
इमाम हुसैन (अ) महात्मा गाँधी की निगाह में
दो अक्टूबर को क्रांतिकारी ग़ुलाम हिन्दुस्तान की कश्ती को आज़ादी के समुद्र में उतारने वाले महात्मा गाँधी का जन्म दिवस है जिसको हम लोग गाँधी जयनती के तौर पर मनाते हैं।
यह वह दिन है जब एक महान आत्मा ने इस संसार में आँखे खोली जिसने न कभी किसी पर अत्याचार किया और न ही सहा, जिसका कहना था न हिंसा करों और ना ही सहो और उसकी के पद चिन्हों पर चलते हुए आज़ाद हिन्दुस्तान ने अंग्रेज़ों को भागने पर मजबूर कर दिया
महात्मा गाँधी ने लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया क्यों कि वह जानते थे कि जो काम अहिंसा कर सकती है वह हिंसा से नहीं हो सकता है वह जानते थे कि अगर हिंसा में जीत होती हो आज से 1400 साल पहले कर्बला के मैदान में यज़ीद जीत गया होता और इमाम हुसैन हार गए होते।
यह महात्मा गाँधी का इमाम हुसैन के प्रति विश्वास ही था कि उन्होंने लोगों को यह पैग़ाम दिया कि गला कट जाने का मतलब हार नहीं है, हार तो वह है कि इन्सान अपने लक्ष्य से भटक जाए, लेकिन अगर लक्ष्य की प्राप्ति में मौत भी आ जाए तो वह मौत नही वास्तविक जीवन है।
महात्मा गाँधी इमाम हुसैन (अ) से इतना प्रभावित थे कि आपने इमाम हुसैन के बारे में कहाः मैंने हुसैन से सीखा की मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है! इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे!
आज पूरी दुनिया में जहां जहां भी हिन्दुस्तान और उसकी आज़ादी की बात आती है तब तब महात्मा गाँधी का नाम लिया जाता है, और उसी के साथ नाम होता है उस हुसैन का जिसने गाँधी को बताया कि जीत मक़सद में होती है दुश्मन को मारने में नहीं।
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