इमाम रज़ा (अ) के कथन भाग 2

इमाम रज़ा (अ) के कथन भाग 2

हमारे प्रिय पाठकः सलामुन अलैकुम, आज फिर हम आपके सामने हैं इमामे रज़ा (अ) के कथनों के दूसरे भाग के साथ, जैसा कि आप जानते हैं कि हम अपने सामने इमाम रज़ा (अ) के चालीस कथनों को श्रंखलावार प्रस्तुत कर रहे हैं, तो यह उसी श्रंखला का दूसरा भाग है।

हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमको इन कथनों के अनुसार कार्य करने की तौफ़ीक़ दे (आमीन)

۱۱۔ امام رضا علیه السلام:
كلّما أحدث العباد من الذنوب ما لم يكونوا يعملون ، أحدث الله لهم من البلاء ما لم يكونوا يعرفون؛

11. जब भी लोग कोई ऐसा नया पाप करते हैं जो पहले ना किया गया हो तो ख़ुदा उनको एक ऐसी बला में डाल देता है जो पहले न आई हो।

۱۲۔ قال علیه السلام:
صاحِبُ النِّعْمَةِ یَجِبُ اَن یُوَسِّعَ علی عیالِهِ؛

12. जिसके पास नेमत हो उसके लिए अनिवार्य है कि परिवार के लिए ख़र्चे के बढ़ाए (कंजूसी ना करे)

۱۳۔ قال علیه السلام:
إنّ الله يبغض القيل والقـال و إضـاعة المـال و كثـرة السـؤال۔

13. ख़ुदा क़ील और क़ाल (इधर उधर की बातें करना) अधिक बोलने, माल और सम्पत्ति को बरबाद करने, और बहतु अधिक इच्छाएं रखने को पसंद नहीं करता है

۱۴۔ عن رجل من اهل بلخ، قال:
كنت مع الرضا «عليه السلام» في سفره إلي خراسان، فدعا يوما بمائدة له، فجمع عليها مواليه من السودان و غيرهم.
 فقلت: جعلت فداك! لو عزلت لهؤلاء مائدة؟
 فقال: مه إنّ الرّبّ - تبارك و تعالي - واحد، و الأم واحدة، و الأب واحد، و الجزاء بالاعمال

14. बलख़ का रहने वाला एक व्यक्ति कहता हैः इमाम रज़ा (अ) के साथ एक यात्र में जब आप ख़ुरासान जा रहे थे मैं आपके साथ था। एक दिन आपने अपने दस्तरख़ान पर सारे गोरे और काले दासों को खाने के लिए बुलाया,

मैंने आपसे कहाः मैं आप पर क़ुरबान जाऊँ, अच्छा तो यह था कि इनके लिए अलग दस्तरख़ान बिछाया जाता।
आपने फ़रमायाः चुप रहो, जान लो कि सबका ईश्वर एक है, सब एक ही माँ बाप (आदम और हव्वा) की औलाद हैं, हर एक का सवाब और सज़ा भी उसके कार्यों के अनुसार है।

۱۵۔ قال عليه السّلام:
اَلنَظَر اِليَ ذُريتِنّا عِبادَةٌ،
فَقيلَ لَهُ : يابنَ رَسُولِ اللهِ، النَّظَرُ اِليَ الاَئِمَةٍ مِنْكُمْ عِبادةٌ اَمْ اَلنَظُر اليَ جَميع ذُريةَ النبي عليه السّلام؟
فَقالَ: بَلِ اَلنَظُر اليَ جَميع ذُريةِ النَّبي عَبادَة‏ ما لَمْ  يُفارِقُوا مِنهاجَهُ وَلَم يَتَلَوَّثوا بِالَمُعاصي

15. हमारे परिवार वालों और औलाद को देखना इबादत है।
कहा गया कि हे अल्लाह के नबी के बेटेः मासूम इमामों को देखना इबादत है या पैग़म्बर की सारी औलादों (चाहे वह मासूम हों या ना हों) को देखना इबादत है?

आपने फ़रमायाः पैग़म्बर (स) की हर औलाद को देखना इबादत है जब तक कि वह पैग़म्बर के रास्ते और आपकी शैली से अलग ना हो गए हों और पापो एवं गुनाहों में ना लिप्त हो गए हों।

۱۶۔ قال علیه السلام:
من أحب عاصياً فهو عاص و من أحب مطيعاً فهو مطيع و من أعان ظالماً فهو ظالم و من خذل ظالماً فهو عادلٌ.
 إنَّهُ ليس بين الله و بين أحد قرابة و لا تنال ولاية الله إلاّ بالطاعة؛

16. जो भी किसी पापी को दोस्त रखे वह भी पापी और गुनाहगार है, और जो भी ख़ुदा के आदेशों का पालन करने वाले को दोस्त रखे वह भी पालन करे वाला है, और जो भी किसी अत्याचारी या ज़ालिम की सहायता करे वह भी अत्याचारी है, और जो अत्याचारी को ज़लील करे वह आदिल है।

जान लो कि ख़ुदा  से किसी की रिश्तेदारी नहीं है और किसी को भी ख़ुदा की दोस्ती और विलायत नहीं मिलेगी मगर यह कि वह उसके आदेशों का पालन करे।

۱۷۔ قال علیه السلام:
اَلسَّخىُّ يَأكُلُ مِن طَعامِ النّاسِ لِيَأكُلوا مِن طَعامِهِ ، والبَخيلُ لا يَأكُلُ مِن طَعامِ النّاسِ لِئَلاّ يَأكُلوا مِن طَعامِهِ؛

17. उदार (सख़ी) इन्सान लोगों के खाने से खाता है ताकि वह भी उसके खाने से खाएं, और कंजूस व्यक्ति लोगों के खाने से नहीं खाता है ताकि वह भी उसके खाने से न खाएं।

۱۸۔ قال علیه السلام:
عَظِّمُوا كبارَكم و صِلُوا أرحامكم فليس تَصِلوُنَهُم بشىءٍ أفضل من كف الاذى عنهم؛

18 अपने सम्मानित व्यक्तियों और पीरों का सम्मान करो, और रिश्तोदारों से मेल जोर रखों, और उनके साथ कोई भी मेल जोल इससे अच्छा नहीं है कि उनको परेशान ना करो और तकलीफ़ ना दो।

۱۹۔ سئل {عليه‏ السلام}
أ تکون الارض و لا امام فيها؟
فقال (عليه‏ السلام): إذاً لساخت بأهلها.

19. इमाम रज़ा (अ) से सवाल किया गयाः
क्या यह हो सकता है कि धरती अपने स्थान पर रहे जब्कि कोई मासूम उसपर ना हो?

आपने फ़रमायाः ऐसी अवस्था में (कि जब कोई मासूम धरती पर ना हो) ज़मीन अपने रहने वालों को निगल जाएगी। (यानी हर समय में इस ज़मीन पर किसी ना किसी मासूम का रहना आवश्यक है ताकि धरती अपने स्थान पर रहे।)

 ۲۰۔ قال عليه السلام:
مَن استغفر الله بلسانه و لم يندم بقلبه فقد استهزأ بنفسه
و مَن سأل الله التوفيق و لم يجتهد فقد استهزأ بنفسه
و من سأل الله الجنة و لم يصبر علي الشدائد فقد استهزأ بنفسه
و من تَعَوَّذَ بالله مِنَ النار و لم يترك شهوات الدنيا فقد استهزأ بنفسه
و من ذكر الموت و لم يَستَعِدَّ له فقد استهزأ بنفسه
و من ذكر الله تعالي و لم يَشتَق الي لقائه فقد استهزأ بنفسه

20. जो अपनी ज़बान से तो क्षमा और माफ़ी मांगे लेकिन आत्मा और दिल लज्जित ना हो, तो निसंदेह उसने अपना मज़ाक़ उड़ाया है।

और जो भी कामियाबी और जीत चाहता हो लेकिन उसके लिए प्रयत्न ना करे उसने अपना उपहास किया है।

और जो भी ख़ुदा से जन्नत चाहे लेकिन कठिनाइयों और मुसीबतों में सब्र और धैर्य ना रखे उसने अपना मज़ाक़ उड़ाया है।

और जो भी ख़ुदा से नर्क की आग से बचने की इच्छा करे लेकिन अपनी इच्छाओं और दुनिया को प्राप्त करने की इच्छा को ना छोड़े उसने अपना उपहास किया है।

और जो भी मौत को याद करे लेकिन स्वंय को मरने के लिए तैयार ना करे वास्तव में उसने अपना मज़ाक़ उड़ाया है।

और जो भी ख़ुदा को याद करे लेकिन (मौत से) उस से मिलने की तमन्ना ना करे उसने अपना उपहास किया है।

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