जिहाद इस्लाम की द्रष्टि में
जिहाद इस्लाम की द्रष्टि में
इस्लामी कल्चर में जेहाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज़ है जो रसूलुल्लाह स.अ. के ज़माने में और इस्लाम का मैसेज आम होने के बाद ज़्यादा प्रचलित था (लेकिन आज के ज़माने में इस शब्द को अच्छा नहीं समझा जाता जबकि अगर इसकी हक़ीक़त को समझ लिया जाए तो कोई भी उसे बुरा नहीं मानेगा) क्योंकि जेहाद तलवार उठाकर जंग के मैदान में जाना और बेगुनाह लोगों का सर काटना नहीं है।
जेहाद का मतलब यह है कि इन्सान दुश्मन की साज़िशों को नाकाम करने के लिये कोशिश करता रहे। यहाँ इस बात पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है कि सम्भव है कि कुछ लोग बहुत कोशिश करें, काफ़ी तकलीफ़ उठाएं, कठिनाइयां झेलें लेकिन वह जेहाद न कर रहे हों क्योंकि जेहाद उसी समय होगा जब आप दुश्मन के मुक़ाबले में यह सब कर रहे हों। जेहाद कभी हथियार द्वारा होता है यानी आप मैदान में जाकर दुश्मन से लड़ते हैं और इस तरह जंग करते हैं, इसे हथियार का जेहाद कहते हैं (जैसे अगर कोई इस्लामी मुल्क पर हमला कर दे तो उसका डिफ़ेंस करने के लिये मैदान में जाना, हथियार उठाना, दुश्मन से लड़ना और इसके लिये कठिनाईयां झेलना जेहाद है)।
कभी जेहाद राजनीति और सियासत के मैदान में होता है जिसे राजनीतिक और सियासी जेहाद कहते हैं। कभी कल्चरल वार होती है तो कल्चर के मैदान में जेहाद करना होता है तो उसे कल्चरल जेहाद कहते हैं। कभी जेहाद देश का निर्माण करने के लिये और उसमें उन्नति व तरक़्क़ी लाने के लिये भी होता है। इसके अलावा भी जेहाद कई प्रकार का होता है। जेहाद चाहे किसी भी प्रकार का हो उसके लिये दो शर्तें ज़रूरी हैं:
1. एक तो यह कि उसमें कोशिश हो।
2. दूसरे यह कि यह दुश्मन के विरोध में हो।
इस्लामी कल्चर में आप को जेहाद की सारी क़िस्में मिलेंगी।
हर ज़माने में जंग का रूप बदलता रहता है इसलिये जेहाद भी उसी को देखते हुए किया जाता है। जैसे ईरान में शाह के ज़माने में इमामे ख़ुमैनी नें इस्लाम, दीन और मुसलमानों के दुश्मन मुहम्मद रज़ा शाह (ईरानी राजा) के विरुद्ध जेहाद के लिये कहा तो सब लोग निकल पड़े और जो जिस तरह जेहाद कर सकता था उसनें उस तरह जेहाद किया।
इस्लामी इन्क़ेलाब की सफलता के बाद जब ईराक़ को ईरान के ख़िलाफ़ भड़काया गया और पूरी दुनिया ईरान को ख़त्म करने के लिये जंग करने पर उतर आई तो उस समय भी हमारे जवान मैदान में आ गए, उन्होंनें हथियार भी उठाया और दुश्मन का विरोध करते हुए उसे अपने देश से बाहर निकाला।
आज भी ईरान का दुश्मन उसे तोड़ने के लिये, इस्लामी इन्क़ेलाब को कमज़ोर करने के लिये और यहाँ के सिस्टम को तोड़ने के लिये हर प्रकार से काम कर रहा है, हमारा दुश्मन कोई कमज़ोर दुश्मन नहीं है बल्कि बहुत ताक़त वाला दुश्मन है, उसके पास सब कुछ है। इसलिये हर एक को उस दुश्मन का विरोध करना है, और दुश्मन की हर चाल को नाकाम बनाना है। जिस से जैसे भी हो सकता है वह कोशिश करे और दुश्मन से विरोध करे, आज के ज़माने में यही जेहाद है।
आज दुश्मन की तरफ़ से हम पर सबसे बड़ा हमला कल्चरल हमला हो रहा है, आज की जंग कल्चरल जंग है, दुश्मन हमारे जवानों के ईमान और उनकी सोच को कमज़ोर करके हमें हराना चाहता है, उसनें दूसरे मैदानों में हमें आज़माया, हमसे लड़ा लेकिन हर जगह मार खाना पड़ी और उसे हार हुई इसलिये वह अब उस मैदान में आ चुका है इस लिये उस समय से ज़्यादा जो चीज़ ज़रूरी है वह यह है कि हम जवानों को उस हमले से बचाएं जो भी इस काम में क़दम उठाएगा वह अल्लाह के रास्ते में जेहाद कर रहा है
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