शियों की फ़िक़ह सुन्नियों से अच्छी है, उनका सहयोग करना चाहिए
टीवी शिया, मिस्र के मुफ़्ती "अली जुमा" ने कल "अल अरबिया" चैनल से बात करते हुए इरानी क्रांति के लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनाई के इस फ़तवे का स्वागत किया जिसमें कहा गया है कि शियों द्वार सुन्नियों की धार्मिक आस्थाओं का अपमान करना हराम है।
इराक़ के शिया उलेमा ने दूसरे उलेमा को दावत दी थी जिसमें कहा गया था कि मिम्बरों और मजलिसों में सहाबा के अपमान को रोका जाना चाहिए, इस निमंत्रण का मिस्र के मुफ़्ती ने स्वागत करते हुए कहाः तमाम सुन्नी उलेमा की ज़िम्मेदारी है कि वह पूरी दुनिया में शियों के सहयोग करें।
उन्होंने शिया और सुन्नी के बीच किसी बड़े विरोध का इन्कार करते हुए कहाः शिया फ़िक़ही आधार पर सुन्नियों से आगे हैं, और इसको शियों के बड़े उलेमा और मराजे (मुफ्ती) के फ़तवों में देखा जा सकता है।
अली जुमा ने इस बात की तरफ़ इशारा करते हुए कि मैंने अब तक शियों की किसी भी बड़ी और अहम किताब में तीनों ख़लीफ़ा और पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पत्नियों के लिए अपमान जनक बातें नहीं देखी हैं, कहाः ईरानी क्रांति के लीडर का यह फ़तवा इस्लाम और मुसलमानों के लिए उठाया गया बहुत बड़ा कदम हैं और यह मुसलमानों की बीच एकता बनाए रखने में बहुत सहयोग करेगा।
मिस्र के इस मुफ़्ती ने इस बात की तरफ़ इशारा करते हुए कि उन्होंने इस्लामी दुनिया की विभिन्न बैठकों में शियों के बड़े बड़े आलिमों से मुलाक़ात की है, कहाः इन मुलाक़ातों में शिया आलिमों ने मुझसे कहा, "ख़लीफ़ाओं और पैग़म्बर (स) की पत्नियों का अपमान शियों का काम नही है, बल्कि यह उन दुश्मनों का कार्य है जो यह नहीं चाहते हैं कि शिया और सुन्नियों के बीच एकता हो।"
अली जुमा ने कहा है किः "मेरे विचार में सुन्नियों का शियों के फ़तवे के अनुसार कार्य करना जाएज़ है, यह वह फ़तवा है जिसको मिस्र के मुसलमानों के लीडर और अल अज़हर विश्वविद्यालय के महासचिव "शेख़ शलतूत" ने जारी किया था, क्योंकि हमारी निगाह में शिया और सुन्नियों के बीच कोई अंतर नहीं है।"
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