नमाज़ के कुछ नुक्ते
नमाज़ के कुछ नुक्ते
जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से अर्ज़ किया कि ऐ पालने वाले मैंने इक़ामा-ए-नमाज़ के लिए अपनी औलाद को बे आबो गयाह(वह सूखा इलाक़ा जहाँ पर पीनी की कमी हो और कोई हरयाली पैदा न होती हो।) मैदान मे छोड़ दिया है। हाँ नमाज़ी हज़रात की ज़िम्मेदारी ये भी है कि नमाज़ को दुनिया के कोने कोने मे पहुचाने के लिए ऐसे मक़ामात पर भी जाऐं जहां पर अच्छी आबो हवा न हो।
1. नमाज़ के लिए महत्वपूर्ण बैठक को छोड़ देना
क़ुरआन मे साबेईन नाम के एक दीन का ज़िक्र हुआ। इस दीन के मानने वाले सितारों के असारात के क़ाइल हैं और अपनी मख़सूस नमाज़ व दिगर मरासिम को अनजाम देते हैं और ये लोग जनाबे याहिया अलैहिस्सलाम को मानते हैं। इस दीन के मान ने वाले अब भी ईरान मे खुज़िस्तान के इलाक़े मे पाय़े जाते हैं। इस दीन के रहबर अव्वल दर्जे के आलिम मगर मग़रूर क़िस्म के होते थे। उन्होने कई मर्तबा इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम से गुफ़्तुगु की मगर इस्लाम क़बूल नही किया। एक बार इसी क़िस्म का एक जलसा था और उन्ही लोगों से बात चीत हो रही थी। हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम की एक दलील पर उनका आलिम लाजवाब हो गया और कहा कि अब मेरी रूह कुछ न्रम हुई है और मैं इस्लाम क़बूल करने पर तैयार हूँ। मगर उसी वक़्त अज़ान शुरू हो गई और हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम जलसे से बाहर जाने लगें, तो पास बैठे लोगों ने कहा कि मौला अभी रूक जाइये ये मौक़ा ग़नीमत है इसके बाद ऐसा मौक़ा हाथ नही आयेगा।
इमाम ने फ़रमाया कि नही, “पहले नमाज़ बाद मे गुफ़्तुगु” इमाम अलैहिस्सलाम के इस जवाब से उसके दिल मे इमाम की महुब्बत और बढ़ गई और नमाज़ के बाद जब फिर गुफ़्तुगु शुरू हुई तो वह आप पर ईमान ले आया।
2. जंग के मैदान में समय पर नमाज़ का आयोजन
इब्ने अब्बास ने देखा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम जंग करते हुए बार बार आसमान को देखते हैं फिर जंग करने लगते हैं। वह इमाम अलैहिस्सलाम के पास आये और सवाल किया कि आप बार बार आसमान को क्यों देख रहे है? इमाम ने जवाब दिया कि इसलिए कि कहीँ नमाज़ का अव्वले वक़्त न गुज़र जाये। इब्ने अब्बास ने कहा कि मगर इस वक़्त तो आप जंग कर रहे है। इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि किसी भी हालत मे नमाज़ को अव्वले वक़्त अदा करने से ग़ाफ़िल नही होना चाहिए।
3. नमाज़ में जमाअत का महत्व
एक रोज़ रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम ने नमाज़े सुबह की जमाअत मे हज़रत अली अलैहिस्सलाम को नही देखा तो, आपकी अहवाल पुरसी के लिए आप के घर तशरीफ़ लाये। और सवाल किया कि आज नमाज़े जमाअत मे क्यों शरीक न हो सके। हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अर्ज़ किया कि आज की रात अली सुबह तक मुनाजात मे मसरूफ़ रहे। और आखिर मे इतनी ताक़त न रही कि जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ सके, लिहाज़ा उन्होने घर पर ही नमाज़ अदा की। रसूले अकरम स. ने फ़रमाया कि अली से कहना कि रात मे ज़्यादा मुनाजात न किया करें और थोड़ा सो लिया करें ताकि नमाज़े जमाअत मे शरीक हो सकें। अगर इंसान सुबह की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ने की ग़र्ज़ से सोजाये तो यह सोना उस मुनाजात से अफ़ज़ल है जिसकी वजह से इंसान नमाज़े जमाअत मे शरीक न हो सके।
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