इमाम सादिक़ (अ) की ज़ुल्म से जंग और अहले बैत का आध्यात्मिक ज्ञान

इमाम सादिक़ (अ) की ज़ुल्म से जंग और अहले बैत का आध्यात्मिक ज्ञान

अहलेबैत का युग घुटन भरा युग था किसी को मुंह खोलने की अनुमति नही थी कोई भी अहलेबैत (अ) से सम्पर्क नहीं रख सकता था।कोई उनके पास जा नही सकता था अगर कोई ऐसा करता तो उसके 1000 कोड़े मारे जाते, क़त्ल कर दिया जाता, भयानक यातनाएं दी जातीं।

इमाम सादिक़ (अ) कि जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके युग में हुकूमत की तरफ़ से दबाव नहीं था ऐसे युग में बनी उमय्य और बनी अब्बास ने क्या नही किया इमाम सादिक (अ) पर जासूस लगाए गए जो उनसे सम्पर्क रखता था उसको सज़ा दी जाती थी कोड़े मारे जाते थे उनसे दोस्ती जुर्म थी।

प्रश्न यह है कि आख़िर ऐसा क्यों था? सम्पर्क रखने वालों के सज़ा क्यों दी जाती थी? कोड़े क्यों मारे जाते थे? आख़िर इमाम ऐसा क्या करते थे?

इमाम लोगों को सही रास्ता दिखाते थे उनका मार्गदर्शन करते थे ज़ुल्म और अत्याचार का विरोध करते थे, चाहे वह अत्याचार किसी इन्सान के विरुद्ध हो या किसी जानवर के विरुद्ध।

आप रिसालतुल हुक़ूक़ (वह पुस्तक जिसमें अधिकारों के बयान किया गया है) के देखें उसमें जानवरों तक के अधिकारों के बारे में वस्तार से बताया गया है कि अगर किसी के पास कोई जानवर हो तो उसपर अधिक बोझ ना डाले, उसको मारे नहीं, समय पर खाना पानी दे....आदि

अत्याचारी कौन है?

शिया आइडियालॉजी के अनुसार  हर वह हुकूमत जिसमें ईश्वरीय आदेशों को जारी ना किया जाए वह अत्याचारी हुकूमत हैं। हुकूमत का अधिकार पैदा करने वाले को हैं और चूँकि पैदा करने वाला अल्लाह है इसलिए हुकूमत भी उसका हक़ है। यह हुकूमत अल्लाह से नबियों को मिली और इसीलिए हर नबी ने अपने युग के अत्याचारी से जंग की उसके बाद रसूले इस्लाम (स) को मिली और उनसे अहलेबैत (अ) को उसके बाद नव्वाबे ख़ास (विशेष प्रतिनिधियों) को उसके बाद मुज्हिदों को।

अब अगर कोई ऐसा हाकिम और सत्ताधारी हो जिसके पास हुकूमत के लिए  अनुमति ना हो तो वह अत्याचारी हुकूमत हैं वह ज़ालिम हुकूमत हैं।

इसीलिए हर युग की हुकूमत ने चाहा कि अहलेबैत को लोगों से दूर रखा जाए और इस सोंच का गला घोटने की कोशिश की गई कभी क़त्ल किया गया कभी कोड़े मारे गए और कभी किसी दूसरे तरीक़े से यह कार्य किया गया।

जो कार्य कल बनी इस्राईल ने किया था वही कार्य इस्लाम में भी किया गया।

बनी इस्राईल ने क्या किया था उन्होंने ख़ुदा को छोड़कर गाय की पूजा आरम्भ कर दी थी। इस्लाम में भी यही किया गया यहां ख़ुदा के वली को छोड़कर शैतान के मानने वाले को हुकूमत दे दी गई।

इसका नतीजा यह हुआ कि इस्लाम में ख़ुदा का जवना तो रह गया लेकिन वास्तविक ख़ुदा ना जाने कहां खो गया । अब कोई कहता है कि ख़ुदा को शरीर की आख़ों से देखा जा सकता है तो कोई जब्र और तफ़वीज़ को मानने लगा।

इस्लाम में ख़ुदा के वली के स्थान पर यज़ीद और मोआविया जैसों को बिठा दिया गया जिसके बारे में पूरे इस्लाम को पता था कि वह शराब पीता है हर प्रकार का बुरा कार्य करता है। और जब ऐसे लोग हुकूमत में आए तो ख़दा के वलियों ने विरोध किया इब्राहीम ने नमरूद से जंग की तो मूसा ने फ़िरऔन से और रसूल (स) ने अपने जमाने के अत्याचारियों से। इन सारे अत्याचारियों ने पहले चाहा कि इनको नीचा दिखा दिया जाए इनको ज्ञानिक बहसों में हरा दिया जाए लेकिन जब ख़ुद मुंह की खा गए तो इनके ख़िलाफ़ जंग के लिए तैयार हो गए। इब्राहीम को आग में डाल दिया गया मूसा को वतन छोड़ने पर मजबूर किया गया।

आज हमारे जीवन में अहलेबैत का क्या रोल है?

इन्सान, घर, समाज और परिवार की नजात अहलेबैत से हैं क़ुरआन से हैं वह क़ुरआन जो हमको अहलेबैत के माध्यम से मिला है वह क़ुरआन जो उन्होंने दिया है जिनके लिए नाज़िल हुआ था।

तो अगर हमको इस दुनिया और परलोक में अच्छा जीवन व्यतीत करना है तो अहलेबैत से मोहम्मबत रखनी होगी वह मोहब्बत जो सबके लिए वाजिब की गई है।

और यही उनका स्थान था जिससे अत्याचारी हुकूमतें डरी हुई थीं पहले उनके स्थान को नीचा करने की कोशिश की गई और जब यह ना हो सका तो उनको शहीद कर दिया गया।

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