पर्दा क्यों आवश्यक हैं?

पर्दा क्यों आवश्यक हैं?

निःसंदेह वर्तमान युग में जिसे कुछ लोगों ने इस युग को नग्नता और यौन सम्बंधी स्वतंत्रता का युग बताया है, और पश्चिमी सभ्यता पुजारियों ने इसे महिलाओं की स्वतंत्रता का एक भाग बताया है, इसलिए ऐसे लोग पर्दा की बातों को सुनकर मुंह बनाते हैं और पर्दे को रूढ़ीवादी और पिछड़ी सोंच का नतीजा समझते हैं। लेकिन इस स्वतंत्रता और पथभ्रष्टा से जितना अधिक दंगे और बुराईयों में वृद्धि हो रही हैं उतना ही पर्दे की बातों पर ध्यान दिया जा रहा है।

 यद्धपि इस्लामी और धार्मिक समाज में बहुत सी समस्याओं का समाधान हो चुका हैं और बहुत से प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दिया गया है, लेकिन चूंकि यह समस्या बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए इस मसले पर ज्यादा बहस और चर्चा की आवश्यकता है.

प्रश्न यह है कि  क्या औरतों से (यौन सम्बंध के अतिरिक्त) सुनने, देखने और स्पर्श करने की दूसरी लज़्जतें सभी पुरुषों के लिए हैं या सिर्फ उनके पतियों से विशिष्ट हैं?

बहस यह है कि महिलाएं अपने शरीर के विभिन्न अंगों के प्रफलसफा के एक असीमित मुकाबले में जवानों की काम वासना को भड़काएँ और दूषित पुरुषों की वासना का शिकार बनें या यह समस्याएं पतियों से संबंधित और विशिष्ट हैं?!

 इस्लाम इस दूसरी दृष्टकोण का समर्थक है और हिजाब को इसी लिए अनिवार्य किया है, हालांकि पश्चिमी देश और पश्चिमी समर्थक पहले विचार के स्वीकार कर्ता हैं.

 इस्लाम कहता है कि सेक्स और देखने, सुनने और छूने की क्रिया पति से विशेष है और दूसरे के लिए पाप और समाज के लिए नापाकी का कारण है.
हिजाब का फलसफा कोई गूढ़ और गुप्त चीज नहीं है, क्योंकि:

1.       बे पर्दा महिलाएं सामान्य रूप से बनाओ  व सिंगार और अन्य कार्यों द्वारा जवानों की भावनाओं को उभारती हैं जिससे उनकी भावनाएं भड़क उठती हैं और कभी कभी मनोवैज्ञानिक रोग पैदा हो जाते हैं, मनुष्य की भावनाएं किस सीमा तक तनाव को सहन कर सकती हैं? क्या मनोवैज्ञानिक डॉक्टर यह नहीं कहते कि सदैव मनुष्य में तनाव से बीमारियां पैदा होती हैं.

खासकर जब यह भी मालूम हो कि यौन सम्बंध बनाना मनुष्य की सबसे मौलिक प्रकृति होती है जिसके आधार पर इतिहास में ऐसी घटनाएं मिलती हैं कि जिनका आधार यही चीज़ें थी, यहां तक कुछ लोगों का कहना है,''कोई भी महत्वपूर्ण घटना नहीं होती मगर यह कि उसमें औरत का हाथ ज़रूर होता है''!

 सदैव बाज़ारों और गली कूचों में नग्न फिर कर एहसास को भड़काना किया आग से खेलना नहीं है? और क्या यह काम बुद्धिमानी है?!

 इस्लाम यह चाहता है कि मुसलमान पुरुष और स्त्री सुख और शांति के साथ जीवन व्यतीत करें और उनकी आंखें और कान गलत कामों से सुरक्षित रहें और जिसके परिणाम स्वरूप वह संतुष्ट होकर जीवन व्यतीत करें,  और पर्दे एक फलसफा यह भी है.

2.       प्रामाणिक और वास्तविक रिपोर्ट इस चीज़ की गवाही देती हैं कि दुनिया भर में जब से बे पर्दगी बढ़ी है उसी समय से तलाकों में भी दिन प्रति दिन वृद्धि होती जा रही है, क्योंकि इंसान जिसका प्रेमी हो जाता है, उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है इसलिए मनुष्य हर दिन एक ह्रदयग्राही को खोजता है तो दूसरे को अलविदा कहता हुआ नज़र आता है.

 जिस समाज में पर्दा पाया जाता है (और इस्लामी अन्य शर्तों पर ध्यान दिया जाता है) उसमें यह सम्बंध सिर्फ पति व पत्नी में होता है उनकी भावनाएं, प्रेम और स्नेह एक दूसरे के लिए विशेष होते हैं. लेकिन इस स्वतंत्रता के युग में जबकि महिलाएं  क्रियात्मक मैदान में एक सामान की हैसियत रखती हैं (कम से कम सेक्स मिलाप के अतिरिक्त) तो फिर उनके निकट पति पत्नी की प्रतिज्ञा का कोई अर्थ नहीं होता और बहुत सी शादियां मकड़ियों के जाले की तरह बहुत जल्द ही विवाह विच्छेद का रूप धारण कर लेती हैं, और बच्चे बिना अभिभावक के रह जाते हैं।
3. अश्लीलता का इतना आम हो जाना और अवैध संतानें पैदा होना बेपरदगी का परिणाम है, जिसके बारे में चर्चा की आवश्यकता नहीं है, यह समस्या खासकर पश्चिमी देशों में इतनी स्पष्ट है जिसके बारे में बयान करना सूरज को चिराग दिखाने के समान है, सभी लोग इस तरह की चीजों के बारे में मीडिया से सुनते रहते हैं. हम यह नहीं कहते कि अश्लीलता और अवैध प्रजनन का मुख्य कारण यही बे हिजाबी है, हम यह नहीं कहते कि पश्चिमी माहौल और गलत राजनीतिक समस्याएं इसमें प्रभावी नहीं है, बल्कि हमारा कहना यह है कि नग्नता और बे परदगी उसके प्रभावी कारकों और कारणों में से एक है. अश्लीलता और अवैध संतानें पैदा होने की वजह से समाज में ज़ुल्म व सितम और खून खराबे में वृद्धि हुई है, जिसके दृष्टिगत इस खतरनाक समस्या के पहलू स्पष्ट हो जाते हैं. जब हम सुनते हैं कि एक रिपोर्ट के अनुसार इंग्लैंड में हर साल पांच लाख बच्चे अवैध तरीके से पैदा होते हैं, और जब हम सुनते हैं कि इंग्लैंड के कई बुद्धिजीवियों ने सरकारी पदाधिकारियों को यह चुनौती दी है कि अगर यह क्रम जारी रहा तो देश की शांति को खतरा है (उन्होंने नैतिक और धार्मिक समस्याओं के आधार पर यह चुनौती नहीं दी है (केवल इसलिए कि हराम ज़ादे बच्चे समाज के शांति के लिए ख़तरा बने हुए हैं, क्योंकि जब हमें मालूम होता है कि अदालत के मुकदमों में ऐसे लोगों का नाम पाया जाता है, तो वास्तव में इस समस्या के महत्व का अंदाज़ा होता है कि जो लोग धर्म को भी नहीं मानते हैं, इस बुराई के फैलने से वह भी परेशान हैं, अतः समाज में अवैध सम्बंधों को फैलाने वाली चीज़ें समाज की शांति के लिए ख़तरा होती है और उसके ख्रतरनाक परिणाम हर तरह से समाज के लिए हानिकारक हैं. प्रशिक्षण बुद्धिजीवियों की जाँच भी इसी बात को प्रदर्शित करती है कि जिन कॉलेजों में लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं या जिन संस्थाओं में पुरुष और महिलाएं एक साथ काम करते हैं और उन्हें हर तरह की स्वतंत्रता है तो ऐसे कॉलेजों में पढ़ाई कम होती है और संस्थानों में काम कम होता है और ज़िम्मेदारी का एहसास भी कम पाया जाता है. 4. बे परदगी और नग्नता स्त्री की महानता के पतन का भी कारण है, अगर समाज औरत को नग्न बदन देखना चाहे तो प्राकृतिक बात है कि हर दिन उसके श्रंगार की मांग बढ़ती जाएगी और प्रदर्शन में वृद्धि होती जाएगी, जब महिला यौन आकर्षण के आधार पर प्रचार का माध्यम बन जाएगी, क्लबों में मनोरंजक उपकरण होगी और पर्यटकों को आकर्षित करने का माध्यम बन जाएगी तो समाज में उसकी हैसियत खिलौने या अमूल्य धन और चीजों की तरह महत्वहीन हो जाएगी और उसकी मान मर्यादा का अंत हो जाएगा और उसका गर्व केवल उसकी जवानी, सुंदरता और आकर्षण तक सीमित होकर रह जाएगा. इस तरह से वह कुछ अपवित्र, कपटी और इंसान नुमा दरिंदों की उद्दण्ड वासना पूरी करने का साधन बन जाएगी!. ऐसे समाज में एक महिला अपने नैतिक गुण और ज्ञान की आवश्यकता को कैसे पूरा कर सकती है और कोई उच्च स्थान कैसे प्राप्त कर सकती है?! वास्तव में यह कितनी कष्टदायक बात है कि पश्चिमी देशों में स्त्री का महत्व कितना गिर चुका है खुद हमारे देश ईरान में क्रांति से पहले यह स्थिति थी कि नाम, शोहरत, धन और स्थान उन कुछ नापाक और बे लगाम महिलाओं के लिए थे जो''कलाकारों के नाम से प्रसिद्ध थीं, जहां वह कदम रखती थीं गंदे माहौल के लिए ज़िम्मेदार उनके लिए आंखें बिछा थे और उन्हें स्वागत कहते थे. अल्लाह का शुक्र है कि ईरान में वह सब गंदगी खत्म कर दी गई और औरत अपने इस दौर से निकल आई है जिसमें उसे रुसवा कर दिया गया था, और सांस्कृतिक खिलौने और अमूल्य चीज बनकर रह गई थी, अब उसने अपना स्थान और सम्मान फिर प्राप्त कर लिया है और अपने को पर्दे से ढक लिया है, लेकिन ऐसा नहीं है कि वह एकांतवास में जीवन व्यवतीत कर रही हो , बल्कि समाज के सभी उपयोगी और अनुकूल कार्यों में यहां तक कि युद्ध स्थल में इसी इस्लामी पर्दे के साथ बड़ी बडी सेवाएं अंजाम दे रही हैं

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