फ़ूकों से यह चिराग़ बुझाया ना जाएगा
फ़ूकों से यह चिराग़ बुझाया ना जाएगा
जैसा कि हमारे प्रिय पाठक जानते हैं कि हम उनके सामने इमाम सादिक़ (अ) के जीवन और उनके इल्मी कार्यों को संक्षिप्त रूप से श्रंखलावार बहस में प्रस्तुत कर रहे हैं यह उन्ही बहसों का एक भाग है।
इमाम सादिक़ (अ) का ज़माना बदलाव का ज़माना था, वह बदलाव जो इमाम हुसैन (अ) की शहादत से आरम्भ हुआ था, वह शहादत जिसने बनी उम्य्या की वर्षों पुरानी सत्ता को हिला कर रख दिया था जो उन्त में उनके पतन का कारण बना।
आज लोग प्रश्न करते हैं कि जब इमाम हुसैन (अ) को मालूम था कि वह शहीद कर दिये जाएँगे तो आख़िर वह जंग के लिए निकले ही क्यों? वह यज़ीद के सामने आए ही क्यों?
ऐसे लोगों से मैं एक प्रश्न करता हूँ कि अगर इमाम हुसैन (अ) को पता था कि उनके बाद इस्लाम का एक स्वर्णीय दौर आएगा, जब उनको पता था कि उनके बाद एक ऐसा विचारिक बदलाव होगा जो ज़ालिमों को समाप्त कर देगा, जब उनको पता था कि उनकी शहादत से बनी उमय्या की सत्ता समाप्त हो जाएगी, जब उनको पता था कि उनके बाद इमाम सादिक़ (अ) जैसा महान पुरुष आएगा जो इस्लाम को नया जीवन देगा, जो वास्तविक इस्लाम को फिर से जीवंत कर देगा तो आख़िर क्यों इमाम हुसैन (अ) जंग ना करते? क्यों यज़ीद के समाने खड़े ना होते?
इमाम सादिक़ (अ) का दौर इल्म और ज्ञान का दौर था ऐसा नही है कि दूसरे इमामों के दौर में ज्ञान नही था, लेकिन इमाम सादिक़ (अ) के दौर में यह अपनी चरम सीमा पर था
और इसके कुछ कारण थे
1. रसूल (स) की वफ़ात के बाद सौवें साल तक आपके कथनों को प्रकाशित करने, लिखने, बोलने पर पाबंदी गला दी गई थी।
2. क़ुरआन के अतिरिक्त इस्लाम के नाम पर कुछ नही बचा था।
3. इस्लामी हुकूमत की सीमाएँ बढ़ती जा रही थीं।
4. दूसरे देशों में इस्लाम के बढ़ने के कारण विभिन्न प्रकार की सोंचें और विचार इस्लाम में प्रवेश कर रहे थे
5. इस्लाम में भिन्न प्रकार के सम्प्रदाय वुजूद में आ गए थे
यह सब वह कारण थे जिन्होंने इमाम सादिक़ (अ) के समय को ज्ञान का समय बना दिया था हर तरफ़ से कोई ना कोई प्रश्न आ रहा था
और यह इमाम सादिक़ (अ) थे जिन्होंने इतने नाज़ुक समय पर इस्लाम को बचाया और उसको नया जीवन दिया।
इसको क़रीब से देखना है तो आप "हनफ़ी सुन्नियों" को सबसे बड़े इमाम "अबू हनीफ़ा" के इतिहास को ही देख लें, यह वह अबू हनीफ़ा है जो यह कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि "अगर इमाम सादिक (अ) की शागिर्दी के वह दो साल ना होते तो मैं बर्बाद हो जाता"।
सुन्नियों के दूसरे इमाम "मालिक बिन अनस" को देख लीजिये वह कहते हुए दिखाई देते हैं कि "किसी आँख ने देखा नही किसी कान ने सुना नही ना ही किसी इन्सान के दिल में यह आया कि कोई इमाम सादिक़ से बढ़कर हो सकता है।"
इन सबके अतिरिक्त आज शियों का हौज़ा जिसके कारण वास्तविक इस्लाम आज तक जीवित हैं जो लोगों को मोहम्मद (स) का इस्लाम दिखा रहा है, अपने तमाम कारनामों और सेवाओं के बावजूद वह ऋणी है इमाम सादिक़ (अ) और उनके ज्ञान का।
ऐसा नही है कि इमाम सादिक़ (अ) के लिए हर प्रकार की सुविधाएं मोहय्या थीं और सरकार ने आपको पूरी छूट दे रखी थी कि आप जिस प्रकार से चाहे अपने ज्ञान को फैलाएँ और प्यासे लोगों को सेराब करें। नही
आपको रोकने के लिए उस समय के हाकिम "मंसूर" ने क्या नही किया आप की सोंच से मुक़ाबला करने के लिए "यूनानी फ़लसफ़े" का सहारा लिया, अबू हनीफ़ा और मालिक बिन अनस जैसे लोगों को ऊपर उठाया गया, आपसे मुनाज़रे (ज्ञानिक बहसें) की गई, इस आशा के साथ कि शायद कहीं पर इमाम हार जाए शायद कहीं पर आपका ज्ञान समाप्त हो जाए और इनको यह कहने का मौक़ा मिल जाए कि यह वास्तविक इमाम और ख़ुदा के वली नही है
लेकिन शायर क्या ख़ूब कहता है
"फ़ूंको से यह चिराग़ बुझाया ना जाएगा"
आपने (अ) ज्ञान के प्रसार के लिए क्या नही किया आज अगर हमको ईश्वरीय ज्ञान चाहिये हो अगर हमको ईश्वर के बारे में वास्तविक और सच्ची बातें जाननी हों तो उसके लिए "तौहीदे मुफ़ज़्ज़ल" जैसी पुस्तक है अगर हमको सच्चा और सही जीवन व्यतीत करना हो तो उसके लिए "मिस्बाहुश शरीआ" जैसी किताब है।
इसके अतिरिक्त आज आपके शागिर्द और उनकी द्वारा लिखी गई पुस्तकें आपके ज्ञान की निशानियाँ हैं यह आपके वह शागिर्द थे जिन्होंने अलग अलग विषयों में बड़ी बड़ी किताबें लिखीं चाहें वह गणित हो या विज्ञान या कोई और विषय।
आप "जाबिर बिन हय्यान" को ही ले लीजियें, जिनके द्वारा लिखे गए 300 लेखों को "रेनोसांन्स" के काल में "जर्मनी" में अनुवादित किया गया। यह सब किसके ज्ञान से था यह किसका ज्ञान था जो इनके मुंह और क़लम से निकल रहा था
इमाम सादिक़ (अ)
इस्लाम के चारों मज़हब की नीव कहाँ पर हैं?
इमाम सादिक़ (अ)
यह कौन है जिसको सबसे बड़ा ज्ञानी कहा जा रहा है?
इमाम सादिक़ (अ)
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