ईमान की श्रेणियाँ

ईमान की श्रेणियाँ

हदीस-
अन नाफ़े इब्ने उमर,क़ाला “क़ाला रसूलूल्लाहि (स.) “ला यकमलु अब्दुन अलइमाना बिल्लाहि, हत्ता यकूना फ़िहि ख़मसु ख़िसालिन- अत्तवक्कुलु अला अल्लाहि, व अत्तफ़वीज़ो इला अल्लाहि, व अत्तसलीमु लिअमरिल्लाहि, व अर्रिज़ा बिकज़ाइ अल्लाहि, व अस्सबरो अला बलाइ अल्लाहि, इन्नाहु मन अहब्बा फ़ी अल्लाहि, व अबग़ज़ा फ़ी अल्लाहि, व आता लिल्लाहि, व मनाअ लिल्लाहि, फ़क़द इस्तकमला इलईमाना

अनुवाद
नाफ़े ने इब्ने उमर से रिवायत की  है कि हज़रत रसूले अकरम (स.) ने फ़रमाया कि अल्लाह पर बन्दें का ईमान तब तक पूर्ण नही होता जब तक उस में पाँच गुण पैदा न हो जाये- अल्लाह पर भरोसा, तमाम कामों को अल्लाह पर छोड़ना, अल्लाह के आदेशों को मानना, अल्लाह के फ़ैसलों पर राज़ी रहना, अल्लाह की तरफ़ से होने वाली आज़माइश पर सब्र करना, और समझलो कि जो दोस्ती व दुश्मनी, देना और ना देना, अल्लाह की वजह से करे उसने अपने ईमान को पूर्ण कर लिया है।

हदीस की व्याख़्या
इस हदीस में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) पूर्ण ईमान की श्रेणियों को बयान फ़रमा रहे हैं।
1-     “अत्तवक्कुलु अला अल्लाह” पहला पड़ाव भरोसा है। हक़ीक़त में मोमिन यह कहता है कि चूँकि उसके ज्ञान, शक्ति और रहमानियत को मैं जानता हूँ और मैं उस पर ईमान रखता हूँ, इस लिए अपने कामों में उसको वकील बनाता हूँ।
2-     “व अत्तफ़वीज़ु अला अल्लाह ” दूसरा पड़ाव तफ़वीज़ है। तफ़वीज़ यानी सपुर्द करना या सौंपना। पहले पड़ाव पर मोमिन अपने चलने के लिए अल्लाह की राह को चुनता है। मगर इस दूसरे पड़ाव पर मोमिन हक़ीक़तन अल्लाह से कहता है कि अल्लाह ! तू ख़ुद बेहतर जानता है मैंनें तमाम चीज़े तेरे हवाले कर दी हैं।

भसोरा और हवाले करने में क्या अंतर है
भरोसा करने में इंसान अपने लाभ को महत्व देता है इसलिए अपने लाभ की तमाम हदों को देखता है। लेकिन हवाले करने की मंज़िल में वह यह तो जानता है कि लाभ है, मगर लाभ की हदों के बारे में नहीं जानता इसलिए सब कुछ अल्लाह के हवाले कर देता है क्योंकि इस पड़ाव पर  उसे अल्लाह पर पूर्ण भरोसा होता है।
3-     “व अत्तसलीमु लि अम्रि अल्लाह” यह पड़ाव दूसरे पड़ावों से उच्च है। क्योंकि इस पड़ाव पर इंसान लाभ को महत्व नही देता, ख़ुदा पर भरोसा करते समय ख़्वाहिश (चाहत) मौजूद थी, लेकिन तस्लीम के मरहले में ख़्वाहिश नही पायी जाती।

सवाल- अगर इस मरहले में ख़्वाहिश नही पायी जाती तो फ़िर दुआ क्यों की जाती है ?
जवाब- हवाले करने का अर्थ यह नही है कि हम अल्लाह से अनुरोध न करें , बल्कि तस्लीम या हवाले करने का अर्थ यह है कि अगर हम अल्लाह से कोई चीज़ चाहें और वह न मिले तो, तस्लीम हो जायें।

4-     “व अर्रिज़ा बि क़ज़ाइ अल्लाह” रिज़ा या राज़ी रहने का पड़ाव तीसरे पड़ाव से भी उच्च है। तस्लीम के पड़ाव पर इंसान के लिए लाभ हैं मगर इंसान उनसे आँखें मूंद लेता है। लेकिन रिज़ा का पड़ाव वह है जिसमें इंसान की आत्मा में भी अपनी ख़्वाहिशों के लिए ज़िद नही पायी जाती है, और रिज़ा व तस्लीम के बीच यही फ़र्क़ पाया जाता है।

 
इन तमाम श्रेणियों और पड़ावों को धैर्य के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। धैर्य तमाम नेकियों की जड़ है। अमीरुल मोमिनीन (अ.) की वसीयत में पाँचवी फ़रमाइश सब्र के बारे में है जो दूसरी चारो फ़रमाइशों के जारी होने का ज़ामिन है। काफ़ी है कि इंसान इन कमालात तक पहुँचने के लिए कुछ दिनों में अपने आप को तैयार करे, लेकिन इससे अहम मसअला यह है कि इस रास्ते पर बाक़ी रहे। जिन लोगों ने इल्म, अमल, तक़वा और दूसरे तमाम मरतबों को हासिल किया हैं उनके बारे कहा गया है कि वह सब्र के नतीजे में इस मंज़िल तक पहुँचे हैं।

हदीस के आखिर में जो वाक्य है वह पहले वाक्यों का अर्थ बताता है यानी दोस्ती, दुश्मनी, किसी को कुछ देना या किसी को मना करना सब कुछ अल्लाह के लिए हो, क्योंकि यह सब कमाले ईमान की निशानियाँ है।

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