ईमान सदैव ख़ालिस होना चाहिए।
ईमान सदैव ख़ालिस होना चाहिए।
एक बार हज़रत सुलैमान (अ) किसी स्थान से जा रहे थे कि आपने सुना कि एक नर चींटा माता चींटी से कह रहा हैः "तू मुझसे इतनी दूर क्यों रहती है जबकि मै तो इतना शक्तिशाली हूँ कि अगर चाहूँ तो सुलैमान की तख़्त को बरबाद करके दरिया में फेंक दूँ"।
हज़रत सुलैमान (अ) उसकी बात सुनकर मुसकुराए और उसको अपने दरबार में बुलाया और उससे पूछाः यह बताओ क्या तुम्हारे पास इतनी शक्ति है कि मेरे तख़्त को दरिया में फेंक सको?
चींटे ने उत्तर दिया कदापि नही। आप तो मेरी शक्ति को जानते हैं ही। लेकिन एक नर को चाहिए कि वह अपनी मादा को प्रभावित करने के लिए इस प्रकार की बातें करे, ताकि मादा उससे प्रभावित हो। और दूसरी बात यह है कि आशिक़ सदैव मजबूर होता है इसलिए उसकी निंदा नही की जानी चाहिये।
उसके बाद हज़रत सुलैमान (अ) ने मादा चींटी से कहाः "तू अपने पति की आज्ञा का पालन क्यों नही करती है जबकि वह तुझे इतना चाहता है तुझसे इतना प्रेम करता है"।
चींटी ने उत्तर दिया यह अपने इश्क़ के दावे में झूठा है। यह मुझसे प्यार और मोहब्बत का दावा तो करता है लेकिन इसके दिल में दूसरों के लिए भी प्रेम है।
यह हज़रत सुलैमान (अ) ने चींटी की यह बात सुने तो बहुत प्रभावित हुए और ख़ुदा के इश्क़ में रोने लगे। पूरे चालीस दिन तक आप किसी से नही मिले और सदैव दुआ करते रहे हे ईश्वर मेरे दिल से दूसरो के लिए मोहब्बत को निकाल दे और मुझे अपना सच्चा आशिक़ बना दे।
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