शिकायत ना करो

शिकायत ना करो

मुफ़ज़्ज़ल बिन क़ैस का जीवन बहुत कठिनाइयों में व्यतीत हो रहा था ग़रीबी, बदहाली, और प्रतिदिन होने वाले ख़र्चों से वह बहुत परेशान था। एक दिन वह हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम के पास आया और अपना हाल बयान करने लगा और बताया कि किस प्रकार उसका जीवन कठिन हो गया है, उसने कहा मेरा क़र्ज़ा बहुत अधिक हो गया है किसी प्रकार भी अदा नही कर पा रहा हूँ, ख़्रचे बढ़ रहे हैं लेकिन आमदनी कहीं से नही हो रही है क्या करुँ कुछ समझ में नही आता हर द्वार पर गया लेकिन सारे द्वार मेरे लिए बंद कर दिये गए।
उसने इमाम से कहा कि आप मेरे दुआ करे और ख़ुदा से कहे की मेरी कठिनाइयों को समाप्त कर दे मेरा जीवन आसान हो जाए।
इमाम ने अपनी एक दासी को जो वही ख़ड़ी थी आदेश दिया जाओं वह अशरफ़ी की पोटली ले आओ जो मंसूर ने मेरे लिए भेजी थी। वह दासी पोटली लेकर आती है। इमाम ने मुफ़ज़्ज़ल से कहा कि इस थैली में चार सौ दीनार हैं जिससे कुछ दिन के लिए तुम्हारा ख़र्च चल सकता है। मुफ़ज़्ज़ल ने जब यह देखा तो कहा कि श्रीमान मेरा यह इरादा नही था मैं तो केवल यह चाहता था कि आप मेरे लिये दुआ कर दें
इमाम ने कहा कि अच्छा मैं तुम्हारे लिए दुआ अवश्य करूँगा लेकिन मेरी एक बात याद रखना अपने जीवन की कठिनाइयों के बारे में किसी को ना बताना अपनी परेशानियों को दूसरों पर प्रकट ना करना इसका पहला प्रभाव यह होगा कि तुम ज़मीन पर गिर चुके हो और ज़माने से तुम हार चुके और और अगर तुम अपनी अवस्था किसी से बयान करोगे तो तुम लोगों कि निगाह में गिर जाओगे और तुम्हारा सम्मान जाता रहेगा।

नई टिप्पणी जोड़ें