इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर से पहले की सामान्य निशानियाँ
इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर से पहले की सामान्य निशानियाँ
निसंदेह यह कहा जा सकता है कि अगर कोई धर्म या सम्प्रदाय है जिसने अन्तिम सुधारक और दुनिया के अंत के बारे में सबसे अधिक साफ़ और रौशन शब्दों में कहा है तो वह शिया सम्प्रदाय है।
अगर हम ईसाईयों से ज़ोहूर (प्रकट होने) के बारे में प्रश्न करें तो वह उत्तर देते हैं कि यह एक रहस्य है।
शायद वह सही भी कहते हैं क्योंकि हर वह चीज़ जिनका उत्तर उनके पास नही होता है उसके बारे में यही कहते हैं कि यह एक रहस्य है।
जैसे अगर हम उनके ईश्वर के बारे में प्रश्न करें कि किस प्रकार एक तीन होता है और तीन एक? (क्योंकि वह कहते हैं कि ईसा ईश्वर हैं या ईश्वर के बेटे है और रूहुल क़ुदस, यानी ईश्वर इन तीनों से मिलकर बना है और फिर भी वह कहते हैं कि हमारा ख़ुदा एक है!) तो वह कहते हैं कि उस पर ईमान लाओ उस पर आस्था रखों ता कि समक्ष सको।
मै कहूँगा कि तुम तो उस पर ईमान ला चुके हो तुमको तो पूरी आस्था है इसका मतलब है कि तुम समझ भी चुके होगे, अब तुम हमें समझाओं ता कि हम भी मसझ सके, फिर उनका उत्तर यही होता है कि यह नही हो सकता है। इसी प्रकार अन्तिम सुधारक के बारे में भी यही कहते हैं।
हर वह सम्प्रदाय जिनके यहा अन्तिम सुधारक के बारे में कुछ कहा गया है उनकी बातें पूरी नही है या फिर उनमें फेर बदल कर दिया गया है। लेकिन यह केवल शिया सम्प्रदाय ही है जो अन्तिम सुधारक के प्रकट होने से पहले की निशानियों और घटनाओं के बारे में साफ़ साफ़ बता रहा है।
जिनमें से कुछ को हम यहां पर बयान कर रहे हैं।
1. अत्याचार का सार्वजनिक होना।
अन्तिम सुधारक इस अत्याचार को समाप्त करेगा।
अत्याचार की विभिन्न प्रकार की व्याख्याएं की गई हैं जैसे कोई किसी की चीज़ पर अनाधक्रित रूप से क़ब्ज़ा कर ले या किसी दूसरे की चीज़ को छीन ले। यह भी एक प्रकार का ज़ुल्म और अत्याचार है लेकिन इन सबसे बड़ा एक ज़ुल्म और अत्याचार है जिसको आख़िरी ज़माने का सुधारक आकर समाप्त करेगा और वह अत्याचार है, इन्सान का अपने ऊपर ज़ुम्ल करना।
मासूम इमाम और अहलेबैत (अ) का स्थान यह है कि उनको ईश्वर ने ग़ैब का इल्म (अद्रश्य चीज़ों की जानकारी) दिया है और अन्तिम ज़मानें और उस समय की घटनाओं के बारे में उनके कथन सटीक और सही हैं।
हमारे आलिमों ने इन ग़ैब में से कुछ को निश्चिंत और कुछ को ग़ैर निश्चिंत बताया है या फिर उनके बारे में स्वंय अहले बैत (अ) ने कहा है कि यह निशानियाँ निश्चिंत हैं (यानी जब यह निशानियां प्रकट हो जाएं तो समझ लो कि वह अन्तिम सुधारक (इमामे ज़माना) आने वाला है।
अहले बैत (अ) ने जो यह कहा है कि यह निश्चिंत या यक़ीनी है तो इसका अर्थ यह नही है कि यह चीज़ प्रकट होगी या नही प्रकट होगी बल्कि निश्चिंत या यक़ीनी का अहले बैत के कथन में अर्थ यह है कि इस घटना के बाद एक विशेष समय पर निसंदेह अन्तिम सुधारक या इमाम ज़माना (अ) प्रकट होंगे और यह सब एक माला में पिरोए हुए मोतियों की भाति हैं यानि एक के बाद एक हैं।
जैसे कि हमको पता है कि सुफ़ियानी के ख़ुरूज (प्रकट होने) के बाद 6 महीने में इमामे ज़माना (अ) का ज़ोहूर होगा और इसने बाद आपका आना निश्चिंत हैं, लेकिन दूसरे लक्षण या निशानियाँ जिनको अहले बैत नें बताया है उसके कितने समय के बाद इमाम (अ) का ज़ोहूर होगा यह नही बताया है (यह वह निशानियां हैं जो निश्चिंत नही है)
लेकिन वह तमाम रिवायतें जो इमाम के ज़ोहूर से पहले की सामान्य निशानियों के बारे में हैं उनमें इन निशानियों की तरफ़ इशारा किया गया है।
2. दुनिया में हर जगह और हर स्थान पर अशांति का फैल जाना।
आज दुनिया में कितने ऐसे घर हैं को शत प्रतिशत ख़ुदाई हैं?
क्या चैनलों और उपग्रहों की तरंगे पर घर में प्रवेश नही कर गई हैं?
क्या धर्मों और हर धर्म के अनुयायियों के बीच मतभेद बढ़ नही गये हैं और क्या दुनिया के हर कोने से इन्सानों को अपनी तरफ़ बुलाने की आवाज़ें नही आ रही हैं?
..... आज क्यों कोई भी म्यूज़िक और गाने का हराम नही समझ रहा है।
पाप की बुराई समाप्त हो चुकी है अब कोई पाप को पाप नही समझता है।
3. ज़ुल्म और अत्याचार का समान्य हो जाना।
4. निराशा का फैलना और सार्वजनिक हो जाना।
इस निराशा का नतीजा डिप्रेशन के लिये ली जाने वाली गोलियां हैं।
अगर दुनिया इसी प्रकार आगे बढ़ती रही तो संसार में डिप्रेशन विकराल रूप ले लेगा और एक संकट बन जाएगा और 2020 तक दुनिया का सबसे बड़ा संकट निराशा और डिप्रेशन होगा, और जो इन्सान निराश हो क्या वह कोई काम कर सकता है? नही।
5. मतभेदो का आम हो जाना।
वह मतभेद जिनका कोई अंत नही है और उनका नतीजा, उपद्रव, विश्व युद्ध, लोगं का नरसंहार..... है।
6. धर्म परिवर्त आम होगा।
दूसरे धर्म में चले जाना आसान नही है, रिवायतों में आया है कि अन्तिम समय में यह काम इतना आसान हो जाएगा कि इन्सान जब रात में सोएगा तो मोमिन होगा लेकिन जब सुबह उठेगा तो काफ़िर होगा, इसी प्रकार इसके उलट होगा।
7. सूद का आम होना।
रिवायत में है कि आख़िरी ज़माने में कोई नही होगा मगर यह कि वह सूद खाता होगा या फिर सूद की गर्द और धूल उस तक पहुँचती होगी।
ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता हैः जो भी सूद खाता है या सूद देता है वह ऐसे ही है कि जैसे उसने एलान कर दिया हो कि मैं ख़ुदा से जंग कर रहा हूँ।
8. आख़िरी ज़माने में धर्म का पालन कठिन होगा चाहे किसी भी धर्म का मानने वाला हो।
जैसे क्या आज के ज़माने में ईसाई धर्म में ऐसा नही है?
क्या ईसाई लोग तौरैत और इन्जील के अनुसार अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं?
रिवायत में आया हैः आख़िरी ज़माने में धर्म का पालन उतना ही कठिन होगा जितना कि हाध में आग का लेना और जो मोमिन चाहता है कि अपने दीन की सुरक्षा करे वह ऐसा ही है कि जैसे एक लोमड़ी अपने बच्चों के साथ एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर भागती है और मोमिन बात भी नही कर सकेगा।
रिवायत में आया है कि अगर वह बोलेगा तो क़त्ल कर दिया जाएगा और अगर चुप रहेगा तो बरबाद कर दिया जाएगा और लूट लिया जाएगा।
9. मस्जिदों को सजाया जाएगा और उनको ख़ाली किया जाएगा।
जैसा कि हम आज देख रहे है कि लोग मस्जिदों में हैं लेकिन उनके दिल एक दूसरे से मेल नही खाते हैं एक दूसरे से मतभेद रखते हैं।
एक दूसरे को मार देने का फ़तवा दे रहा है और दूसरा तीसरे को मारने का कोई भी दूसरे को स्वीकार करने के लिए तैयार नही है।
10. एक के बाद एक जंग का होना और उनका समाप्त ना होना।
आंकड़े बताते हैं कि पहले या दूसरे विश्व युद्ध के बाद केवल 14 दिन ऐसे थे जिसमें दुनिया में कोई जंग नही हो रही थी।
11. बुराईयों और अशलीलता का बढ़ जाना।
पहले ऐसा नही था, अगर हम इतिहास की ओर बल्कि अपने पूर्वजो के देखें तो पता चलता है कि स्वंय यहूदियों, ईसाईयों, हिन्दुओं... आदि इसके विरुद्ध थे। लेकिन आज आप ज़रा देखें डांस, वेश्यावृति, शराब आदि आम और क़ानूनी हो चुके हैं!
रिवायत में समलैगिकता के बारे में बताया गया है कि समलैंगिकता इतनी बढ़ जाएगी एक समलैंगिक अपने साथी के बारे में उसी प्रकार ग़ैरत दिखाएगा जैसे मर्द या बाप अपनी बेटी के बारे में दिखाता है।
पाप इतना बढ़ गया है कि चर्च ने समलैंगिकता को क़ानूनी कर दिया है वह समलैंगिकों के लिए समारोह कर रहे हैं और इस पर फ़ख़्र कर रहे हैं और कहते हैं जो भी समलैंगिकता का विरोध करे वह मानवाधिकार का विरोधी है!
12. मोमिनों के बीच मतभेद।
13. अरब के राजाओं और हुकूमतों के बीच मतभेद।
ज़ोहूर से पहले की निशानियों में हैं कि जो भी "अब्दुल्लाह" की मौत की मुझे गारन्टी दे मैं उसे "ज़ोहूर" की गारन्टी देता हूँ कि "अबदुल्लाह" की मौत के बाद हालात ऐसे होंगे कि हर कोई उसका उत्तराधिकारी होने के लिए दूसरे से लड़ेगा। फिर इमाम (अ) फ़रमाते हैं कि हुकूमत जो कि पहले लंबी हुआ करती थी सालों तक रह जाएगी फिर महीनों में सिमट जाएगा फिर...
14. लाल और सफ़ेद मौत से अधिकतर लोगों का मर जाना।
एक रिवायत में है कि जब लोग अरफ़ा के आमाल को अंजाम दे रहे होंगे तो एक सवार "अबदुल्लाह" की मौत की सूचना दे और तब तीव्र मतभेद होगा और इन मतभेदों के कारण अत्याचारियों की संख्या कम हो जाएगी और यह एक नेमत है।
और रिवायत में आया है कि ज़ोहूर से पहले दुनिया की अधिकतर आबादी लाल या सफ़ेद मौत में समाप्त हो जाएगी, लाल मौत जंग और सफ़ेद मौत बीमारी है।
15. इन्सानों की आयु का कम हो जाना।
आज के समय में भी आयु का कम होना सामान्य हो चुका है लेकिन बाद में आने वाले लोग इस पर आश्चर्य करेंगे और जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस बारे में पहले के लोगों को बताते थे तो वह भी आश्चर्य करते थे।
एक रिवायत में आया है कि आपने फ़रमाया कि उस ज़माने में लोगों की आयु इतनी अल्प होगी की एक ज़ाहिद (सदैव ईश्वर की अराधना करने वाला) ने कहाः अगर मेरी आयु इतनी होती तो मैं अपनी पूरी आयु एक सजदे में ही समाप्त कर देता।
हज़रत नूह (अ) के ज़माने में 1000 साल तक जीवित रहना आम था लेकिन अब........
16. हक़ (सत्य) का बातिल (असत्य) के अलग हो जाना।
यह काम ईरान के शहर क़ुम से आरम्भ होगा।
रिवायत में आयता है कि क़ुम से ज्ञान का इस प्रकार प्रसार होगा कि हक़ बातिल से इस प्रकार अलग हो जाएगा कि घर में रहने वाली ग्रहणियाँ भी हक़ को समझेंगी और पहचानेंगी।
17. बातिल का मोरचा हक़ को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए कूच करेगा।
सौ वर्ष पहले से यह प्लान बनाया जा चुका है कि इस ज़माने में एक जंग होगी जिसका नाम आरमागदोन होगा।
यहूदी और ईसाई सालों तक एक दूसरे के शत्रु थे लेकिन अब एक दूसरे के मित्र हो चुके हैं क्योंकि वह कहते हैं कि हम दोनों का एक शत्रु है और वह है इस्लाम, और यह लोग इस्लाम को समाप्त करने के लिए एक दूसरे से हाथ मिला चुके हैं।
18. ज़ोहूर से पहले अत्याचारी सत्ताधारियों का होना।
ज़ोहूर से पहले सत्ता में अत्याचारी लोग आएँगे और सत्ता को अपने हाथ में ले लेंगे।
19. ज़ोहूर से पहले पाप पुन्य होगा और पुन्य पाप।
यहां तक कि मुसलमानों के बीच भी अब अच्छाई बुराई हो गई है और बुराई अच्छाई, कितने आश्चर्य की बात हैं।
जैसे एक दिन हज़रत मासूमा (स) के रौज़े में मैने तहतुल हनक (अम्मामे का वह कपड़ा हो गले में लटकाया जाता है) लगा रखा था एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहा यह क्यों लगा रखा है, आज के ज़माने में यह सही नही है, जब कि इस्लाम में साफ साफ कहा गया है कि यह एक अच्छा और मुस्तहेब कार्य है।
आज अगर आप कोई अच्छा काम करें तो लोग मज़ाक उड़ाते हैं कि देखों यह नमाज़ पढ़ रहा है अरे यह तो अभी भी दीन के चक्कर में हैं आदि।
20. अन्तिम ज़माने में ऐसा होगा कि अगर 20 लोगों को देखोंगे तो एक भी ईश्वरीय चेहरा दिखाई नही देगा।
21. रिवायत में आया है कि मर्द औरतों का भाति और औरत मर्दों की तरह श्रंगार करेंगे।
शायद यह रिवायत सेक्स चेंज की तरफ़ भी इशारा कर रही हो जो आज कर आम हो चुका है, कोई भी औरत या मर्द अपने शरीर से नही होता है बल्कि यह उसकी आत्मा होती है जो उसको स्त्री या पुरुष बनाती है।
22. लोग तो एक साथ होंगे लेकिन दिल अलग अलग।
23. तलाक़ बढ़ जाएंगे।
तलाक़ बहुत सी बुराई पैदा करता है, इसकी बुराई इतनी हैं कि ईसाईयों में कहा जाता है कि ईसाई धर्म में तलाक़ नहीं है दो लोग जिन्होंने शादी की है अगर तलाक़ भी ले लें तब भी वह एक दूसरे के पति पत्नी रहेंगे, और यह ईसाई धर्म की कठिनाईयों में से एक है।
यह इस्लाम है जिसमे तलाक़ की अनुमति दी है, लेकिन तलाक़ की अधिकता अच्छी नही है, रिवायत में आया है कि ख़ुदा के नज़दीक सबसे बुरा हलाल कार्य तलाक़ है।
24. ईश्वरीय दंड का जारी ना किया जाना।
आज़रबाइजान जो कि एक इस्लामी देश है वह डिस्को और डांस आम और क़ानूनी है और पैसा प्राप्त करने के लिए देश और विदेश की लड़कियों को वहां लाया जाता है और उनसे बुरे काम करवाए जाते हैं, और इस इस्लामी देश में इस कार्य के लिए कोई दंड नही दिया जाता। क्यों? क्योंकि किसी के पास इतनी शक्ति नही है कि ईश्वरीय दंड को जारी कर सके।
इमामे ज़माना जब आएंगे तो उनके पास तीन चीज़ें होंगी (1) ज्ञान (2) शक्ति (3) मासूम होना।
25. गाना गाने वाली औरतों की संख्या का अधिक हो जाना।
26. पाप और बुराई की आयु का कम हो जाना यहा तक की नाबालिग़ों में पाप और बुराई का फैलना।
चार साल की बच्चियों के लिए अशलील खेलों का बनाया जाना, अमरीकी सभ्यता के अनुसार नग्न जीवन, और इस खेल के माध्यम से चार साल की बच्ची को समझाया जाता है कि अगर तुम चाहती हो कि दूसरे तुम पर ध्यान दें अगर तुम चाहती हो कि अपने सौन्दर्य को दिखाओं तो तुम जितना कम कपड़ें में होगी लोगों की निगाहें उतना ही तुम पर केन्द्रित होंगी और उतना ही तुम पर ध्यान दिया जाएगा।
27. म्यूज़िक के संसाधनों की अधिकता।
28. अगर कोई कार्य किया जाएगा तो वह ईश्वर के लिए नही होगा।
रिवायत में आया है कि अगर लोग हज पर भी जाएंगे तो वह या तो व्यापार के लिए होगा या घूमने फिरने के लिए या फिर अपने को दिखाने के लिए।
29. फक़ीर हफ़्तों मांगेगा लेकिन उसको कुछ ना मिलेगा।
अगर फ़क़ीर मांगेगा नही तो मर जाएगा और अगर मांगेगा तो अपमानित होगा और उसका तिरस्कार किया जाएगा।
यह वह रिवायतें थी जो इमाम (अ) के ज़ोहूरे से पहले की सामान्य निशानियों को बयान कर रही हैं और यह साफ़ साफ़ शब्दों में बयान की जाने वाली वह निशानियाँ हैं जिनको केवल शिया सम्प्रदाय ने ही बयान किया है किसी और सम्प्रदाय ने इतने स्पष्ट शब्दों में बयान नही किया है।
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