इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम 2
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम 2
भाग 2
आप जानते हैं कि हम इस लेख में रसूल (स) के बेटे इमाम सादिक़ (अ) के बारे में बहस कर रहे हैं।
इनके बारे में एक प्रश्न किया जाता है जो कि नया नही है बल्कि ख़ुद मासूमीन (अ) के ज़माने में भी किया गया है वह यह है किः
इमाम सादिक़ को सादिक़ क्यों कहा जाता है?
इस बारे में एक बहुत ही बेहतरीन रिवायत इस्लामी स्रोतो में मिलती है कि इमाम सज्जाद (अ) ने फ़रमायाः कि आपका एक बेटा था जो इमाम सादिक़ (अ) के हमनाम था और उसने इमामत का झूठा दावा किया था तो इसलिए कि इन दोनों में अंतर हो सके आपको जाफ़र सादिक (अ) कहा गया।
एक दूसरा सवाल किया जाता है और स्वंय आपके ज़माने में भी पूछने वालों ने यह प्रश्न पूछा है किः इमाम (अ) ने अपने ज़माने की अत्याचारी हुकूमत से जंग क्यों नही की। जब्कि इमाम हुसैन (अ) हज़रत अली (अ) ने की थी?
इससे पहले कि इसका उत्तर दिया जाए यह बता देना आवश्यक है कि हमें यह ध्यान रखना चाहए कि तमाम मासूमीन चाहे वह कोई भी वह ख़ुदा की तरफ़ से आदेश लेते हैं उनको अगर जंग का हुक्म दिया जाता है तो वह जंग करते हैं और अगर चुप रहने का आदेश दिया जाता है तो वह चुप रहते हैं और दूसरे प्रकार से समाज को सही रास्ता दिखाते हैं।
रिवायत में है कि एव व्यक्ति जिसका नाम "सहल बिन ज़्याद" था वह इमाम (अ) के पास आता है और कहता है कि हे रसूल के बेटे आपके इतने चाहने वाले हैं, आपके इतने मानने वाले है, तो फिर आप इस अत्याचारी हुकूमत के ख़िलाफ़ उठ खड़े क्यों नही होते हैं? आप उनसे जंग का एलान क्यों नही करते हैं? आपने कहा अच्छा ऐसी बात है। आपने आदेश दिया कि एक तंदूर जलाया जाए, तंदूर जलाया गया आपने "सहल" से कहा कि तंदूर के अंदर चले जाओ, सहल ने एक बार जलते हुए तंदूर को देखा और सोचा कि यह आग है मुझे जलाकर राख कर देगी मैं जल जाउँगा, फिर कहा यह कैसे?यह तंदूर तो मुझे जला देगा। उसी समय आपके एक सहाबी "हारूने मक्की" आए आपने कहा हे "हारून" इस तंदूर में चले जाओं। हारुन बिना कोई प्रश्न किए तंदूर में चले गए। ऊपर से ठक्कन लगा दिया गया। अब सहल परेशान हैं। ना जाने हारून का क्या हुआ होगा? वह ज़रूर मर गया होगा इत्यादि। आख़िर ठक्कन हटाया गया तो क्या देखा कि हूरून सही सलामत हैं।
तो सोचने वाली बात है कि कल जो आग "इब्राहीम" के लिए फूल बन गई थी जिनके बारे में रिवायत में आया है कि इब्राहीम अली (अ) के शियों में से थे तो कल उस शिया के लिए आग फूल बन गई थी और आज इस शिया के लिए। यह तो अहलेबैत (अ) का स्रष्टि पर कंट्रोल है जैसा कि ख़ुदा कहता हैः तुम मेरी इबादत करों मै तुमको अपने जैसा बना दूँगा। जैसे मै कहता हूँ कि "हो जा" तो हो जाता है वैसा ही तुम जो कहोगे वैसा हो जाएगा।
अब इमाम (अ) कहते हैं है सहल बताओ इस प्रकार के कितने लोग है? कितने लोग है जो इस प्रकार मेरे आदेश का पालन करने वाले हैं? और तुम कहते हो कि मैं हुकूमत से जंग का एलान क्यों नही करता हूँ?
रिवायत में है कि वास्तविक मानने वाले इमाम अली (अ) के साथ 52 लोग थे इमाम हुसैन (अ) के साथ 72 और इमाम मेहदी (अ) के साथ 313 होंगे।
ऐसा नही है कि इमाम (अ) के हुकूमत के साथ अच्छे सम्बन्ध थे, नही कितनी ही बार कोशिश की गई कि आपको शहीद कर दिया जाए कितनी ही बार आपके घर पर धावा बोला गया।
एक बार मंसूर ने आदेश दिया कि आज जाफ़र (अ) जिस भी अवस्था में हो उनको उठाकर लाया जाए। जब सैनिक घर पहुँचे तो इमाम (अ) इबादत कर रहे थे आपको लाया गया उसने अपने सैनिकों से कह रखा था कि जब भी मैं अपना ताज उतारूँ उसी समय उनके मार देना। उसने तीन बार ताज उतारने की कोशिश की लेकिन उतार ना सका।
आपके जाने के बाद सैनिकों ने पूछा तुमको क्या हुआ था? आख़िर ताज उतारा क्यों नही?
उसने कहा जब भी मैने उतारने की कोशिश मै ने देखा कि एक जानवर है जो मेरी तरफ़ देख रहा है और ऐसा लगता था कि अगर मैने ताज उतारा तो वह मुझे मार देगा इसी डर से मैं ताज ना उतार सका और इमाम (अ) को हानि नही पहुँचा सका।
इस इमाम (अ) के बारे में क्या बयान किया जा सकता है सारे संसार की ज़बाने गूंगी हो जाए तब भी आपकी वास्तविक महानता बयान नही की जा सकती आपने अपने शियों को विभिन्न प्रकार की वसीयतें की है जिनमें से एक यह है कि आपने अपने अन्तिम समय में कहाः हमारी शिफ़ाआत नमाज़ को हलका मसझने वाले को प्राप्त नही होगी।
तो हमको अपने कार्यों का आंकलन करना चाहिए हमे अपने बारे में सावधान रहना चाहिए।
यह वह इमाम है जिसके इल्म और ज्ञान को विरोधियो ने भी स्वीकार किया है।
सुन्नियों के इमाम अबू हनीफ़ा इमाम सादिक के बारे में कहते हैं: "दुनिया का सबसे बड़ा आलिम और लोगों के हालात को सबसे अधिक जानने वाला कोई और नही जाफ़र सादिक (अ) है।"
अब सवाल यह है कि जब सबको पता था कि इनसे बड़ा कोई आलिम नही है तो आख़िर क्यों इनको नज़रों से दूर रखा गया? क्यों इनको समाज में रहने नही दिया गया? क्यों लोगों पर इनसे मिलने की पाबंदी गलाई गई? किसी के पास है इन प्रश्नों का उत्तर?
नही। कोई भी इन प्रश्नों का उत्तर नही दे सकता है और देगा भी क्या सिवाये इसके कि यह हुकूमत की साज़िश थी हुकूमत नही चाहती थी कि लोगों को मालूम हो कि रसूल के वास्तविक ख़लीफ़ा और इस हुकूमत के वास्तविक अधिकारी वह है।
कितने अफ़सोस की बात है कि आज इमाम सादिक़ (अ) जैसे व्यक्तित्व के लिए यह प्रश्न किये जा रहे हैं कि क्या वह आलिम थे? जब कि सब जानते हैं कि आपने किस किस प्रकार इल्म और ज्ञान की सेवा की है आपने हज़ारों शागिर्द छोड़े हैं जो अलग अलग विषयों में विशेषग्य थे जो भी किसी विशेष विषय में प्रश्न करता था कहा जाता था जाओं मेरे उस शागिर्द से पूछ लो।
वह इमाम सादिक़ (अ) जिनका सुन्नियों के इमाम "अबू हनीफ़ा" से एक "मुनाज़ेरा" (ज्ञानिक बहस) प्रसिद्ध है, कि जब आपको पता चला कि "अबू हनीफ़ा" इस्लामी आदेशों को निकालने के लिए अपनी राय और अपनी सोच और क़यास (यानी यह देखना कि दो चीज़ें किसी स्थिति में एक जैसी हैं तो उनका आदेश भी इस्लाम में एक ही होगा) का प्रयोग करता है (बजाए इसके कि इस्माली क़ानून और शरीअत को क़ुरआन या रसूल की सीरत से निकला जाए) तो आपने उसको बुलाया और कहा
इमाम सादिक़ (अ) :मैने सुना है कि तू इस्लाम में क़यास को मानता है?
अबू हनीफ़ा: हाँ
इमाम सादिक़ (अ): क़यास ना किया करो क्यों कि सबसे पहले जिसने क़यास किया वह शैतान था और वह गुमराह एवं पथ भ्रष्ट हो गया।
इमाम सादिक(अ): अच्छा अगर तू क़यास को मानता है तो यह बता कि क़त्ल बड़ा पाप है या जि़ना? (दुराचार, बलात्का)
अबू हनीफ़ाः क़त्ल
इमाम सादिक़ (अ): अगर ऐसा है तो क्यों क़ातिल को सिद्ध करने के लिए इस्लाम में दो गवाह मांगे गए हैं और ज़िना के लिए चार गवाह? लॉजिक और क़यास तो यह कहता है कि अगर क़त्ल बड़ा पाप है तो उसके लिए आठ गवाह होने चाहिएं।
इमाम सादिक़ (अ): अच्छा यह बताओं पेशाब अधिक नजिस है या मनी? (वीर्य)
अबू हनीफ़ाः पेशाब
इमाम सादिक़ (अ): अगर ऐसा है तो क्यों पेशाब के लिए केवल उसी अंग को पवित्र किया जाता है लेकिन मनी निकलने पर पूरा शरीर धोना (ग़ुस्ल) पड़ता है?
इमाम सादिक़ (अ) इस्लाम में नमाज़ अधिक महत्व रखती है या रोज़ा?
अबू हनीफ़ाः नमाज़
इमाम सादिक़ (अ): अगर ऐसा है तो मासिक धर्म में रहने वाली औरत रोज़े की तो क़ज़ा (किसी काम को समय के बाद करना) करती है लेकिन नमाज़ की नही जब्कि होना तो इसके उलट चाहिए था ऐसा क्यों?
इमाम सादिक़ (अ): औरत आधिक कमज़ोर है या मर्द?
अबू हनीफ़ाः औरत
इमाम सादिक़ (अ): तो फ़िर क्यों इस्लाम में औरत की मीरास आधी है जब्कि अगर वह अधिक कमज़ोर है तो उसका प्रोत्साहन करने के लिए उसको मर्द से अधिक मीरास मिलनी चाहिए?
इसी प्रकार आपने बहुत से प्रश्न अबू हनीफ़ा से किये जिनके सुन कर वह हक्का बक्का रह गया और उससे कोई जवाब ना बन पड़ा और वह लज्जित हो कर चला गया
यह है इमाम सादिक़ का ज्ञान और आज कुछ जानकारी ना रखने वाले हसद एवं जलन रखने वाले लोग यह प्रश्न करते हैं कि क्या वास्तव में इमाम सादिक़ ज्ञानी और आलिम थे। कितने आश्चर्य की बात है
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