पेंशन

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एक ईसाई बूढ़े ने अपने पूरे जीवन मेहनत की लेकिन वह अपने लिए कुछ जमा नही कर सका, अंत में वह बूढ़ा हो गया उसकी आखों की रौशनी भी चली गई कुछ ना होने के कारण ग़रीबी भी एक समस्या बन गई। अब उसके पास भीख माँगने के अतिरिक्त उसके पास कोई दूसरा रास्ता न था इसलिए वोह एक गली में एक कोने में ख़ड़ा होकर भीख माँगता था। लोगों को उसे देख कर दया आ जाती और  उसको सदके के तौर पर एक-एक पैसा देते थे । वह इस प्रकार फ़क़ीरी में बहुत बुरी और कठिन ज़िन्दगी बिता रहा था


यहाँ तक कि एक दिन जब हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.) का उधार से गुज़र हुआ और आपने उस ईसाई को इस दयनीय स्थिति में देखा, तो आप उसकी इस स्थिति के बारे में सोचने लगा कि आख़िर वह कैसे इन दिनों तक पहुँच गया उसकी ऐसी बुरी हालत कैसे हो गई।
और आपने सोचा कि पता किया जाए कि क्या उसका कोई बेटा है जो उसका ख़र्च उठाए और उसको इस दयनीय स्थिति से बाहर निकाले। क्या और कोई दूसरा रास्ता है जिसके माध्यम से यह बूढ़ा व्यक्ति सम्मान जनक जीवन व्यतीत कर सके और उसको भीख ना मांगनी पड़े।
कुछ लोग उस बूढ़े को पहचानते थे वह आए और इमाम अली (अ) से कहा कि यह एक ईसाई व्यक्ति है जब तक यह जवान था और इसकी आखों में रौशनी थी यह काम करता था अब जबकि यह बूढ़ा और बीमार हो चुका है तो यह कोई काम नही कर सकता इसलिए इसके पास भीख मांगने के अतिरिक्त कोई और चारा नही है। इमाम अली (अ) ने फ़रमाया कितने आश्चर्च की बात है कि जब तक यह जवान और शक्तिशाली था इसने तुम लोगों के लिए काम किया तुम इससे अपना काम निकलवाते रहे लेकिन अब जब्कि वह बूढ़ा हो गया है और काम नही कर सकता है तो तुमने उसको उसके हाल पर छोड़ दिया है। इस व्यक्ति को देख कर लगता है कि इसने अपनी जवानी के दिनों में लोगों और समाज की सेवा की है इसलिए अब हुकूमत और समाज का यह दायित्व है कि जब तक यह जीवित रहे इसकी आवश्यक्ताओं को पूरा करे। फिर आपने आदेश दिया कि इसको बैतुल माल (हुकूमत के ख़ज़ाने) से हर महीने एक विशेष रक़म दी जाए।

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