हज़रते फ़ातेमा मासूमा का जन्मदिवस

हज़रते फ़ातेमा मासूमा का जन्मदिवस

आज पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटी और हज़रत इमाम रज़ा (अ) की बहन हज़रत फातेमा मासूमा (स) के जन्म दिवस का शुभ अवसर है। इस शुभ अवसर पर हम आप सबको हार्दिक बधाई देते हैं।
हज़रत इमाम रज़ा (अ) की बहन हज़रत फ़ातेमा मासूमा का रौज़ा, जो ईरान के क़ुम शहर में स्थित है, शताब्दियों से देश-विदेश से आने वाले हज़ारों व्यक्तियों के दर्शन एवं श्रृद्धा का केन्द्र बना हुआ है। इस पवित्र रौज़े में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों में से एक महान महिला दफ़न हैं। इस महान महिला का नाम फ़ातेमा है मासूमा की उपाधि से प्रसिद्ध हैं। और आम जीवन में इनको फ़ातेमा मासूमा कहा जाता है। हज़रत फातेमा मासूमा इमाम मूसा काज़िम (अ) की पुत्री और हज़रत इमाम रज़ा (अ) की बहन हैं। इस महान महिला की ईरान में उपस्थिति ईरानियों के लिए दूसरा गर्व था जो उनके भाई हज़रत इमाम रज़ा (अ) के ईरान आने के बाद ईरानियों को प्राप्त हुआ था। हज़रत फ़ातेमा मासूमा (स) ईमान और पवित्रता के आकाश में चमकते तारे की भांति हैं। आज उनके जन्म दिवस का शुभ अवसर है। इस शुभ अवसर पर हम पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों पर सलवात और सलाम भेजते हैं तथा इस शुभ अवसर पर तमाम आलहे बैत के चाहने वालों की सेवा में बधाई पेश करते हैं।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम में महिला या पुरुष होना श्रेष्ठता का मापदंड नहीं है। पवित्र क़ुरआन ने इन्सानों को संबोधित किया है और उसके संबोधनों में महिला एवं पुरुष के मध्य किसी प्रकार का अंतर व विशिष्टता दिखाई नहीं पड़ती है। पवित्र क़ुरआन के अनुसार सबसे प्रतिष्ठित वह व्यक्ति है जो सबसे अधिक सदाचारी और महान ईश्वर से भय रखता हो। सबके सब चाहे वह महिला हो या पुरुष परिपूर्णता के शिखर और ईमान एवं सुकर्म की छत्रछाया में पवित्र जीवन तथा महान पारितोषिक प्राप्त कर सकते हैं। इसी बात के दृष्टिगत जिस तरह पैग़म्बर और इमाम दूसरे व्यक्तियों के लिए सर्वोत्तम आदर्श हैं उसी तरह हज़रत मरियम, हज़रत ख़दीजा, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा, हज़रत ज़ैनब और हज़रत फ़ातेमा मासूमा भी समस्त लोगों विशेषकर महिलाओं के लिए अनुकरणीय आदर्श हैं। इन महान हस्तियों की पावन जीवनी मुक्ति व कल्याण चाहने वाले व्यक्तियों के लिए उपयुक्त व सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा का जन्म १७३ हिजरी क़मरी में पवित्र नगर मदीना में हुआ था। इसके बावजूद कि हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) के पास हज़रत मासूमा के अतिरिक्त दूसरी कई बेटियां थीं किन्तु उन सबके मध्य हज़रत फ़ातेमा मासूमा उच्च विशेषताओं व सदगुणों की स्वामी थीं और उन्हें विशेष स्थान प्राप्त था। हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) की संतानों के मध्य हज़रत इमाम रज़ा (अ) के बाद हज़रत फ़ातेमा मासूमा व्यक्तिगत एवं आध्यात्मिक दृष्टि से सबसे अधिक सदगुणों व विशेषताओं की स्वामी थीं। आपने अपने पिता और अपने बड़े भाई की छत्रछाया में बहुत ही कम समय में शैक्षिक विकास के शिखर मार्ग को तय किया। उनके शैक्षिक स्थान को समझने के लिए उदाहरण स्वरुप इस घटना को बयान किया जाता है। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों के अनुयाइयों का एक गुट काफी दूर के क्षेत्र से पवित्र नगर मदीना पहुंचा ताकि हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) से अपने प्रश्न पूछें। उस समय इस्लामी क्षेत्रों में यह शैली प्रचलित थी कि प्रतिवर्ष नियत समय में कुछ गुट मक्का और मदीना जाते थे ताकि अपने धार्मिक प्रश्नों को तत्कालीन इमाम से पूछें और खुम्स व ज़कात की विशेष धन राशि इमाम की सेवा में अर्पित करने के लिए अपने साथ ले जाते थे। कारवां पवित्र नगर मदीना में प्रवेश करने के बाद इमाम मूसा काज़िम (अ) की घर की ओर रवाना हुआ। इस कारवां के थके मांदे लोग जब इमाम के घर पहुंचे तो उन्हें यह पता चला कि इमाम यात्रा पर गये हैं। कारवां वालों ने जब न तो इमाम को देखा और न ही उन्हें अपने प्रश्नों का उत्तर मिला तो उनकी थकान दो बराबर हो गयी। कारवां पर गहरा सन्नाटा छा गया। कारवां वाले वापस लौटना ही चाह रहे थे कि इसी मध्य पूर्ण हिजाब के साथ इमाम के घर से एक लड़की निकली जिससे कारवां पर छाया मौन टूट गया। उस लड़की ने कारवां वालों से कहा कि वे अपने प्रश्नों को उसे दें। वह लड़की हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के अतिरिक्त कोई और नहीं थी। आपने कारवां के प्रश्नों को लिया और पूरी सूक्ष्मता से उनमें से हर एक पत्र का उत्तर लिखकर दोबारा कारवां वालों को दे दिया। कारवां वालों के लिए यह आश्चर्य चकित करने वाली बात थी कि कम आयु होने के बावजूद लड़की ने उनके प्रश्नों के उत्तर दे दिये। जब कारवां वापस जा रहा था तो वापसी में उसने इमाम मूसा काज़िम (अ) को मार्ग में देखा जो यात्रा से लौट रहे थे। बड़ी खुशी के साथ कारवां वाले इमाम के पास गये और उन लोगों ने पूरी घटना इमाम को बतायी तथा इमाम मूसा काज़िम (अ) की सुपुत्री के हस्ताक्षर को उन्हें दिखाया। इमाम मूसा काज़िम (अ) ने जैसे ही पत्र खोला उनका तेजस्वी चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्होंने अपना चेहरा कारवां वालों की ओर किया और मुस्कान के साथ तीन बार कहा" उसके पिता उस पर न्यौछावर हों" इमाम मूसा काज़िम (अ) का यह वाक्य हज़रत फातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा द्वारा दिये गये उत्तरों की पुष्टि का सूचक है।
हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा ऐसे माता- पिता की छत्रछाया में बड़ी हुईं जो समस्त सदगुणों से सुसज्जित थे। उपासना, त्याग, सदाचारिता, ईश्वर से भय, क्षमा शीलता और समस्याओं एवं कठिनाइयों के मुकाबले में धैर्य इस परिवार की स्पष्ट विशेषतायें थीं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा भी इन सदगुणों से सुसज्जित थीं और इस्लामी शिक्षाओं व ज्ञानों को प्राप्त करने में बहुत प्रयास किये। उन्होंने अपने महान पिता से जो कुछ भी सीखा था उसे किसी प्रकार के परिवर्तन के बिना लोगों को सिखा दिया। कभी हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके उत्तराधिकारियों के कथनों को बयान करके लोगों को जागरुक बनाती थीं। दूसरे शब्दों में यह महान महिला मोहद्दिसा अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों को बयान करने वाली थीं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने अपने महान पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) से सीखा था कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सत्य व वास्तविकता की रक्षा करना चाहिये और इस मार्ग में कभी भी विचलित नहीं होना चाहिये। उन्होंने अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा (अ) का साथ देकर इन शिक्षाओं को व्यवहारिक रूप प्रदान किया। हज़रत मासूमा अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा (अ) से बहुत अधिक प्रेम करती थीं। वर्ष २०१ हिजरी क़मरी में जब हज़रत इमाम रज़ा (अ) को विवश होकर पवित्र नगर मदीना को छोड़कर ईरान के ख़ुरासान क्षेत्र आना पड़ा तो अपने भाई की दूरी सहन करना आपके लिए बहुत कठिन हो गया था। अतः आपने भी पवित्र नगर मदीना छोड़कर ख़ुरासान आने का निर्णय किया। चूंकि हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा इस्लामी संस्कृति, पैग़म्बरे इस्लाम, उनके पवित्र परिजनों और अपने महान पिता की शिक्षाओं को बयान करने तथा समय के अत्याचारी के विरुद्ध संघर्ष करने में अपने पिता के मार्ग को जारी रखने वाली थीं इसलिए अवसर का लाभ उठा कर उन्होंने इस यात्रा में भी लोगों का मार्ग दर्शन किया। आपने अपने भाषणों में लोगों को अत्याचारी अब्बासी शासकों के वास्तविक चेहरों से परिचित करा दिया और उनकी पाखंडी नीतियों की वास्तविकता लोगों के समक्ष खोल दी। पवित्र नगर मदीना नगर से मर्व की आपकी यात्रा अब्बासी शासकों के विरुद्ध संघर्ष का एक भाग थी परंतु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि यह यात्रा उनके भाई से उनकी भेंट का कारण न बन सकी। अब्बासी शासकों के कारिन्दों ने सावा नगर के मार्ग में उनके कारवां पर आक्रमण कर दिया और उनके कारवां के साथ चलने वाले कुछ व्यक्तियों को शहीद कर दिया। हज़रत मासूमा इस यात्रा में बीमार पड़ गयीं और जब वे इस बात को समझीं कि वे मर्व नगर के मार्ग को जारी नहीं रख सकतीं तो उन्होंने अपने निकटवर्ती लोगों से कहा कि मुझे क़ुम नगर ले चलें क्योंकि मैंने अपने पिता से सुना है कि यह नगर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के परिजनों के प्रेमियों का केन्द्र है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि इस्लामी इतिहास उन पुरुषों और महिलाओं के परित्याग का ऋणी है जिन्होंने इस्लामी संस्कृति और शिक्षा के प्रचार- प्रसार में बहुत अधिक कठिनाइयां सहन की हैं। हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा का क़ुम नगर में १७ दिन रहने के बाद स्वर्गवास हो गया। इस प्रकार यह महान महिला सदा के लिए क़ुम नगर में रह गयीं और अपने भाई हज़रत इमाम रज़ा (अ) को न देख सकीं। हज़रत फ़ातेमा की पवित्र आत्मा कारण उनके भाई हज़रत इमाम रज़ा (अ) ने उन्हें "मासूमा" अर्थात पाप न करने वाली की उपाधि दी और एक अन्य स्थान पर आपने कहा है कि जो क़ुम में मासूमा का दर्शन करेगा वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने हमारा दर्शन किया है।
हज़रत मासूमा के क़ुम आने से पूर्व यह नगर विकसित नहीं था और शासकों की उपेक्षा के कारण वहां के लोगों को यातनायें दी जाती थीं। इस नगर में हज़रत मासूमा का पावन अस्तित्व विभिन्न क्षेत्रों से पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम रखने वालों के आने का कारण बना और यह बात समय बीतने के साथ साथ पूंजी के आकर्षित होने तथा इस नगर के विकास का कारण बनी। वर्तमान समय में सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से क़ुम नगर को विशेष महत्व प्राप्त है और यह नगर यथावत विकास की ओर अग्रसर है। सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक परिवर्तनों में हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के पवित्र अस्तित्व के सुपरिणाम, एक नगर तक सीमित नहीं रहे बल्कि उन्हें पूटे ईरान में भी देखा जा सकता है। क़ुम नगर में हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के पावन रौज़े ने देश- विदेश से लाखों तीर्थ यात्रियों व पर्यटकों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। वर्ष १८४१ से ४५ के बीच ईरान की यात्रा पर आने वाले फ्रांसीसी बुद्धिजीवी एवं पर्यटक यूजीन फ़्लैन्डेन लिखते हैं"फ़ातेमा का रोज़ा, जिन्हें ईरानी मामूसा कहते हैं, समूचे पूरब में विशेष सम्मान व महत्व का स्वामी है और चारों ओर से लोग उनके दर्शन के लिए आते हैं"
क़ुम में हज़रत मासूमा सलामुल्लाह का पावन रौज़ा इस नगर में विभिन्न धार्मिक शिक्षा केन्द्रों के बनने और वहां से महान विद्वानों के अस्तित्व में आने का कारण बनी है। अपनी प्राचीनता के साथ क़ुम नगर का इस्लाम का परिचय कराने और महान धर्म गुरूओं एवं विद्वानों के प्रशिक्षण में विशेष स्थान प्राप्त है। वर्तमान समय में समूचे विश्व से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने एवं श्रृद्धा रखने वाले क़ुम में आपके पवित्र रौज़े के समीप स्थित शिक्षा केन्द्रों में इस्लामी ज्ञानों एवं शिष्टाचार को अर्जित करने में व्यस्त हैं। (ईरान हिन्दी रेडियों के धन्यवाद के साथ)

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