इमाम सादिक़ (अ) का व्यक्तित्व
इमाम सादिक़ (अ) का व्यक्तित्व
भाग 1
आज कल इमाम सादिक़ (अ) की शहादत के दिन चल रहे हैं जिसके अवसर पर हम तमाम शियों बल्कि तमाम अहलेबैत के चाहने वालों बल्कि हर वह इन्सान जो इल्म, सच्चाई और वास्तविक्ता को दोस्त रखता है को खेद प्रकट करते हैं।
आज कल अगर हम चैनल्स और इन्टर नेट पर देखे तो कुछ लोग ऐसे हैं जो इमाम सादिक (अ) जैसे व्यक्ति के बारे में यह कहते हुए दिखाई देते है कि क्या वास्तव में इमाम सादिक (अ) आलिम, विद्रवान और जानकारी रखने वाले थे? क्या वह वास्तव में कुछ जानते थे?
यह उस इमाम सादिक (अ) के बारे में कहा जा रहा है कि जिसके इल्म जिसके ज्ञान का ढंका पूरी दुनिया में बज रहा है अपने तो अपने दूसरों ने भी उनके इल्म को स्वीकार किया है। लेकिन कुछ लोग फिर भी आपत्ति करते हैं उनकी यह आपत्ति या तो इस लिए है कि स्वंय उसको किसी चीज़ का ज्ञान नही है, वह स्वंय इतिहास को नही जानते हैं, यह फिर यह लोग ग़लत सोच रखने वाले और प्रोपगंडा करने वाले हैं। इन्होंने अपनी आँखें बंद कर रखी है इनको वास्तविक्ता दिखाई नही देती है।
यह उस इमाम सादिक (अ) के बारे में बातें कर रहे हैं जिसके ईश्वरीय ज्ञान को "मिस्बाहुश शरीआ" जैसी पुस्तक बयान कर रहा ही यह ऐसी किताब है कि अगर कोई चाहता है कि ईश्वर का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करे, ईश्वार के बारे में जानकारी प्राप्त करे तो उसको आकर इस किताब को पढ़ना चाहिए, इसी प्रकार आपकी पुस्तक "उनवाने बसरी" ईश्वर के बारे में ऐसी ऐसी उच्चकोटी की बाते बताती है कि बड़े से बड़ा ज्ञानी भी दातों में उँगली दबा लेता है।
आज अगर दुनिया में कोई ऐसी सोच हैं जो नास्तिकों, अपने को नेचर की पैदावार कहने वालों, अत्याचारियों, ज़ालिमों को समक्ष खड़ी है तो वह शियों की सोच और शिया सम्प्रदाय ही है। और तमाम अहलेबैत विशेषकर इमाम सादिक इस सम्प्रदाय के प्रमुख और मुखिया हैं।
अगर आज शिया सम्प्रदाय हर प्रकार की समाजिक आर्थिक, सांसकृतिक आदि समस्याओं का जवाब रखती है तो कारण है इमाम सादिक़ के पवित्र वुजूद का जिससे शियों ने अपने आप को सेराब किया है।
कितने अफ़सोस की बात है कि आज हमको अहलेबैत की महानता और उनके गुणों एवं विशेषताओं के बारे में उन लोगों से बहस करना पड़ती है जिनको कुछ ज्ञान नही है। वह अहलेबैत जिन के बारे में स्वंय पवित्र क़ुरआन ने कहा हैः قُلْ کَفَی بِاللّهِ شَهِیدًا بَیْنِی وَبَیْنَکُمْ وَمَنْ عِندَهُ عِلْمُ الْکِتَابِ. यह अहले बैत तो वह है जो क़ुरआन के अनुसार इनके पास किताब अर्थात क़ुरआन का ज्ञान है और जिसके पास क़ुरआन का ज्ञान हो उसके पास पूरी दुनिया का ज्ञान होता है।
मिसाल के तौर पर डॉक्टरी का इल्म जो आज की दुनिया में बहुत महत्व रखता है जो आज सैकड़ों लोगों की जाने बचा रहा है जिसको आज का ज्ञान कहा जा रहा है क्या कोई सोंच सकता है कि कोई इन्सान आज से चौदह सौ साल पहले आया होगा और उसने डॉक्टरी के ज्ञान की ऐसी ऐसी बारीकिया उसके ऐसे ऐसे मसअले आसान से आसान शब्दों में आम जनता के लिए इस प्रकार बयान कर दिए होंगे कि सबको समझ में आ जाए, ऐसा ज्ञान कि जिसको बड़े बड़े डॉक्टर देखे तो हैरान रह जाएँ । क्या आज तक किसी डॉक्टर ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया है कि जैसे नाक के छेद नीचे क्यों होते हैं? आँखें अन्दर की तरफ़ क्यों होती है? आँखों पर पलकें क्यों होती है? आदि लेकिन यह इमाम सादिक (अ) हैं जो आज से चौदह सौ साल पहले इनके इस प्रकार होने के कारण को बयान कर रहे हैं।
इमाम सादिक़ (अ) के ज्ञान को आज कौन है जो चैलेन्ज कर सकता है आप ने हज़ारों विद्यार्थी इस दुनिया को दिये आपके इन शागिर्दों ने डॉक्टरी, आस्थिक मसअलों क़ुरआन की व्याख्या आदि में पूरी दुनिया को अपने क़दम चूमने पर मजबूर कर दिया।
इमाम सादिक़ (अ) के एक शागिर्द "जाबिर बिन हय्यान" केवल एक बानगी भर हैं जिनको रसायन शास्त्र का पिता कहा जाता है, योरोप में रोनेसान्स के काल में आपके गणित और रसायन शास्त्र पर लिखे 300 लेखें का जर्मन भाषा में अनुवाद किया गया और आज कर लोग उसके लाभ उठा रहे हैं।
यह इमाम सादिक़ (अ) कौन हैं यह वह इमाम है जिससे बड़े बड़े आलिमों ने ज्ञान प्राप्त किया। सुन्नियों के इमाम "अबू हनीफ़ा" और "मालिक बिने अनस" इमाम सादिक़ से शागिर्द थे।
इस इमाम की सियासत का यह आलम था की हुकूमत की तरफ़ से हर प्रकार की पाबंदी के बावजूद ज्ञान का प्रसार करते रहे और लोगों को ज्ञान की किरण दिखाते रहे ।
आपने क्या नही किया आपने कितने भर्ष्ट विचारों से मुक़ाबला किया जिनमें से एक नास्तिक हैं। आज लोग यह समझते हैं कि यह जो "दारविन" की सोच और उसका विचार है कि "हम एक बंदर की औलाद है" यह नया है यह जो "big bang थ्योरी" है वह नई है, नही इन सबका जवाब इमाम सादिक़ ने अपने ज़माने में ही दे दिया था। बस आवश्यक्ता है तो केवल अध्धयन की।
आपने कितनी बड़ी बड़ी इल्मी आपत्तियों और ज्ञानिक इश्कालों का उत्तर दिया है कि अगर इनका उत्तर ना दिया जाता तो दुनिया कहाँ पहुँच जाती, आप ईसाईयत को ही देख लीजीए अगर उनके लिए यह मसअला हल हो गया होता कि ईसा ख़ुदा या ख़ुदा के बेटे नही बल्कि उसके नबी है तो पश्चिम में जो यह 16वी शताब्दी तक मध्य युग था वह नही होता जब लोगों को ज्ञान के प्रचार और प्रसार पर सज़ाएं दी जाती थी।
यह ईसा के ख़ुदा यह ख़ुदा के बेटे होना का मसअला ईसाईयत में ऐसा है जिसका उत्तर वह अब भी नही दे पा रहे हैं। वह कहते हैं कि ईसा ख़ुदा हैं क्यों कि वह बिना बाप के पैदा हुए हैं।
अहले बैत इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि अगर बिना पिता के बैदा होना ख़ुदा या ईश्वर हो जाने का कारण है तो आदम को तो ईश्वर का भी बाप होना चाहिए क्योंकि वह तो माता पिता दोनों के बिना पैदा हुए हैं।
लेकिन ईसाई इस बात को ना समझ सके और देखे कहाँ से कहाँ पहुँच गए
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