नमाज़ के साथ मानवता भी आवश्यक है
नमाज़ के साथ मानवता भी आवश्यक है
पवित्र क़ुरआन के सूरा बक़रा की 83वीं आयत में ख़ुदा सारे इन्सानों के मानवता का आदेश दे रहा है क़ुरआन में ख़ुदा फ़रमाता हैःوَقُولُواْ لِلنَّاسِ حُسْناً
“नमाज़ी को चाहिए लोगों के साथ अच्छे अन्दाज़ से गुफ़्तुगु करे।”हम अच्छी ज़बान के ज़रिये अमलन नमाज़ की तबलीग़ कर सकते हैं। लिहाज़ा जो लोग पैगम्बरे इस्लाम स. के अखलाक़ और सीरत के ज़रिये मुसलमान हुए हैं उनकी तादाद उन लोगों से कि जो अक़ली इस्तिदलाल(तर्क वितर्क) के ज़रिये मुसलमान हुए हैं कहीं ज़्यादा है। कुफ़्फ़ार के साथ मुनाज़रा व मुबाहिसा करते वक़्त भी उनके साथ अच्छी ज़बान मे बात चीत करने का हुक्म है। मतलब यह है कि पहले उनकी अच्छाईयों को क़बूल करे और फ़िर अपने नज़रीयात को ब्यान करे।
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