इमामे ज़माना (अ) की सहायता करने वाली आठ औरतें।
इमामे ज़माना (अ) की सहायता करने वाली आठ औरतें।
इमामे ज़माना (अ) की सहायता करने वाली औरतों का एक समूह उन औरतों पर आधारित हैं जिन्हें हज़रत हुज्जत (अ) के ज़ुहूर की बरकत से दोबारा जीवित किया जाएगा।
इमामे ज़माना के ज़ुहूर और फिर हुकूमत के दौरान बहुत सी औरतें आपकी सहायता करेंगी, हालांकि रिवायतों में इमामे ज़माना की सेवा करने वाली चार तरह की औरतों की चर्चा मिलती है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:
ख़ुदा की क़सम तीन सौ तेरह लोग आएंगे जिनमें पचास औरतें होंगी जो पहले तय की गई किसी योजना के बिना मक्के में इकठ्ठा हो जाएंगी।
इसी तरह आसमानी औरतों का भी उल्लेख हुआ है। रसूलुल्लाह (स) फ़रमाते हैं:
ईसा इब्ने मरयम ज़मीन के सबसे अच्छे आठ सौ मर्दों और चार सौ स्त्रीयों के साथ आसमान से उतरेंगे।
इसी तरह इमामे ज़माना (अ) की सहायता करने वाली स्त्रियों का एक समूह उन औरतों पर आधारित होगा जिन्हें अल्लाह हज़रत हुज्जत के ज़ुहूर के समय दोबारा जीवित करेगा और वह इस दुनिया में पलट कर आएंगी। रिवायतों के अनुसार इन औरतों की संख्या तेरह होगी और वह जंग में घायल होने वालों की मरहम पट्टी और बीमारों की तीमारदारी व देखभाल करेंगी।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं:
क़ाएम (अ) के साथ तेरह औरतें होंगी जो घायलों की मरहम पट्टी और बीमारों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाएंगी।
आप उन महिलाओं का नाम बयान करते हुए कहते हैं:
रशीद हिजरी की बेटी क़नवाअ, उम्म ऐमन, हुबाबह वालबिया, सुमय्या (हज़रत अम्मारे यासिर की मां), ज़ुबैदा, उम्मे ख़ालिद अहमसीया, उम्मे सईद हनफ़िया, सियाना माश्ता, उम्मे ख़ालिद जहनिया।
बहरहाल इमामे ज़माना के प्रतीक्षकों का एक समूह उन औरतों पर आधारित है जो पहले ही इस दुनिया से गुज़र चुकी हैं। उनसे कहा जाएगा कि तुम्हारे इमाम का ज़हूर हो गया है अगर चाहो तो उनकी सेवा में जा हो सकती है। उसके बाद वह अल्लाह के इरादे से जीवित हो जाएंगी।
यहाँ हम मोहम्मद जवाद मुरव्वेजी तबसी की लिखी किताब ज़िनान दर हुकूमते इमाम ज़मान (अ) (इमामे ज़माना की हुकूम में औरतें) के हवाले से उक्त औरतों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं:
1. सियाना माश्ता
इमामे ज़माना की हुकूमत में जीवित होकर फिर दुनिया में आने वाली तेरह औरतों में से एक सियाना माश्ता हैं. आप फिरौन के चचेरे भाई हिज़कील की वीबी थीं और फिरऔन की लड़की का श्रंगार किया करती थी। यह आपका पेशा था। आप भी अपने पति की तरह अपने समय के पैग़म्बर हज़रत मूसा पर ईमान ले आई थीं लेकिन अपना ईमान छिपाए हुई थीं।
रिवायत है कि एक बार आप फिरऔन की लड़की के कंघी कर रही थी कि आपके हाथ से कंघी गिर गई और आपकी ज़बान पर अल्लाह का नाम आ गया। फिरऔन की लड़की ने कहा'' क्या तुमने मेरे बाप को याद क्या है?'' आपने जवाब दिया'' नहीं मैंने उस अल्लाह का नाम लिया है जिसने तुम्हारे बाप को पैदा किया है।'' लड़की ने पूरी बात अपने बाप से बताई तो फिरौन ने सियाना को बुलाया किया और उससे पूछा कि ' 'क्या तुम मुझे ख़ुदा नहीं मानती हो?
सियाना ने कहा'' बिल्कुल नहीं! मैं सच्चे ख़ुदा को छोड़कर तुम्हारी आराधना नहीं कर सकती।'' फिरऔन ने हुक्म दिया कि तनूर जलाकर उस औरत के सभी बच्चों को उसके सामने जला दिया जाए। जब दूध पीते बच्चे को जलाने की बारी आई तो सियाना ने केवल दिखाने के लिए दीन से दूरी इख्तियार करना चाही लेकिन दूध पीते बच्चे ने अल्लाह की आज्ञा से अपनी माँ से कहा कि'' माँ सब्र करो, तुम हक़ पर हो।'' फ़िरऔनियों ने उस औरत और उसके दूध पीते बच्चे को आग में डालकर जला डाला और अब अल्लाह तआला दीन की राह में उस औरत के सब्र व धैर्य के आधार पर उसे इमाम महदी की हुकूमत के ज़माने में दोबारा जीवित करेगा ताकि अपने इमाम की सेवा के साथ फ़िरऔनियों से बदला भी ले सके।
2. हज़रत अम्मार यासिर की माँ सुमय्या।
आप इस्लाम लाने वाली सातवीं मुसलमान थीं। आपके इस्लाम लाने पर दुश्मन बहुत क्रोधित हुए और आप को कड़ी से कड़ी सजाएं देने लगे। आप और आपके पति यासिर को अबूजहेल ने बंदी बना लिया। उसने पहले उन्हें रसूलुल्लाह (स) को गाली देने और अपशब्द कहने के लिए कहा लेकिन वह लोग इस काम के लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद उसने उन दोनों को लोहे का कवच पहना कर जलती आग में डाल दिया। रसूलुल्लाह (स) जब उनके पास से गुज़रते तो उन्हें सब्र व संयम की हिदायत करते और कहते:
ऐ यासिर के घर वालों! सब्र करो, तुम्हें जन्नत मिलेगी।
आखिरकार अबू जहेल ने उन्हें तलवार से शहीद कर दिया।
3. कअब माज़निया की बेटी नसीबा
आप उम्मे अम्मारा के नाम से प्रसिद्ध हैं और इस्लाम की जांबाज़ औरत हैं। आपने रसूलुल्लाह (स) के साथ कई जंगों में भाग लिया और घायलों की मरहम पट्टी करती रहीं। ओहद की जंग में जब मुसलमान पैग़म्बर (स) को छोड़ कर भाग गए तो अपने आक़ा की रक्षा करने लगीं. इस दौरान आप को कई घाव लगे।
रसूलुल्लाह (स) ने आपकी इस वीरता की सराहना करते हुए आपके बेटे अम्मारा से कहा:
आज तुम्हारी माँ का स्थान जंग के मैदान में लड़ने वाले पुरुषों से ऊंचा है।
4. उम्मे ऐमन
आप एक उच्च आचरण वाली औरत थीं, रसूलुल्लाह (स) की सेवा करती थीं. आप (स) आपको माँ कह कर सम्बोधित करते और कहते थे:
इनका सम्बंध मेरे परिवार से है।
5. उम्मे ख़ालिद
इतिहास में इस नाम की दो औरतों का उल्लेख हुआ है, उम्मे ख़ालिद अहमसीया और उम्मे ख़ालिद जहनिया. शायद मुराद उम्मे ख़ालिद मक़तूअतुल यद (कटे हाथ वाली) हों जिनका हाथ यूसुफ बिन उमर ने जनाबे ज़ैद इब्ने अली के शहीद होने के बाद शिया होने के जुर्म में कूफ़े में काट दिया था, रिजाले कश्शी में इस बलिदान देने वाली महिला से सम्बंधित इमाम जाफ़र सादिक (अ) की एक रिवायत बयान हुई है जिसका बयान उचित होगा:
अबू बसीर कहते हैं कि इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के सामने बैठा हुआ था कि उम्मे मक़तूअतुल यद आ गईं, आपने कहा 'ऐ अबू बसीर! क्या उम्मे ख़ालिद की गुफ़्तुगू सुनना चाहोगे? मैंने कहा'' जी! उनकी बात सुन कर मुझे खुश होगी ...''. तभी उम्मे ख़ालिद इमाम की सेवा में उपस्थित हुई और बातचीत करने लगी। मैंने देखा कि उनकी बातचीत में बहुत अधिक वक्तृत्व व फ़साहत व बलाग़त है, इसके बाद इमाम ने उनसे विलायत और दुश्मनों से दूरी और बराअत से सम्बंधित गुफ़्तुगू की।
6. ज़ुबैदा
इस महान महिला की पूरी ज़िंदगी बयान नहीं हुई है। शायद हारून रशीद की बीवी ज़ुबैदा होँ जिनके बारे में शेख़ सदूक़ ने लिखा है:
वह अहलेबैत से मोहब्बत करने वाली और उनकी अनुयायी थीं, जब हारून को उनके शिया होने का पता चला था तो उसने उन्हें तलाक देने की कसम खाई थी।
ज़ुबैदा ने बहुत से महत्वपूर्ण काम किये जैसे अराफात में पानी का प्रबंध आदि।
7. हुबाबा वालबिया।
यह वह महान महिला हैं जो आठ इमामों की इमामत में जीवित रहीं, सभी इमाम हमेशा आप पर ख़ास ध्यान रखते थे, एक या दो बार इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) और इमाम अली रेज़ा (अ) द्वारा आपकी जवानी पलटाई गई। सबसे पहले आपकी मुलाकात अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) से हुई तो आपने उनसे कहा कि इमामत की कोई पहचान बता दें। हज़रत अली ने एक पत्थर उठाकर उस पर अपनी मुहर लगा दी और मुहर ने पत्थर पर अपना निशान बना दिया. इसके बाद आपने कहा ' 'मेरे बाद जो कोई इस पत्थर पर इस तरह का निशान लगा सके वह इमाम होगा''। इस लिये हुबाबा हर इमाम की शहादत के बाद उनके उत्तराधिकारी के पास वही पत्थर लेकर चली जातीं और उनसे उस पत्थर पर मुहर लगवातीं। जब इमाम रेज़ा के पास आईं तो आप ने भी ऐसा ही किया। आप इमाम रेज़ा की शहादत के बाद नौ महीने ज़िंदा रहीं।
8. क़नवाअ
हज़रत अली (अ) के सच्चे सहाबी रशीद हिजरी की बेटी और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के वफ़ादार सहाबियों में से थीं। आप उस महान व्यक्ति की बेटी हैं जिसे अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) से मोहब्बत के जुर्म में बहुत बेदर्दी से शहीद कर दिया गया।
नई टिप्पणी जोड़ें