इन्सानी जीवन पर क़ुरआन का प्रभाव
इन्सानी जीवन पर क़ुरआन का प्रभाव
क़ुरआन मानन के जीवन के विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है।
जैसे क़राअत, हिफ़्ज़, फ़ह्म और अमल के द्वारा यह प्रभाव इंसान के व्यक्तिगत और समाजिक दोनो शैलियों पर पड़ता है।यहाँ पर हम इन प्रभावों का संक्षेप में उल्लेख कर रहे हैं।
इंसान के व्यक्तिगत जीवन पर कराअत (क़ुरआन पढ़ने) के प्रभाव
1- अल्लाह की याद और उसका स्मरण
क़रआन पढ़ने वाला अल्लाह की याद से पढ़ना शुरू करता है अर्थात कहता है कि बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम और यही कहना उसको अल्लाह की तरफ़ आकर्षित करता है। यूँ तो क़ुरआन पढ़ने वाला कभी भी अल्लाह की ओर से अचेत नही रहता । और यह बात उसकी आत्मा के विकास में सहायक बनती है।
2- हक़ का द्वार खुल जाना
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा हैं कि बिस्मिल्लाह पढ़ कर हक़ के द्वारों को खोलो । बस क़ुरआन पढ़ने के लाभों और प्रभावों में से एक यह भी है कि जब क़ुरआन पढ़ने वाला क़ुरआन पढ़ने के लिए बिस्मिल्लाह कहता है तो उसके लिए हक़ के द्वार खुल जाते हैं।
3- गुनाह के द्वार का बन्द होना
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि आउज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर्रजीम पढ़कर गुनाहों के दरवाज़ों को बंद करो। इस तरह जब इंसान क़ुरआन पढ़ने से पहले आउज़ुबिल्लाह पढ़ता है तो इससे गुनाहों के दरवाज़े बन्द हो जाते हैं।
4- क़ुरआन पढ़ने से पहले और बाद में दुआ
क़ुरआन पढ़ने के नियमों में से एक यह है कि क़ुरआन पढ़ने से पहले और बाद में दुआ करनी चाहिए। दुआ के द्वारा इंसान अल्लाह से वार्तालाप करता है। और उससे अपनी आवश्यक्ता की पूर्ती हेतू दुआ माँगता है। और इसका परिणाम यह होता है कि अल्लाह उसकी बात को सुनता है और उसकी आवश्यक्ताओं की पूर्ती करता है। और यह बात इंसान के भौतिक व आध्यात्मिक विकास मे सहायक बनती है।
5- क़ुरआन पढ़ने वाले का इनाम
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन का वर्णन करते हैं कि जो इंसान क़ुरआन को खोल कर इसकी तिलावत करे और इसको खत्म करे तो अल्लाह की बारगाह में इसकी एक दुआ क़बूल होती है। जी हाँ दुआ का क़बूल होना ही क़ुरआन पढ़ने वाले का इनआम है।
6- क़ुरआन ईमान की दृढता और उसकी मज़बूती का कारण बनता है
क़ुरआने करीम के सूरए तौबा की आयत न. 124 में वर्णन हुआ है कि जब कोई सूरह नाज़िल होता है तो इन में से कुछ लोग यह व्यंग करते हैं कि तुम में से किस के ईमान में वृद्धि हुई है। तो याद रखो कि जो ईमान लाने वाले हैं उनही के ईमान में वृद्धि होती है और वही खुश भी होते हैं।
सूरए इनफ़ाल की दूसरी आयत में वर्णन होता है कि अगर उनके सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत की जाये तो उनके ईमान में वृद्धि हो जाये।
7- क़ुरआने करीम शिफ़ा प्रदान करता है
क़रआने करीम परोक्ष रोगो के लिए दवा है। इंसान के आत्मीय रोगों का उपचार क़ुरआन के द्वारा ही होता है।जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए फ़ुस्सेलत की आयत न. 44 के अन्तर्गत वर्णन हुआ है कि ऐ रसूल कह दीजिये कि यह किताब ईमान वालों के लिए शिफ़ा और हिदायत है। इससे यह अर्थ निकलता है कि क़ुरआन पढ़ने वाले को सबसे पहले क़ुरआन की शिफ़ा प्राप्त होती है।
8- अल्लाह की रहमत का मिलना
क़ुरआन पढ़ने वाले पर अल्लाह की रहमत की बारिश होती है।
9- अल्लाह की तरफ़ से मार्ग दर्शन
क़ुरआने करीम हिदायत की किताब है। अल्लाह की तरफ़ से उन्ही लोगों को हिदायत प्राप्त होती है जो मुत्तक़ी हैं और क़ुरआन की ज़्यादा तिलावत करते हैं।
10- आन्तरिक पवित्रता
इंसान क़ुरआन पढ़ते समय उसके नियमों का पालन करता है। यह कार्य उसकी आत्मा के उत्थान और पवित्रता मे सहायक बनता है। जब क़ुरआन पढ़ने वाला क़ुरान पढ़ने से पहले वज़ू या ग़ुस्ल करता है तो इस कार्य से उसके अन्दर एक विशेष प्रकार का तेज पैदा होता है। जो इसकी आन्तरिक पवित्रता मे सहायक बनता है।
11- स्वास्थ
इंसान क़ुरआन पढ़ने से पहले बहुत सी तैय्यारियाँ करता है जैसे मिस्वाक करना,वज़ू या ग़ुस्ल करना पाक साफ़ कपड़े पहनना आदि। और यह सब कार्य वह हैं जिनसे इंसान की सेहत की रक्षा होती है।
12- क़ुरआन का साथी होना
क़ुरआने करीम को पढ़ने और इससे लगाव होने की वजह से इंसान पर इसके बहुत से प्रभाव पड़ते है। जिसके फल स्वरूप वह क़ुरआन का अनुसरण करने वाला व्यक्ति बन जाता है। अर्थात उसके अन्दर क़ुरआनी अखलाक़, आस्था और पवित्रता पैदा हो जाती है।दूसरे शब्दों मे कहा जा सकता है कि वह क़ुरआन के रंग रूप में ढल जाता है।
13- विचारिक शक्ति का विकास
जब इंसान क़ुरआन पढ़ता है और उसके भाव में चिंतन करता है तो इस चिंतन फल स्वरूप उसकी विचार शक्ति की क्षमता बढती है। जिसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है। विशेष रूप से उसके ज्ञान के क्षेत्र को प्रभावित करता है।
14- आखोँ की इबादत
हज़रत रसूले अकरम स. ने फ़रमाया कि क़ुरआन के शब्दों की तरफ़ देखना भी इबादत है।यह इबादत केवल उन लोगो के भाग्य मे आती है जो क़ुरआन को पढ़ते हैं।
15-संतान का प्रशिक्षण
जब माता पिता हर रोज़ पाबन्दी के साथ घर पर क़ुरआन पढ़ेंते हैं तो उनकी संतान पर इसके बहुत अच्छे प्रभाव पड़ते हैं। इस प्रकार इस कार्य से अप्रत्यक्ष रूप से उनका प्रशिक्षण होता है। जिसके फल स्वरूप वह धीरे धीरे क़ुरआन के भाव से परिचित हो जाते हैं।
16- गुनाहों का कफ़्फ़ारा और उसका पश्चाताप
हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन पढ़ा करो क्यों कि यह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है।
17- नर्क की ढाल और उससे बचाने वाला
हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन का पढ़ना दोज़ख (नरक) के लिए ढाल है और इसके द्वारा इंसान अल्लाह के अज़ाब से सुरक्षित रहता है। जी हाँ अगर कोई इंसान क़ुरआन को पढ़े और उसकी शिक्षाओं पर क्रियान्वित हो तो उसका रास्ता नरकीय लोगों से अलग हो जाता है।
18- अल्लाह से वार्तालाप
हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि अगर तुम में से कोई व्यक्ति यह इच्छा रखता हो कि अल्लाह से बाते करे तो उसे चाहिए कि वह क़ुरआन को पढ़े।
19- क़ुरआन पढ़ने से दिल ज़िन्दा होते हैं
हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन दिलो को ज़िन्दा करता है और बुरे कार्यों से रोकता है।
20- क़ुरआन पढ़ने से दिलों का ज़ंग भी साफ़ हो जाता है।
हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि इन दिलों पर इस तरह ज़ंग लग गया है जिस तरह लोहे पर लग जाता है। प्रश्न किया गया कि फिर यह कैसे चमकेगें ? रसूल अकरम स. ने उत्तर दिया कि क़ुरआन पढ़ने से।
21- क़ुरआन पढ़ने से इंसान बुरईयों से दूर रहता है।
अगर इंसान क़ुरआन पढ़कर क़ुरआन के आदेशों का पलन करे तो वह वास्तव में बुराईयों से दूर हो जायेगा।
नोट--- यह लेख डा. मुहम्मह अली रिज़ाई की किताब उन्स बा क़ुरआन से लिया गया है। परन्तु अनुवाद की सुविधा के लिए कुछ स्थानों पर कमी ज़्यादती की गई है। ( हिन्दी अनुवादक)
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