अब्दुल मुत्तलिब का परिचय
अब्दुल मुत्तलिब का परिचय
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब हज़रत मोहम्मद (स0) के दादा थे उनका असली नाम शैबा पुत्र हाशिम है इनको अब्दुल मुत्तलिब इसलिए कहा जाता है कि इनका पालन पोषण इनके चाचा मुत्तलिब ने किया था। क्योंकि इनके जन्म के कुछ माह पूर्व ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ईश्वरीय दूत इब्राहीम के आदर्शो का पालन करते थे और इतिहास से ऐसा कोई संकेत नही मिलता कि इन्होने किसी मूर्ति (बुत) के सामने मस्तक टेका हो अथवा उसकी श्रद्धा मे झुके हो।
प्रारम्भिक जीवन काल:
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब का जन्म 497 ई0 मे हुआ। उनके पिता का नाम हाशिम पुत्र अब्दे मुनाफ तथा माता का नाम सलमा पुत्री अम्र था उनकी माता श्री यसरब (जिसके उपरान्त उसका नाम मदीना हो गया)की वासी थीं।उनके जन्म से कुछ माह पूर्व ही फ़लस्तीन के ग़ज़ा नामक प्रान्त में उनके पिता का देहान्त हो गया जहाँ वह व्यवसाय (आयात व निर्यात)के लिये गये थे। पिता के स्वर्गवास के उपरान्त उनकी माता उन्हे ननिहाल यसरब (मदीना) लेकर चली गई जहां वह 8 वर्ष की आयू तक रहे । जब वह आठ वर्ष के हुए तो उनके चाचा मुत्तलिब उनको वापस मक्का ले आए।
मदीना से मक्का वापसीः
हाशिम पुत्र अब्दे मुनाफ़ की मृतयु के पश्चात काबा के तीर्थयात्रियों को खाना पानी देने की ज़िम्मेदारी उनके भाई मुत्तलिब पुत्र अब्दे मुनाफ़ को दी गयी।जैसा कि चर्चा किया गया कि पिता के देहान्त के बाद उनकी माता हज़रत अब्दुल मुत्तलिब को ननिहाल लेकर चली गयीं जहां उनका पालन पोषण हुआ जब कुछ बड़े हुए तो उनके चाचा हज़रत मुत्तलिब उनको मदीना से मक्का ले जाने हेतु आए जब उन्होने अपने भतीजे को देखा तो आँखो से नीर बह निकले तब अपनी माता से आज्ञा लेकर अपने चाचा के साथ मक्के चले आए।
कुरैश समूह की अगुवाईः
मक्के आने के कुछ माह पश्चात ही मुत्तलिब पुत्र मुनाफ़ की मृतयु यमन की यात्रा मे हो गई तो सरदारी तथा काबे के तीर्थयात्रियों की सेवा पर जो मुत्तलिब पुत्र मुनाफ़ ने उस पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने कुरैश की सहायता मांगी परन्तु सुनवाई म हुई । इसके पश्चात हज़रत मुत्तलिब ने अपने मामा अबु समद (उनका सम्बन्ध बनी नज्जार से था) की सहायता का आग्रह किया जो 80 घुड़सवारों के साथ उनकी सहायता के लिये आए –उन्होने नोफ़िल पुत्र अब्दे मुनाफ़ से कहा कि ऐ नोफ़िल यदि तू ने अब्दुल मुत्तलिब से छीना जाने वाला हक़(हिस्सा) वापस न किया तो मैं तलवार से तुम्हारी गर्दन काट दूगाँ। नोफ़िल इस बात पर सहमत हो गया तथा इस बात पर कुरैश के आदर्णीय व्यक्तियों को गवाह बनाया गया – मगर जब हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के मामा पुनः मदीने चले गए तो नोफ़िल पुत्र अब्दे मुनाफ़ ने अब्दे शम्स पुत्र अब्दे मुमाफ़ (बनी उमय्या इन्ही की पीढ़ी है )तथा इनके पुत्र के साथ समझौता किया तथा अब्दुल मुत्तलिब के विरोध में कार्यवाही आरम्भ की बनी ख़ज़ामा ने बनी हाशिम का समर्थन किया और बैतुल नदवा में बनी हाशिम से उन की सहायता करने का आश्वासन दिया तथा बनी नज्जार के व्यक्तियों से कहा कि अब्दुल मुत्तलिब उसी तरह हमारा पुत्र है । जिस तरह तुम्हारे और हमारे पास उनकी सहायता करने के तुम से अथिक कारण हैं।इस प्रकार कुरैश की सरदारी अब्दुल मुत्तलिब के पास रही।
स्रोत ज़म ज़म का पुनः उबालः
मक्कए मुक्करमा का पवित्र कुआँ जिसमें आज भी जल स्रोतित है हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के युग मे यह सूख गया था उसके सही स्थान का पता कुरैश को नही था हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने निरन्तर चार दिन उस स्थान को अपने सपने मे देखा और इस प्रकार ईश्वर द्रारा मार्ग दर्शन किया गया तो उन्होने अपने पुत्र हारिस को लिया और साथ मे उस स्थान पर पहुंचे जो उन्होने सपने मे देखा था और वहां खोदाई आरम्भ कर दी चार दिन के पश्चात जल स्रोतित होने लगा इस प्रकार ज़म- ज़म का कुआँ पुनः मिल गया जिससे निरन्तर जल स्रोतित होता रहता है।चूँकि यह स्रोत स्थाई रूप से ईश्वरीय दूत हज़रत इसमाईल पुत्र हज़रत इब्राहीम के चरणों से जारी था अतः कुरैश के अन्य गुटों ने इस सम्पत्ति का भागीदार बनना चाहा किन्तु अब्दुल मुत्तलिब की दृण्टि में ज़म ज़म को ईश्वर ने उन्हे अर्पित किया था । इस मत भेद के निवारण के लिए अरब के रीति के अनुसार किसी ज्ञानी तथा सूझ बूझ रखने वाले व्यक्ति पर छोड़ा गया। हर गुट का एक दूत जिसमें हज़रत अब्दुल मुत्तलिब भी सम्मीलित थे।एकत्र हो कर शाम की ओर चल पड़े क्योंकि वहां एक वरिश्ठ ज्ञानी नारी से इस मुद्दे पर सलाह मशवरा कर सकें इसका कारण यह था कि अरब काहिन व ज्योतिषी को ही इसका सझम मानते थे ।तथा उन्हीं के शब्दों पर विश्वास करते थे।
शाम की इस यात्रा में अब्दुल मुत्तलिब तथा इनके साथियों का जल समाप्त हो गया तो अन्य क़बायली गुटों ने उन्हे जल देने से नकार दिया और यह दशा आ गई कि उनके कुछ साथियों ने अपनी क़ब्र भी खोद लिया ताकि पृथम मृतक को अन्य सदस्य दफन कर दें। दूसरे दिन हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने मृतयु से निसन्देह होकर यात्रा को जारी रखने का आगृह किया तथा अपने ऊँटों पर सवार हुए उनके ऊंट का पैर पृथ्वी के जिस स्थान पर पड़ा वहा ठंडे जल का स्रोत बह निकला जिससे सभी गुटों ने लाभ उठाया। इस समय सभी गुटों के दूतों ने निश्चय किया कि ज़म ज़म हज़रत अब्दुल मुत्तलिब की सम्पत्ति है। क्योंकि ईश्वर ने यह स्रोत बहा कर अब्दुल मुत्तलिब के हक़ मे न्याय कर दिया है। इसलिए वह सभी हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के निकट आए और कहा जिस ईश्वर ने यह स्रोत तुम्हारे लिये बहाया है उसने ज़म ज़म भी तुम्हे भेट किया है।
हाथियों वाला सालः
क़ुरआन ने भी इस साल का वर्णन किया है। इस साल जब हबशा सम्राज्य द्वारा बने यमन राज्य के अबरहा नामक गवर्नर ने मक्का पर आक्रमण कर दिया। इसका कारण यह था कि अरब सभी स्थानों से हज करने मक्का जाते थे जिनमें से कुछ सवारी द्वारा यात्रा करते तथा कुछ पदयात्रा करते हुए हज करने मक्का जाते थे इसलिये उसने यमन के एक सनआ नामक नगर में एक भव्य तथा सुन्दर गिरजाघर की स्थापना की चूँकि वह एक ईसाई था इसलिये उसकी इच्छा यह थी कि सभी अरब मक्के के बदले मे इस गिरजा को अपना धर्म स्थल बनाए जब यह सम्भव न हो सका अर्थात अरब उसके आदेशों का उल्लंघन करते हुए निरन्तर मक्का जाते रहे तो उसने मक्का पर आक्रमण करके काबा को गिराने का निश्चय किया, इस संकल्प की पूर्ति के लिए उसने हज़ारों हाथियों पर आधारित एक बहुत बड़ी सेना लेकर मक्का के मरुस्थल मे पड़ाव डाल दिया तथा अब्दुल मुत्तलिब को सन्देश भेजा कि हम केवल काबा को गिराना चाहते हैं तो अब्दुल मुत्तलिब ने कहा इस घर का मालिक स्वय इसकी रक्षा करेगा और अपने सेवकों की इज़्ज़त की रक्षा करेगा और मुझे विश्वास है कि वह दुश्ट सेनाओं तथा इस आक्रमण से उसकी सुरक्षा करेगा ।
जब अबरहा ने मक्के पर आक्रमण के लिये सेना तैयार की तो ईश्वर ने चमत्कार दिखाया तथा अबाबील (छोटा पक्षी) के एक विशाल समूह को भेजा जिसने अबरहा की सेना पर कंकड़ की वर्णा कर दी तथा वह ऍसे चमत्कारी कंकड़ पत्थर थे कि सेना को भूसा बना दिया,अबरहा घायल होकर अपने राज्य यमन की रो भागा परन्तु मध्य पथ में ही नरक वासी हो गया। यह घटना 570 ई0 में घटी और इसी वर्ण ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद (स0)का जन्म हुआ।
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के आदर्शः
हज़रत मुत्तलिब के पश्चात कुरैश गुट की अगुवाई के लिए अब्दुल मुत्तलिब के नियुक्त किया गया क्योंकि अब्दुल मुत्तलिब को अपने गुट तथा समारोह मे एक विशेष स्थान था। लोगों में वह पृसिद्द थे इस कारण लोग उनका आदर सत्कार तथा उनसे प्रेम करते थे, इसका कारण यह था कि वह सज्जन तथा मानवीय व्यवहारो, व मानवीय गुणों का संगम थे।
उनका व्यवहार इस पृकार था कि विरोघी का दिल मोह लेते और उसे अपने पक्ष मे कर लेते थे।वह मजबूर तथा कमज़ोरों का समर्थन करते तथा पूर्ण रूप से उनकी सहायता करते थे, वह ऍसे दानी थे कि उनके द्वार से केवल मनुश्य ही नही बल्कि पशु पक्षी भी ख़ाली नही जाते थे।इसी कारण उनका "दानी"नाम पड़ गया था।
वह दयालु ज्ञानी तथा ज्ञान प्रेमी थे वह अपने गुट को श्रेण्ट गुण तथा उत्तम व्यवहार की शिक्षा देते थे और अन्याय, भ्रण्टाचार तथा अन्य कुकर्मो एवं दुर व्यवहार की निंदा कर उसका विरोध करते थे। उनकी दृण्टि से अत्याचारी मनुश्य को उसके कुकर्मों का बदला इस संसार में न मिले तो मृत्यु के बाद नरक में उसका बदला मिलेगा।
अपनी इस विचार धारा तथा श्रद्धा के कारण उन्होने अपने पूर्ण जीवन काल मे न कभी शराब पिया और न कभी किसी निदोशि को हाथ लगाया और न कभी किसी दुर व्यवहारिक कार्य एवं कुकर्म की ओर अग्रसर हुए।इसके विपरीत कुछ ऍसे कार्यो की खोज की एवं उसे जन्म दिया जिसको इस्लाम धर्म ने बाक़ी रखा और वह निम्नलिखित हैः
पिता की किसी पत्नी (सगी मां अर्थात सौतेली) को पुत्र के लिए हराम करना।
अपनी सम्पत्ति (माल,दौलत)का पाँचवा भाग ईश्वर तथा धर्म के कार्यो पर ख़र्च करना।
स्रोत ज़म ज़म का सक़ाय तुल हाज नाम करण करना।
हत्या के बदले सौ ऊट ख़ून बहा देना।
हज एवं उमरा मे काबा के चारों ओर सात चक्कर लगाना।
यधपि इतिहास की दूसरी पुस्तकों में उनके द्वारा जन्मित उन्य अच्छे कर्मों का उल्लेख है जिनमे से कुछ निम्नलिखित हैः
दृढ़ संकल्प के बाद उसे निभाना।
चोर के हाथ काटना।
पुत्रियों की हत्या तथा ज़िन्दा दरगोर करने पर अंकुश लगाना तथा इसकी निन्दा करना।
शराब तथा बलात्कार पर रोक लगाना।
नग्न हो कर काबा के तवाफ़ पर रोक।
सन्तानः
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब की अन्य पत्नियाँ थी जिनमे से दो का नाम फ़ात्मा पुत्री अम्र तथा हाला पुत्री वहब है, उनकी सन्तान मे निम्नलिखित नाम इतिहास के पन्नो मे लिखित हैं।पृथम पत्नी फ़ातमा पुत्री अम्र (फ़ातमा मख़ज़ूमिया)से चार पुत्र हुए जिन के नाम इस पृकार हैः
हारिस अब्दुल्लाह(ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद (स0)के पिता श्री),अबूतालिब (हज़रत अली (अ0) के पिता श्री)तथा जुबैर।
द्धितीय पत्नी से एक पुत्र हमज़ा ने जन्म लिया
अन्य पत्नियो से एक पुत्री तथा दो पुत्र ने जन्म लिया जिनके नाम इस पृकार हैः
साफ़िया (पुत्री),अब्बास , अबूलहब (इस्लाम का शत्रु जिसका उल्लेख इस्लाम की पवित्र पुस्तक क़ुरआन मजीद ने सूरे लहब मे किया है)
ईश्वरीय दूत का पालन पोषणः
ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद (स0) के पिता हज़रत अब्दुल्लाह पुत्र अब्दुल मुत्तलिब का देहान्त (स्वर्गवास) उनके जन्म के कुछ माह पूर्व हो गया था। इसके बाद उनके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने8 साल तक पालन -पोषण किया परन्तु अरब की रीति- रिवाज के अनुसार ईश्वरीय दूत ने अधिक समय एक अन्य गुट में व्यतीत किया तथा इस पृकार वह लगभग दो साल तक अपने दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के साथ रहे।
मृत्युः
एक उल्लेखनीय तथा आदर्शनीय जीवन व्यतीत करने के उपरान्त 578ई0 में उनका देहान्त हो गया उस समय ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद (स0) 8 वर्ष के थे।
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