क़ुर्आने करीम की तिलावत

 क़ुर्आने करीम की तिलावत

 

सब से ज़्यादा पवित्र किताब क़ुर्आने करीम, एक पवित्र ज़ात की तरफ़ से, सबसे पाक दिल पर अवतरित हुई। इसी वजह से केवल वो लोग क़ुर्आने करीम के क़रीब जा सकते हैं जो ज़ाहेरी और आंतरिक रूप से पवित्र हो।

 

 

सब से ज़्यादा पवित्र किताब क़ुर्आने करीम, एक पवित्र ज़ात की तरफ़ से, सबसे पाक दिल पर अवतरित हुई। इसी वजह से केवल वो लोग क़ुर्आने करीम के क़रीब जा सकते हैं जो ज़ाहेरी और आंतरिक रूप से पवित्र हों।
انہ لقرآن کریم، فی کتاب مکنون،لا یمسہ الاالمطھرون
विषय के महत्व को निगाह में रखते हुए बेहतर है कि शुरू में तहारत व पवित्रता के प्रमाणकों को गिनवाया जाये और उस के बारे में थोड़ा बहुत सोचा जायेः

जिस्म की पवित्रता
क़ुर्आने करीम को छूने की पहली शर्त यह है कि जिस्म पाक हो इमाम ख़ुमैनी के फ़त्वे के अनुसार “क़ुर्आने करीम के ख़त को छूना यानी बदन के किसी हिस्से को क़ुर्आन के शब्दों तक पहुचाना बिना वुज़ू के हराम है।”
वुज़ू ऐसी चीज़ है जिसको अंजाम देने से हमारा ज़हेन तमाम चीज़ों से ख़ाली हो जाता है और केवल अध्यात्मिक विचार हमारे ज़हेन में रह जाते हैं। जैसा कि इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 ने वुज़ू की अध्यात्मिक स्थिति की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमायाः
जब वुज़ू करने का इरादा करो और पानी के क़रीब जाओ तो उस आदमी की तरह हो जाओ जो अल्लाह तआला की रहमत के क़रीब होना चाहेता है इस लिए कि ख़ुदा ने पानी को अपने क़रीब करने और और मुनाजात करने का ज़रिआ क़रार दिया है।

ज़बान और मुँह की पवित्रता

जबान की पवित्रता और तहारत के बारे में अइम्मये मासूमीन अ0 से कुछ हदीसें नक़्ल हुई हैः
इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 ने फ़रमाया, पैग़म्बेर अकरम स0 ने फ़रमायाः
क़ुर्आन के रास्ते को पवित्र रखें।
पूछः कैसे पवित्र रखें ?
फ़रमायाः मिस्वाक (टूथब्रश) द्वारा।
इमाम रज़ा अ0 ने अपने पूर्वजों द्वारा रसूले अकरम स0 से नक़्ल किया है कि आप ने फ़रमायाः आप की ज़बानें अल्लाह के कलाम का रास्ता हैं उन्हें पाक रखें।
वो जबान जो ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई), तोहमत (आरोप), झूठ जैसे बड़े गुनाहों से ग्रस्त हो।
वो जबान जो हराम खानों का मज़ा लेती रही हो।
वो जबान जो दूसरों की दिल तोड़ने का कारण बनी हो।
वो ज़बान जिसकी दुष्टता से दूसरे मसुलमान हमेशा परेशानी में हों।
कैसे अल्लाह के कलाम उस पर जारी हो सकता है ?
जी हाँ। इस पवित्र कलाम की तिलावत के लिए ज़बान की पवित्रता ज़रूरी है वरना साफ़ पानी भी एक गंदी नाली में गंदा हो जाता है और इस्तेमाल के योग्य नहीं रहता। और अगर क़ुर्आने करीम नापाक ज़बान पर जारी होगा तो “ رب تال القرآن والقرآن یلعنہ” कितने ऐसे क़ुर्आन की तिलावत करने वाले हैं जिस पर क़ुर्आन लानत करता है, का पात्र बन जाएगा।

आँख की तहारत
रसूले अकरम स0 से नक़्ल हुआ है कि आप ने फ़रमायाः
اعط العین حقھا
आँख का हक़ अदा करों।
कहा या रसूल अल्लाह आँख का हक़ किया है ?
फ़रमायाः النظر الی المصحف क़ुर्आन पर निगाह करना।
इस लिए कि क़ुर्आन करीम को देख कर तिलावत करना सवाब रखता है और अगर आँख गंदी हो, नापाक हो तो क़ुर्आन करीम पर निगाह करने की तौफ़ीक़ (शुभ अवसर) हासिल नहीं करेगी।

रूह की तहारत
वो नापाक रूह जो शैतानी वसवसों की ग़ुलाम व असीर हो जो अपनी तहारत और पवित्रता को खो चुकी हो, भौतिक चीज़ों के साथ इतना अधिक जुड़ी हो कि उससे मुँह फेर लेना असम्भव हो चुका हो, जो गुनाहों की गंदगी से गंदी हो चुकी हो वो क़ुर्आन पाक की अध्यात्मिकता और उसके नूरानी संदेश को कैसे दर्क कर सकती है?
लेकिन पवित्र रूह जिसका भौतिक चीज़ों के साथ कोई लेना देना न हो, जिसने आत्म सुधार द्वारा अपनी पवित्रता को सुरक्षित रखा हो।
जिसने अल्लाह के प्रभावो में विचार द्वारा शैतानी प्रलोभन और शिर्क में ग्रस्त विचारों से दूरी की हो।
ऐसी पवित्र रूह तिलावते क़ुर्आन के दौरान क़ुर्आन की अध्यात्मिकता और नूरानियत से आनंदित होती है और उससे अध्यात्मिक आहार हासिल करती है।

बाक़ी बदन की तहारत
आयतुल्लाह जवाद आमुली के अनुसार आँख, कान, हाथ, और दूसरे हिस्से भी क़ुर्आन करीम की इदराक व अनुभूति के रास्ते हैं।
वो कान जो क़ुर्आन की दिलरुबा आवाज़ को सुनता है और उस पर कोई असर नहीं होता है वो कान जिसे क़ुर्आन सम्बोधित करता है लेकिन एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर निकाल देता है वो कान जो ग़ीबत, तोहमत आदि सुन कर आनंद का एहसास करता है ऐसा कान पवित्र नहीं है। क़ुर्आन की तिलावत का उस पर कोई असर नहीं होता ।
वो हाथ जो दूसरों का माल लूट घसोट करने का आदी रहा है वो हाथ जिस पर दूसरों पर ज़ुल्म होता रहा है वो क़ुर्आने करीम को कैसे छू सकता हैः لا یمسہ الاالمطھرون
इसलिये ज़रूरी है कि क़ुर्आने करीम की हक़ीक़त और उसके ज़ाहिर और बातिन को इदराक करने के लिए बदन के सभी अंश पवित्र हों। ताकि क़ुर्आनी करीम की नूरानियत उस पर असर करे।
जिस्म की ज़ाहेरी तहारत तो बहुत आसान है एक नीयत और चंद चुल्लू पानी से बदन को ज़ाहेरी तौर पर पाक किया जा सकता है और उसके बाद ज़ाहिरे क़ुर्आन को छुआ जा सकता है लेकिन क़ुर्आन की वास्तविकता को समझने के लिए बदन की अंदरूनी पवित्रता शर्त है और बातिनी तहारत और पवित्रता का हासिल करना इतना आसान नहीं है।
तिलावते क़ुर्आन को सुन्ने के आदाब व शिष्टाचार
उचित है कि क़ुर्आने करीम की जब तिलावत हो रही है तो इंसान ख़ामोशी इख़्तियार करे और ध्यान के साथ उसे सुने।
अपने दिल से अल्लाह के कलाम का सम्मान करे।

क़ुर्आन की आयातों पर विचार करे।
आयाते कुर्आने करीम के अर्थ को अपने वजूद के अंदर महसूस करे, और रूह को उस नूरानी कलाम से मालामाल करे।
क़ुर्आन के क़ारी इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 की नज़र में
इमाम सादिक़ अ0 ने क़ुर्आन के क़ारियों को तीन गिरोह में बांटा हैः
1.  एक गिरोह वह है जो राजाओं और बादशाहों के क़रीब होने और लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल करने की वजह से तिलावत करता है यह गिरोह जहन्नमी है।
2.  एक गिरोह ऐसा है जिसने क़ुर्आन के शब्दों को रट रखा है लेकिन उस के मानी से उसे कोई मतलब नहीं है यह गिरोह भी जहन्नमीयों में से है।
3.  एक गिरोह वो है जो क़ुर्आन की तिलावत करता है उसके अर्थ और मतलब का इदराक करता है उसके मोहकम और मोताशाबेह (स्पष्ट और अस्पष्ट आयतों) पर ईमान रखता है उसके हलाल व हराम को समझता और उन पर अमल करता है, यह गिरोह वो लोग हैं जिन्हें अल्लाह नजात अता करता है और उन्हें जन्नत की नेमतों से मालामाल करता है और वो जिसके बारे में भी चाहें सिफ़ारिश का हक़ रखते हैं।

हिफ़्ज़े क़ुर्आन (क़ुरआन को याद करने) के आदाब
1.  बच्चों को बचपने से हिफ़्ज़े क़ुर्आन की आदत डालना चाहिए।
2.  हिफ़्ज़ करने से पहले क़ुर्आन ठीक से पढ़ना चाहिए।
3.  आयात को अरबी स्वर व लहजे में तिलावत किया जाए और हिफ़्ज़ के साथ साथ उस के मतलब की भी जानकारी हासिल की जाए।
4.  तरतील को सीखा जाए और तरतील के तरीक़े से क़ुर्आन की हिफ़्ज़ किया जाए।
5.  हिफ़्ज़ के दौरान एक जिल्द और एक निर्धारित ख़त से क़ुर्आन याद किया जाए।
6.  रोज़ाना आधा घंटा एक्सर साइज़ की जाए धीरे धीरे उसमें बढ़ोत्तरी की जाए।
7.  एक निर्धारित समय में मिसाल के तौर पर हर रोज़ सुबाह सात बजे हिफ़्ज़ किया जाए।
8.  हिफ़्ज़ छोटे सूरों से शुरू किया जाना चाहिए।
9.  गुस्सा, भूक व प्यास की हालत में क़ुर्आन की हिफ़्ज़ नहीं किया जाए।
10.  आयात को हिफ़्ज़ करने के साथ साथ आयात के नम्बर और पेज भी ज़हेन में रखे जाएँ।
11.  हिफ़्ज़े क़ुर्आन रोज़ाना तकरार का मोहताज है।
12.  सफ़र में ज़्यादा तकरार किया जा सकता है।
13.  हिफ़्ज़ के लिए अनुवाद वाले क़ुर्आन को इस्तेमाल न करें।
14.  लम्बे सूरों को थोड़ा थोड़ा करके हिफ़्ज़ किया जाए।
15.  दो आदमी मिल कर याद करने की सूरत में जल्दी और आसानी से हिफ़्ज़ कर सकते हैं।

क़ुर्आन की तिलावत के आसार
1.  दिली नूरानियत
रसूले ख़ुदा स0 ने फ़रमायाः
उन दिलों को ज़ंग लग जाता है जैसे लोहे को ज़ंग लग जाता है।
कहा गया या रसूले ख़ुदा स0 उनको कैसे रौशनी दें ?
फ़रमायाः तिलावते क़ुर्आन से।
ख़ुदा ने क़ुर्आने करीम की हद तक किसी चीज़ को भी नसीहत द्वारा नहीं दिया। इस लिए कि क़ुर्आन अल्लाह की मज़बूत रस्सी और इतमीनान बख़्श दस्तावेज़ है उस में दिलों की बहार है और इल्म के चश्मे हैं इसलिए क़ुर्आन के अलावा दिलों को जिला देने वाली कोई चीज़ नहीं हो सकती है।
2.  याददाश्त का मज़बूत होना।
3.  घर वालों के दरमियान अध्यात्मिकता का पैदा होना।
रसूले ख़ुदा स0 ने फ़रमायाः
कोई गिरोह किसी घर में तिलावते क़ुर्आन करने और एक दूसरे को दर्स देने के लिए जमा नहीं होगा मगर ख़ुदा वन्दे आलम उन्हें इतमीनान और सुकून अता करेगा और उन पर अपनी रहमतों की बारिश करेगा।
4.  बरकत
रसूले ख़ुदा स0 ने फ़रमायाः
अपने घरों को तिलावते क़ुर्आन से नूरानी करो इस लिए कि वो घर जिन में तिलावते क़ुर्आन कसरत से होती है ख़ुदा वन्दे आलम उस घर पर अपनी नेमतों और बरकतों को बढ़ा देता है।
हज़रत अली अ0 ने फ़रमायाः
बेहतरीन ज़िक्र क़ुर्आन है क़ुर्आन द्वारा अपने सीनों में उदारता पैदा करो और अपने बातिन को नूरानी करो।
5.  मुश्केलों का मुकाबेला करने पर क़ुदरत और अल्लाह पर भरोसा।

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