अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ) का जन्मदिवस

अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ) का जन्मदिवस

हज़रत अली अलैहिस्लाम की दृष्टि में मनुष्य उच्च स्थान और मान व सम्मान का स्वामी होता है और उसे अपने साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे उसके मानवीय स्थान को क्षति पहुंचे

 

तत्वदर्शिता और बुद्धिमत्ता के शिक्षक और पैगम्बरे इस्लाम(स) के उत्तराधिकारी हज़रत अली(अ) का शुभ जन्म दिवस है। हज़रत अली(अ) का जन्म एक चमत्कार के साथ हुआ। हज़रत अली (अ) की माता के समक्ष जो उस समय गर्भवती थीं काबे की दीवार फट गयी और वे काबे में प्रविष्ट हो गयीं। तीन दिन बीतने के बाद दीवार उसी स्थान से एक बार फिर फटी और हज़रत फातिमा बिन्ते असद अपने शिशु को गोद में लिये हुये काबे से बाहर आ गयीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर के आदेश पर इस शिशु का नाम अली रखा।
हज़रत अली(अ० एक जाना पहचाना व्यक्तित्व है परन्तु उनकी परिपूर्ण विशेषताओं और महानता के असीम क्षितिज की पहचान कोई भी नहीं कर सका। इतिहास के पन्ने उनके सुन्दर नाम से सजे हुये हैं उनसे श्रृद्धा रखने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि उसने जब शोध किया तो पता चला कि इन्टरनेट पर हज़रत अली का नाम पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नाम के पश्चात सब से अधिक प्रसिद्ध है।
वह इस प्रकार से कि विश्व की विभिन्न साइटों पर हज़रत अली (अ) के बारे में बहुत अधिक जानकारियां मौजूद हैं गूगल सर्च इन्जन पर पैंसठ लाख साठ हज़ार अंग्रेजी साइटों पर हज़रत अली का नाम मौजूद है, गूगल की फ्रांसीसी भाषा में अठहत्तर लाख दस हज़ार साइटों पर हज़रत अली के बारे में अनेक लेख मौजूद हैं। लेबनान के प्रसिद्ध ईसाई लेखक जो हज़रत अली(अ) की महानता के समक्ष सिर झुकाते हुए लिखते हैं कि- इस महान व्यक्ति को चाहे आप पहचानें या न पहचाने वह गुणों और महानताओं का आसीम तत्व है। शहीद और शहीदों का सरदार, मनुष्य की न्याय की पुकार और पूर्वी जगत का अमर व्यक्तित्व है। आदम व हव्वा की सन्तान में किसी ने भी सत्य के मार्ग पर अली की भान्ति कदम नहीं उठाया। अली का इस्लाम उनके हृदय की गहराइयों से ऐसा निकला था जैसे पानी की धारा अपने सोते से उबल कर बाहर आती है।
उस काल में प्रत्येक मुसलमान, इस्लाम स्वीकार करने से पूर्व क़ुरैश की मुर्तियों की पुजा किया करता था। परन्तु हज़रत अली की प्रथम उपासना मोहम्मद(स) के ईश्वर के समक्ष थी। अली एक पहाड़ की भान्ति सत्य के मार्ग पर डटे रहे और उन्होंने अपनी पवित्र मानव प्रवृत्ति और बुद्धि, आस्था एवं ईमान की शक्ति के सहारे भ्रष्ट शक्तियों के अत्याचार व पूंजीवाद से मुकाबिला किया। वे उंची लहरों की उठान वाला ऐसा समुद्र हैं जिसमें पूरी सृष्टि समा गयी है और जो एक यतीम बच्चे की आंखो से बहते आंसुओं से तूफानी हो उठता है। यह लिखने के पश्चात ईसाई लेखक जोर्दाक़ अपनी आत्मा की गहराई से गुहार लगाता हैः हे संसार! क्या हो जाता यदि तू अपनी समस्त शक्ति को एकत्रित करके हर काल में अली जैसी बुद्धि, हृदय, ज़बान और तलवार वाले किसी व्यक्तित्व को पैदा कर देता। संसार में एक नयी लहर उत्पन्न होने और ऐसे जागृत और ज्ञान से भरे हृदयों की संख्या के बढ़ने से जो सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, यह ईसाई लेखक कहता है- नई शताब्दी आगयी है और अचानक हम देखते हैं कि अबू तालिब के पुत्र के व्यक्तित्व से जो अर्थ और मुल्य प्रकट होते हैं और निरन्तर हर सांस के साथ बढ़ते-२ उच्च शिखर तक पहुंचते हैं और उसके परिणाम स्वरूप उत्तम स्वभाव एवं चरित्र सामने आता है तो उसके द्वारा मनुष्य की वफ़ादारी साकार होती है। लोगों को वास्तविकता और शिक्षा एवं विद्या का जितना ज्ञान होता है उन्हें दूसरों की आज्ञानता से उतना ही दुख होता है । अली(अ) भी ऐसे ही लोगों में से हैं। वे स्वयं ज्ञान और बुद्धी की दृष्टि से एक अनुदाहरणीय व्यक्ति है अतः बुद्धिहीन लोगों की अज्ञानता और अदूरदर्शिता बहुत दुखी करती और वह अपने उच्च विचारों के साथ लोगों की बुद्धि और ज्ञान में परिवर्तन लाते और इस मार्ग पर लोगों को अपने अनुसरण पर प्रेरित करते। वे कहते हैं - याद रखो मेरे पिता उन पर न्योछावर हो जायें जो मेरे बाद लोगों को सत्य के मार्ग पर बुलाते हैं उनके नाम आकाश में प्रसिद्ध हैं और धरती पर अपरिचित। जान लो, कि ऐसी घटनाओं की प्रतिक्षा में रहो जो तुम्हारे कार्यों में उथल पुथल मचा देंगी।
अली(अ) अज्ञान व्यक्ति को आश्चर्यचकित और भटका हुआ मानते हैं जब की ज्ञानी व्यक्ति को केवल बुद्धि पर आधारित रहने से रोकते हैं क्योंकि मनुष्य जिस प्रकार ज्ञान और वास्तिविक्ता की खोज में रहने वाले अपने रुझान से प्रभावित होता है उसी प्रकार आत्म-मुग्धता और सत्ता-लोलुप्ता की भावना से भी प्रभावित रहता है।
हज़रत अली अलैहिलस्सलाम अंधे अनुसरण को सत्य प्रेम की भावना के विरुद्ध होने के कारण, अस्वीकारीय कहते हैं और सभी को, चेतना व दूरदर्शिता का आहवान करते हुए कहते हैं ईश्वर की कृपा हो उस दास पर जो विचार करे, पाठ ले और देखने वाला बन जाए।
दूरदर्शिता को यदि परिभाषित करना चाहें तो इसका अर्थ एक ऐसा विशेष प्रकार का तेज व प्रकाश होता है कि जो चिंतन और ईश्वरीय संदेश व महान मार्गदर्शकों की मशाल से उजाला प्राप्त करने के कारण, मनुष्य के अस्तित्व की गहराईयों में पैदा हो जाता है। दूरदर्शिता से दूर लोग वास्तव में मानवीय जीवन से भी दूर होते हैं क्योंकि उनका मन अंधकार में होता है और वे वास्तविकता को देख नहीं सकते इसी लिए कल्याण व परिपूरण्ता के मार्ग से भी वे परिचित नहीं होते। क़ुरआने मजीद ने उन लोगों की कि जिन के मन में दूरदर्शिता का दीया जल रहा हो और जो इससे वंचित हों आपस में तुलना करते हुए कहा है क्या जो मृत हो और उसे हमने जीवित किया हो और उसके लिए प्रकाश पैदा किया हो ताकि उसके उजाले में वह लोगों के मध्य चले, उस व्यक्ति की भांति हो सकता है जो मानो अंधकारों में फंसा हो और उससे निकलने वाला न हो? इस प्रकार से नास्तिकों के लिए वे जो काम करते हैं , उसे अच्छा बनाया गया है।
दूरदर्शिता इस लिए भी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह समस्त मानवीय कार्यों का ध्रुव होती है और विभिन्न लोगों की प्रतिक्रियाएं उसी के आधार पर सामने आती हैं। वास्तव में किसी भी मनुष्य का महत्व और मूल्य उसकी विचारधारा पर निर्भर होता हैं जैसाकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैंः हर मनुष्य का मूल्य उसकी बुद्धिमत्ता के अनुसार होता है।
इसी संदर्भ में इमाम अली अलैहिस्सलाम लोगों को बुद्धि व चिंतन की मशाल के साथ ही ईश्वर से भय की सिफारिश करते हैं। वास्तव में दूरदर्शिता के दीपक की लौ को सदैव जलाए रखने के लिए आंतरिक इच्छाओं की आंधी के सामने मज़बूत दीवार खड़ी किये जाने की आवश्यकता है और ईश्वर से भय वही मज़बूत दीवार है जो मनुष्य के भीतर उठने वाले आंतरिक इच्छाओं के प्रंचड तूफान को रोकने की क्षमता रखती है।
बुद्धि भी मानवीय दूरदर्शिता का एक स्रोत है। चिंतन का काम, इस सृष्टि में बुद्धि के ज़िम्मे रखा गया है। दूसरे शब्दों में चिंतन और विचार करना स्वंय ही दूरदूर्शिता का कारण बनता है। इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जिसका चिंतन लंबा होगा उसकी दूरदर्शिता उतनी ही अच्छी होगी।
जिन लोगों को गहरी पहचान नहीं होती और सृष्टि के बारे में उनका ज्ञान, केवल पांचों इन्द्रियों से आभास योग्य वस्तुओं तक ही सीमित होता है वह उन रोगियों की भांति होते हैं जो अचेतना व अज्ञान के रोग में ग्रस्त होते हैं। जिन लोगों का मन अंधा होता है वह एसे रोगी होते हैं जिनके मन व आत्मा से ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बंद हो चुका होता है इसी लिए वह सृष्टि की गहरी पहचान से वंचित होते हैं। हज़रत अली अलैहिसस्लाम, बनी उमैया को एसे लोगों के ही समूह में शामिल समझते हैं कि जिन्होंने तत्वदर्शिता के प्रकाश से अपने मन और अपनी आत्मा को प्रकाशमय नहीं किया और ज्ञान की मशाल से अपने ह्रदय में उजाला नहीं भरा। हज़रत अली उन लोगों के लिए दुआ करते हैं जो ज्ञान व तत्वदर्शिता के लिए प्रयास करते हैं। वे कहते हैं हे ईश्वर! उसके पापों को क्षमा कर दे जो ज्ञान की भली बात सुन कर उसे स्वीकार कर लेता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम बुद्धिमत्ता को दूरदर्शिता का कारण बताते हुए कहते हैं यह बुद्धिमान लोग वह है जो बुद्धि की आंख से सृष्टि को देखते हैं और उनकी दृष्टि इस भौतिक जगत को पार करती हुई, महसूस न की जाने वाली वस्तुओं के जगत तक पहुंच जाती है और उसके परिणाम में वे उस मार्ग और उस गंतव्य को भी देख लेते हैं जो उस अंतिम घर तक जाता है।
इमाम अली अलैहिस्सलाम, अपने उपदेशों में क़ुरआन को बुद्धिमानों के लिए सत्य का स्रोत बताते हैं और मुसलमानों से कहते हैं कि वे कुरआन की शिक्षाओं का पालन करके कल्याण तक पहुंच जाएं। उन्होंने कहा है कि , तुम लोग क़ुरआन द्वारा, देखते हो , यह किताब, उन लोगों को जो उसके प्रकाश में क़दम बढ़ाते हैं सही मार्ग से भटकने नहीं देती और उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाने के काम में उल्लंघन नहीं करती।
हज़रत अली अलैहिस्लाम एक अन्य स्थान पर कु़रआन को ऐसा मार्गदर्शक बताते हैं कि जो कभी भटकाता नहीं और सिफारिश करते हैं कि विभिन्न कामों में क़ुरआन से सहायता मांगीं जाए। वे कहते हैं जान लो! निश्चित रूप से यह क़ुरआन ऐसा उपदेशक है जो धोखा नहीं देता और ऐसा मार्गदर्शक है जो भटकाता नहीं और ऐसा वक्ता है जो कभी झूठ नहीं बोलता।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का एक अन्य उपदेश, इतिहास से पाठ लेना और बीते हुए लोगों के अंजाम से पाठ लेने का आह्ववान है। वे अपने पुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम से अपनी वसीयत में कहते हैं इतिहास से संवेदशनशील व शिक्षाप्रद व मूल्यवान बिन्दुओं की ओर अपने मन को आकृष्ट करो ताकि बीते हुए लोगों के अनुभवों से लाभ उठा सके और ऐसा सोचो और समझो मानो निकट भविष्य में तुम भी उनमें से किसी एक भी भांति होगो कि जिसे उसके मित्रो ने छोड़ दिया और जो परदेसी हो गया। सोचो के तुम्हें क्या करना होगा।
हज़रत अली अलैहिस्लाम की दृष्टि में मनुष्य उच्च स्थान और मान व सम्मान का स्वामी होता है और उसे अपने साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे उसके मानवीय स्थान को क्षति पहुंचे। इसी लिए जब वे सत्ता में थे और सवारी पर चल रहे थो तो उन्होंने पैदल अपने साथ चलने वालों से कहाः वापस जाओ क्योंकि मेरी सवारी के साथ तुम्हारे पैदल चलने से शासक में घंमड और धर्म पर आस्था रखने वालों में तुच्छता का भाव उत्पन्न होता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम जो सत्य व सच्चाई के ध्वजवाहक हैं सदैव लोगों को सत्य की राह में डटे रहने की सिफारिश करते हैं। वे सब से बड़ी भलाई, अत्याचारी शासक के सामने सत्य बोलने को कहते हैं और एसे लोगों का सम्मान करते हुए कहते हैं ईश्वर कृपा करे उस पर जो किसी सत्य को देखता है तो उसका समर्थन करता है या अत्याचार को देखता है तो उसके विरुद्ध संघर्ष करता है और सत्य के लिए अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़ा होता है

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