क़ुरआन की ख़ुसूसियत
कलामे हक़:
कलामे इलाही, क़ुरआन तुम्हारे दरमियान ऐसा बोलने वाला है जिस की ज़बान हक़ कहने से थकती नही है, और हमेशा हक़ कहती है, और ऐसा घर है कि जिस के अरकान मुनहदिम नही होते हैं, और ऐसा साहिबे इज़्ज़त है कि जिस के साथी कभी शिकस्त नही खा सकते हैं।
आशकार नूर और मोहकम रस्सी:
तुम्हारे लिए ज़रूरी है कि क़ुरआन पर अमल करो कि ये अल्लाह की मोहकम रस्सी, आशकार नूर, और शिफ़ा बख़्श है कि जो तिश्नगी को ख़त्म नही करता है, जो उस से तमस्सुक करे उस को बचाने वाला और जो उस से मुतमस्सिक हो जाए उस को निजात देने वाला है, उस में बातिल को राह नही है कि उस से पलटा दिया जाए, तकरार और आयात की मुसलसल समाअत उस को पुराना नही बनाती है और कान उस को सुनने से थकते नही हैं।
क़ुरआन हिदायत है:
जान लो! क़ुरआन ऐसा नसीहत करने वाला है जो धोखा नही देता, और ऐसा हिदायत करने वाला है जो गुमराह नही करता, और ऐसा क़ाऍल करने वाला है जो झूठ नही बोलता, कोई भी क़ुरआन का हम नशीन नही हुआ मगर ये कि उस के इल्म में इज़ाफ़ा और दिल की तारीकी और गुमराही में कमी हुई ।
जान लो कि क़ुरआन के होते हुए किसी और चीज़ की ज़रूरत नही रह जाती और बग़ैर क़ुरआन के कोई बे नियाज़ नही है।
पस अपने दर्दों का इलाज क़ुरआन से करो और सख़्तियों में उस से मदद मांगो, कि क़ुरआन में बहुत बड़ी बीमारियों कुफ़्र, निफ़ाक़, सर कशी और गुमराही का इलाज मौजूद है।
पस क़ुरआन के ज़रिये से अपनी ख़्वाहिशों को ख़ुदा से तलब करो, और क़ुरआन की दोस्ती से ख़ुदा की तरफ़ आओ, और क़ुरआन के ज़रिये से ख़ल्क़े ख़ुदा से कुछ तलब न करो इस लिये कि ख़ुदा से क़ुरबत के लिए क़ुरआन से अच्छा कोई वसीला नही है, आगाह रहो!कि क़ुरआन की शिफ़ाअत मक़बूल, और उसका कलाम तस्दीक़ शुदा है। क़यामत में क़ुरआन जिस की शिफ़ाअत करो वह बख़्श दिया जाएगा, और क़ुरआन जिस की शिकायत करे वह महकूम है, क़यामत के दिन आवाज़ लगाने वाला आवाज़ लगाएगा
“जान लो! जिस के पास जो भी पूंजी है और जिस ने जो भी काटा है उस को क़ुरआन पर तौला जाएगा” पस तुम को क़ुरआन पर अमल करना चाहिये, क़ुरआन की पैरवी करो और उसके ज़रिए ख़ुदा को पहचानो, क़ुरआन से नसीहत हासिल करो और अपनी राए व नज़र को क़ुरआन पर अरज़ा करो और अपने मतलूबात को क़ुरआन के ज़रिए से नकार दो।
अहमियते क़ुरआन
क़ुरआन दिलों की बहार:
जान लो! ख़ुदावंदे आलम ने किसी को क़ुरआन से बेहतर कोई नसीहत नही फ़रमाई हैं, कि यही ख़ुदा की मोहकम रस्सी, और उस का अमानतदार वसीला है। उस में दलों की बहार का सामान और इल्म के सर चश्में हैं दिलों की बहार और इल्म व हिक्मत का चश्मा है...।
दिल के लिए क़ुरआन के जैसी रौशनी नही हो सकती, ख़ुसूसन उस मुआशरे में जहां दिलों के मरीज़, ग़ाफ़ेलीन और धोखा देने वाले रहते हैं।
क़ुरआन बंदों पर ख़ुदा की हुज्जत:
जान लो! क़ुरआन अम्र करने वाला भी है और रोकने वाला भी है और गोया भी, वह मख़लूक़ात पर ख़ुदा की हुज्जत है।
दर्दों की दवा:
क़ुरआन से बात करके देखो, ये ख़ुद नही बोलेगा बल्कि मैं तुम को उस के मआरिफ़ से मुत्तलअ करूगां। जान लो! क़ुरआन में आइन्दा का इल्म....तुम्हारे दर्दों का सामान है...।
फ़ुरक़ान :
क़ुरआन ऐसा नूर है जो मद्धम नही हो सकता, ऐसा चिराग़ है जो बुझ नही करता। वह समन्दर है जिस की थाह नही मिल करती और ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वाला भटक नही सकता, ऐसी शोआ है जिसकी ज़ौ तारीक नही हो सकती, और ऐसा बातिल व हक़ का इम्तियाज़ है जिस का बुरहान कमज़ोर नही हो सकता,... और ऐसी शफ़ा है जिस में बीमारी का कोई ख़ौफ़ नही है, ऐसी इज़्ज़त है जिस के अंसार पसपा नही हो सकते हैं, और ऐसा हक़ है जिस के आवान बे यार व मददगार नही छोड़े जा सकते हैं।
उलूम का दरिया:
क़ुरआन ईमान की कान, इल्म का चश्मा और समन्दरे अदालत का बाग़ और हौज़, इस्लाम का संगे बुनियाद और असास, हक़ की वादी और उसका हमवार मैदान है, ये वह समन्दर है जिसे पानी निकालने वाले ख़त्म नही कर सकते हैं, और वह चश्मा है जिसे उलचने वाले ख़ुश्क नही कर सकते हैं। वह घाट है जिस पर वारिद होने वाले उस का पानी कम नही कर सकते हैं। और वह मंज़िल है जिस की राह पर चलने वाले मुसाफ़िर भटक नही सकते हैं, वह निशाने मंज़िल है जो राह गीरों की नज़रों से ओझल नही हो सकता है....।
फ़ैसला क़ुरआन कि बुनियाद पर हो न कि अश्ख़ास पर:
याद रखो! हम ने अफ़राद को हकम नही बनाया था बल्कि क़ुरआन को हकम क़रार दिया था
ये क़ुरआन वह मकतूब है जो दो जिल्दों के दरमियान छिपा है, लेकिन मुश्किल ये है कि ये ख़ुद नही बोलता है और उसे तरजुमान की ज़रूरत है और तरजुमान अफ़राद ही होते हैं उस क़ौम ने हमें दावत दी कि हम क़ुरआन से फ़ैसला कराएं तो हम तो क़ुरआन से रू गरदानी करने वाले नही थे।
जब्कि ख़ुदा ने फ़रमा दिया है कि अपने एख़्तिलाफ़ात को ख़ुदा और रसूल की तरफ़ मोड़ दो और ख़ुदा की तरफ़ मोड़ने का मतलब उसकी किताब से फ़ैसला कराना ही है और रसूल की तरफ़ मोड़ने का मक़सद भी सुन्नत का इत्तेबा है और ये तैय है कि अगर किताबे ख़ुदा से सच्चाई के साथ फ़ैसला लिया जाये तो उस के सब से ज़्यादा हक़दार हम ही हैं और इसी तरह सुन्नते पैग़म्बर के लिये सब से ज़्यादा अवला व अक़रब हम ही हैं।
जामईयते क़ुरआन:
क़ुरआन में तुम्हारे पहले की ख़बर, तुम्हारे बाद की पेशीनगोई और तुम्हारे दरमियानी हालात के अहकाम सब पाए जाते हैं।
क़ुरआन को भुला देना:
एक ऐसा वक़्त आएगा कि जब लोगों के दरमियान क़ुरआन क़ुरआन सिर्फ़ निशानी के तौर पर और इस्लाम सिवाये नाम के बाक़ी न रह जाएगा। उस की मस्जिदें आबाद होंगीं लेकिन हिदायत से ख़ाली होंगी...।
इन चंद नमूनों से हम को अच्छी तरह अंदाज़ा होता है कि अगर हम को क़ुरआन के बारे में और उसके उलूम व मआरिफ़ का अंदाज़ा लगाना है तो हमें ख़ुद क़ुरआन से पूछना होगा “जो कि ख़ुद ज़बान नही रखता है” या फ़िर उसके दर पर आना होगा जहां क़ुरआन नाज़िल हुआ और उस ज़बान से क़ुरआनियात और उलूमे क़ुरआन को अख़्ज़ करना होगा जो ये कहे कि सलूनी सलूनी क़ब्ला अन तफ़क़ेदूनी और जिसको क़ुरआन के हर असरार व रुमूज़ का इल्म हो और जो आयात के मकान, ज़मान और शान नुज़ूल से वाक़िफ़ हो। और उन सब के लिये हम को दरे अली (अ0) पर आना पड़ेगा और उनकी नज़र से हम को क़ुरआन को देखना होगा और उनके कलाम से क़ुरआन की हक़ीक़ी तफ़सीर मालूम करनी होगी जो हक़ीक़ी मुफ़स्सिरे क़ुरआन है।
और आप के इरशादात व फ़रमूदात को हालिन करने के लिये हम को उस किताब की तरफ़ रुजू करना होगा जो कलामे इलाही तो नही लेकिन लिसानुल्लाह के दहने मुबारक से निकले हुए पाक कलाम हैं जो तहता कलामिल ख़ालिक़ और फ़ौक़ा कलामिल मख़लूक़ है। हम ज़ेरे नज़र मक़ाले में इस बात की कोशिश करेंगे कि क़ारेईन की ख़िदमत में तफ़सीर क़ुरआन को नहजुल बलाग़ा के तनाज़ुर में पेश करें।
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