?इमाम महदी अलैहिस्सलाम किन हालात में और कहाँ पैदा हुए
जवाब- इमाम महदी अलैहिस्सलाम की पैदाईश के हालात आम नही थे। चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया था कि " वह महदी -ए - आले मुहम्मद जो ज़ालिमों का ख़ात्मा करके ज़मीन को अद्ल से भरेगा, इमाम हसन अस्करी का बेटा होगा। " इस लिए बनी अब्बास के ख़लीफ़ाओं ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को सामरा नामक शहर में नज़र बन्द कर दिया था। ख़लीफ़ा का मकसद यह था कि अगर उनके कोई बेटा पैदा हुआ तो उसे क़त्ल कर देंगे। जिस तरह फ़िरौन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने की फ़िक्र में था।
इस तरह के ख़ौफ़ के हालात में हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पोशीदा तौर पर दुनिया में तशरीफ़ लाये। इमाम महदी अलैहिस्सलाम की पैदाइश के बारे में हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की फुफी जनाबे हकीमा ख़ातून का बयान है कि एक रोज़, मै हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के पास गई, तो आपने फ़रमाया की ऐ फुफी आप आज हमारे ही घर में रहिये, क्योंकि ख़ुदा वन्दे आलम आज मुझे एक वारिस अता फ़रमायेगा। मैने कहा कि यह फ़रज़न्द किसके बतन से होगा ? आपने फ़रमाया कि नरजिस के बतन से मुतावल्लिद होगा। जनाबे हकीमा ने कहा ! बेटे मै तो नरजिस में हम्ल के कुछ भी आसार नही पाती हूँ ! इमाम ने फ़रमाया कि ऐ फुफी नरजिस की मिसाल मादरे मूसा जैसी है। जिस तरह हज़रत मूसा का हम्ल विलादत के वक़्त से पहले ज़ाहिर नही हुआ था, उसी रतह मेरे फ़रजन्द का हम्ल भी बर वक़्त ज़ाहिर होगा। ग़रज़ कि इमाम अलैहिस्सलाम की खवाहिश पर मैं उस शब वहीं रहीं। जब आधी रात गुज़र गयी तो मै उठी और नमाज़ तहज्जुद में मशग़ूल हो गई, और नरजिस भी उठ कर नमाज़े तहज्जुद पढ़ने लगी। उसके बाद मेरे दिल मे यह ख़्याल आया कि सुबह क़रीब है और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने जो फ़रमाया था, वह अभी तक ज़हिर नही हुआ। इस ख़्याल के दिल में आते ही इमाम अलैहिस्सलाम ने अपने हुजरे से आवाज़ दी ! ऐ फुफी जल्दी न किजिये, हुज्जते ख़ुदा के ज़हूर का वक़्त बिल्कुल क़रीब है। यह सुन कर मै नरजिस के हुजरे की तरफ पलटी, नरजिस मुझे रास्ते ही में मिली, मगर उनकी हालत उस वक़्त मुता-ग़य्यर थी। वह लरज़ा बर अन्दाम थीं, उनका सारा जिस्म कांप रहा था।
(अल बशरा, शराह मुवद्दतुल क़ुरबा सफ़ा 139)
मैंने यह देखकर उनको अपने सीने से लिपटा लिया और “ सूरए क़ुल, इन्ना अनज़लना, व आयतल कूर्सी ” पढ़ कर उन पर दम किया, तो बतने मादर से बच्चे की आवाज़ आने लगी। यानी जो कुछ मै पढती जा रही थी, वह बच्चा भी बतने मादर मे वही पढ रहा था। उस के बाद मैंने देखा कि तमाम हुजरा रौशन व मुनव्वर हो गया। मैंने देखा कि एक मौलूदे मसऊद ज़मीन पर सजदे में पडा हुआ है। मैने बच्चे को उठा लिया। हज़रत इमाम हसन अकरी अलैहिस्सलाम ने अपने हुजरे से आवाज़ दी, ऐ फुफी ! मेरे फ़रज़नद को मेरे पास लाईये। मैं ले गई। आपने अपनी गरदन पर बैठा लिया औ अपनी ज़बान बच्चे के मुहँ मे दे दी और फ़रमाया कि ऐ फ़रज़न्द ! खुदा के हुक्म से बात करो। बच्चे ने इस आयत की तिलावत की بسم الله الرحمن الرحيم ونريد ان نمنعلي الذين استضعفوا في الارض ونجعلهم الائمة ونجعلهم الاوارثين तर्जुमा यह है कि हम चाहते है कि एहसान करें उन लोगों पर जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गये हैं और उनको इमाम बनायें और उन्हीं को रू – ए- ज़मीन का वारिस क़रार दें।
इसके बाद कुछ सब्ज़ तायरों ने आकर हमें घेर लिया, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने उनमें से एक को बुलाया और बच्चे को देते हुए कहा قد كفا حفظه इस को ले जाकर इस की हिफ़ाज़त करो। यहाँ तक कि ख़ुदा इसके बारे में कोई हुक्म दे। क्योंकि खुदा अपने हुक्म को पूरा करके रहेगा। मैने इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से पूछा कि यह तायर कौन थे ? आपने फ़रमाया कि यह जिब्रईल थे और वह दूसरे, फ़रिश्त -ए- रहमत थे। इसके बाद फ़रमाया कि ऐ फुफी ! इस फरज़न्द को उसकी माँ के पास से ले जाओ ताकि उस की आखें ठंडी हो जाये और वह महज़ून व मग़मून न हो और यह जान लो कि खुदा का वादा हक़ है واكثرهم لا يعقلون लेकिन अक्सर लोग इसे नही जनते इसके बाद इस मौलूदे असऊद को उसकी माँ के पास पहुँचा दिया गया।
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