इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत की वजह
मज़कूरा बाला तहरीरों से उलमा -ए- इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़ेह हो गया कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम के मुताअल्लिक़ शियों के जो अक़ाइद हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले सुन्नत के उलमा के भी है और असल मक़सद की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी है। अब रही ग़ैबते इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है किः
- ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। चूँकि हुज़ूर रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम (1.23,999) अम्बिया के बाद तशरीफ़ लाये थे, लिहाज़ा तमाम अम्बिया के सिफ़ात व कमालात व मोजज़ात हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम में जमा कर दिए गये थे। और आप को ख़ुदा ने ख़ुद अपना मज़हर क़रार दिया था। और चूंकि आपको भी इस दुनिया-ए-फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था, इस लिए आपने अपनी ज़िन्दगी में ही हज़रत अली अलैहिस्सलाम को हर क़िस्म के कमालात से पुर कर दिया था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ज़ाती कमालात के अलवा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद इस आलम में सिर्फ़ अली अलैहिस्सलाम ही थे जो अम्बिया के कमालात के हामिल थे। आपके बाद यह कमालात मुनतक़िल होते हुए इमाम महदी अलैहिस्सलाम तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम महदी (अ.) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनिया से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की याद गार शमशीर की एक ज़र्ब से ख़त्म हो जाती। और चूंकि अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताआरिफ़ हुआ था, लिहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इसलिए ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाये जो जुम्ला अम्बिया और औसिया की यादगार और तमाम कमालात की मज़हर हो।
- ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाया “ وَجَعَلَهَا كَلِمَةً بَاقِيَةً فِي عَقِبِهِ ” इब्राहीम की नस्ल में कलम - ए- बाक़ीयः क़रार दिया है। नस्ल इब्राहीम दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ और दूसरे इस्माईल, इस्हाक़ की नस्ल से ख़ुदावन्दे आलम जनाब ईसा अलैहिस्सलाम को जिन्दा व बाक़ी क़रार दे कर असमान पर महफ़ूज़ कर चुका था। अब इँसाफ़ के तक़ाज़े के तहत यह ज़रूरत थी कि नस्ले इस्माईल से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यों कि आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था, लिहाज़ा इमाम महदी अलैहिस्सलाम को, जो कि नस्ले इसमाईल से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रख़ा और उन्हें भी इसी तरह दुशमन के शर से महफ़ूज़ कर दिया, जिस तरह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को महफ़ूज़ किया था।
- यह मुसल्लेमात इस्लामी में से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नही रह सकती (उसूले काफ़ी 103 तबा नवल किशोर) चूँकि उस वक़्त इमाम महदी अलैहिस्सलाम के सिवा कोई हुज्जते ख़ुदा न था और उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे, इसलिए उन्हें महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारिश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़्सीम की जाती है (बिहार)
- यह मुस्ल्लम है कि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम जुमला अम्बिया के मज़हर थे। इसलिए ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह ग़ैबत भी होती। यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह अलैहिस्सलाम, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ायब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ायब रहते।
- क़ियामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़ए क़यामत में इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम कि बिना पर हुई है।
- سوره انا انزلناه से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएका शबे क़दर में होता रहता है यह ज़हिर है कि नुज़ूले मलाएका अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम महदी अलैहिस्सलाम को इस लिए मौजूद और बाक़ी रखा गया है कि नज़ूले मलाएका की मरकज़ी ग़रज पूरी हो सके, और शबे क़दर में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएका हो सके। हदीस में है कि शबे क़दर में साल भर की रोज़ी वग़ैरह इमाम महदी अलैहिस्सलाम तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़्सीम करते हैं।
- हकीम का फ़ेल हिकमत से खाली नही होता। यह दूसरी बात है कि आम लोग उस हिकमत व मसलेहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम महदी अलैहिस्सलाम उसी तरह मसलेहत व हिकमत ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है जिस तरह तवाफ़े काबा, रमी जमरात वगैरह है, जिनकी अस्ल मसलेहत ख़ुदा वन्द आलम को ही मालूम है।
- इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का फ़रमान है कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम को इस लिए ग़ायब किया जाएगा, ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान करे कि नेक बन्दे कौन हैं, और बातिल परस्त कौन लोग हैं। (इक्मालुद्दीन)
- चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा बात है कि कि जिसे अपने नफ़स जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मा मानता है। (अलमुर्तज़ा)
- आपकी ग़ैबत इस लिए वाक़ेए हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मुऐय्यन पर, आले मुहम्मद अलैहिमु अस्सलाम पर जो मज़ालिम किये गये हैं, इनका बदला इमाम महदी के ज़रिए से लेगा। यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमैय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मल बदला लेगें। (कमालुद्दीन)
ग़ैबते इमाम महदी जफ़र जामए की रौशनी में
अल्लामा शेख़ क़न्दुज़ी बलख़ी हनफ़ी लिखते हैं कि सुदीर सैरफ़ी का बयान है कि हम और मुफज़्ज़ल बिन उमर, अबू बसीर, अमान बिन तग़लब एक दिन सादिक़े आले मुहम्मद अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो देखा कि आप ज़मीन पर बैठे हैं और रोते हुए कह रहे हैं कि ऐ मुहम्मद ! तुम्हारी ग़ैबत कि ख़बर ने मेरा दिल बेचैन कर दिया है। मैं ने अर्ज़ की, हुज़ूर अल्लाह आपकी आँखों को कभी न रूलाए क्या बात है, हुज़ूर किस लिए गिरया कर रहे हैं ? फ़रमाया ऐ सुदीर ! मैने आज किताब “ जाफ़र जामे ” मै सुबह के वक़्त इमाम महदी की ग़ैबत का मुताला किया है। ऐ सुदीर ! यह वह किताब है जिसमें “ मा काना व मा यकून ” का इन्दराज है। और जो कुछ क़यामत तक होने वाला है, इसमें सब लिखा हुआ है। ऐ सुदीर ! मैने इस किताब में यह देखा है कि हमारी नस्ल से इमाम महदी होंगे फिर वह ग़ायब हो जायेंगे और उनकी ग़ैबत भी बहुत तवील होगी। उनकी ग़ैबत के ज़माने में मोमेनीन मसायब में मुबतिला होंगे और उनके इम्तेहानात होते रहेंगें और ग़ैबत में ताख़ीर की वजह से उनके दिलों में शकूक पैदा होते रहेंगे। फिर फ़रमाया सुदीर ! सुनो उनकी विलादत हज़रत मूसा की विलादत की तरह होगी और उनकी ग़ैबत ईसा अलैहिस्सलाम की मानिन्द होगी और उनके ज़हूर का हाल हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के मानिन्द होगा और उनकी उम्र ह़ज़रत ख़िज़्र की उम्र जैसी होगी।
(यनाबी उल मवद्दत)
इस हदीस की मुख़तसर शरह यह है किः-
(1) तीरीख़ में है कि जब फ़िरऔन को मालूम हुआ कि मेरी सलतनत का ज़वाल एक मौलूदे बनी इस्राईल के ज़रिए होगा, तो उसने हुक्म दिया कि मुल्क में कोई औरत हामेला न रहने पाये और कोई बच्चा बाक़ी न रखा जाये। चुनाचे इसी सिलसिले में 40 हज़ार बच्चे ज़ाए किए गये। लेकिन ख़ुदा ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को फ़िरऔन की तमाम तरकीबों के बावजूद पैदा किया, बाक़ी रखा और उन्हीँ के हाथों से उसकी सलतन का तख़ता उलटवा दिया। इसी तरह इमाम महदी के लिए हुआ कि बनी उमैय्या और बनी अब्बास की तमाम कोशिशों के बाजूद आप बतने नरजिस ख़ातून से पैदा हुए और कोई आपको देख तक न सका।
(2) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में तमाम यहूदी और नसरानी मुत्तफ़िक़ है कि आपको सूली दे दी गई है और आप क़त्ल किये जा चुके हैं। लेकिन ख़ुदा वन्दे आलम ने इसकी रद फ़रमादी और कह दिया कि वह न क़त्ल हुए हैं और न ही उनको सूली दी गई है। यानी ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने पास बुला लिया और वह आसमान पर ख़ुदा के अमन व अमान में हैं। इसी तरह हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में भी लोगों का कहना है कि पैदा ही नही हुए। हांला की वह पैदा होकर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तरह ग़ायब हो चुके हैं।
(3) हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने लोगों की नाफरमनी से आजिज़ आकर ख़ुदा से अज़ाब के नज़ूल की दरख्वास्त की। ख़ुदा वन्दे आलम ने फरमाया कि पहले एक दरख़्त लगाओ जब उस पर फल आजायेंगे तब अज़ाब करूँगा। इसी तरह नूह ने सात मर्तबा किया बिल आख़िर इस ताख़ीर की वजह से आपके तमाम दोस्त व मवाली और ईमानदार काफ़िर हो गये और सिर्फ़ 70 मोमिन रह गए। इसी तरह ग़ैबते इमाम महदी अलैहिस्सलाम और ज़हूर में ताख़ीर की वजह से हो रहा है। लोग फ़रामीने पैग़म्बर और आइम्मा अलैहिस्सलाम की कतज़ीब कर रहे हैं। और मुसलिम अवाम बिला वजह एतेराज़ात करके अपनी आक़ेबत ख़राब कर रहे हैं। शायद इसी वजह से मशहूर है कि दुनिया में चीलीस मोमिन कामिल रह जायेंगे तब आपका ज़हूर होगा।
(4) हज़रत ख़िज़्र जो ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़ियामत तक ज़िन्दा और मौजूद रहेंगें। उन्हीं की तरह इमाम महदी अलैहिस्सलाम भी ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक मौजूद रहेंगें। अब जब कि हज़रत ख़िज़्र के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में मुसलमानों में कोई इख़्तेलाफ़ नही हैं। हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में भी कोई इख़्तेलाफ़ की वजह नही हैं।
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